वाराणसी। आइए जानते हैं अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महा कुंभ में भेद?अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महा कुंभ भारत में आयोजित होने वाले प्रमुख धार्मिक मेलों के प्रकार हैं, जिनमें समय और आयोजन स्थल के आधार पर भेद होता है। अर्ध कुंभ का आयोजन हर छह साल में होता है और यह प्रयागराज और हरिद्वार जैसे स्थानों पर आयोजित किया जाता है। पूर्ण कुंभ मेला बारह साल में एक बार होता है और यह हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।
इस मेले का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि यह व्यापक रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए प्रसिद्ध होता है। महा कुंभ मेला, जिसे ‘महाकुंभ’ भी कहा जाता है, 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद, अर्थात् हर 144 वर्षों में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ मेलों का ‘महाकुंभ’ भी कहा जाता है और इसमें उपस्थित होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों में होती है, जिसके कारण इसका प्रभुत्व और महत्व अत्यधिक होता है।
अर्धकुंभ मेला : अर्ध कुंभ मेला कुंभ मेले के बीच में आयोजित किया जाता है, यानी हर 6 वर्ष में यह मेला भी चार अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किया जाता है। हरिद्वार, प्रयागराज उज्जैन और नासिक। अर्ध कुंभ मेला वास्तव में कुंभ मेले का एक छोटा संस्करण होता है, जो हर 6 वर्षों में आयोजित किया जाता है।
इसे चार महत्वपूर्ण और पवित्र स्थलों पर मनाया जाता है, जो हैं : हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। इन स्थानों को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, और इन जगहों पर आयोजित अर्ध कुंभ में भक्तगण पवित्र स्नान करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इस दौरान पूरे देश और दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुँचते हैं, जो इसे एक विशाल सांस्कृतिक और धार्मिक सभा बनाते हैं।
पूर्णकुंभ मेला : पूर्ण कुंभ मेला हर 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है, जब बृहस्पति और सूर्य कुंभ राशि में होते हैं। यह मेला बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और इसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। पूर्ण कुंभ मेला हर 12 वर्ष में भारतीय कैलेंडर के अनुसार उस समय आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति और सूर्य कुंभ राशि के संगम में होते हैं। यह मेला हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसकी पौराणिक और सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए बहुत ही पवित्र और धार्मिक आयोजन माना जाता है।
इस मेले में भाग लेने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं, और इसे एक अद्वितीय संगम स्थल के रूप में देखा जाता है जहां आस्था, श्रद्धा और विभिन्न धार्मिक क्रियाकलापों का समागम होता है। मेले के दौरान श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं, जो उन्हें मोक्ष प्राप्ति और उनके पापों के क्षय का विश्वास देता है। कुंभ मेला अपने विशाल पैमाने, रंगीन धार्मिक अनुष्ठानों और साधु-संतों की भव्य उपस्थिति के लिए प्रसिद्ध है।
महाकुंभ मेला : महाकुंभ मेला हर 144 वर्ष में आयोजित किया जाता है, जब बृहस्पति और सूर्य कुंभ राशि में होते है और चंद्रमा भी कुंभ राशि में होता है। यह मेला बहुत ही दुर्लभ और महत्वपूर्ण माना जाता है और इसमें करोड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महा कुंभ में अंतर होता है, जो उनके आयोजन की आवृत्ति और महत्व पर आधारित होता है। महाकुंभ मेले की तिथि ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय होती है। इसमें सूर्य और बृहस्पति (गुरु) ग्रहों की स्थिति का विशेष महत्व है।
महाकुंभ मेला एक प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन है, जो हर 144 वर्षों में बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ आयोजित होता है। इस पवित्र मेले के आयोजन का समय तब आता है जब सूर्य और बृहस्पति, दोनों प्रमुख ग्रह, कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, और इसके साथ ही चंद्रमा भी उसी राशि में अवस्था लेते हैं। इस दौरान, लाखों की संख्या में श्रद्धालु धार्मिक स्नान और पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होते हैं, जिससे यह आयोजन एक भव्य और महत्वपूर्ण घटना के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है।
कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ मेले के बीच मुख्य अंतर उनके आयोजन की आवृत्ति और धार्मिक महत्व में निहित है। महाकुंभ विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी तिथियों का निर्धारण गहन ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है, जिसमें मुख्यत: सूर्य और बृहस्पति ग्रहों के विशेष संयोग का विश्लेषण किया जाता है। यह अनोखी स्थिति महाकुंभ को अत्यधिक शुभ और अत्यंत आध्यात्मिक बनाती है।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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