लॉकडाउन के दौरान बच्चों के साथ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं में इजाफा हुआ

नयी दिल्ली : भारत में कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार ने 21 दिनों के लाॉलडाउन की घोषणा की है। कोरोना की दवा उपलब्ध नहीं होने तक इस जानलेवा वायरस को रोकने का लॉकडाउन ही एकमात्र उपाय है। लेकिन भारत में लॉकडाउन के दौरान हिंसा के काफी मामले सामने आ रहे है। इस बीच  चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन नंबर पर पिछले 11 दिनों में 92,000 कॉल आईं जिनमें हिंसा तथा उत्पीड़न से बचाने की गुहार लगाई गई है। यह निराशाजनक स्थिति इशारा करती है कि लॉकडाउन के कारण कई महिलाओं के लिए एक तरह से बंधक जैसे हालात बन गए हैं और कई बच्चे भी घर में असुरक्षा की स्थिति में फंस गए हैं। चाइल्डलाइन इंडिया की उपनिदेशक हरलीन वालिया ने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों से 20-31 मार्च के बीच ‘चाइल्डलाइन 1098’ पर 3,07 लाख फोन कॉल आए। इनमें से 30 फीसदी कॉल बच्चों से जुड़ी थीं जिनमें हिंसा और उत्पीड़न से बचाव की मांग की गई थी। 30 फीसदी कॉल की यह यह संख्या 92,105 है। वालिया के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 24 मार्च को दिए गए भाषण के बाद 25 मार्च से लॉकडाउन शुरू हुआ जिसके बाद फोन कॉल 50 फीसदी तक बढ़ गए हैं। मंगलवार को यह आंकड़े जिले में स्थित बाल बचाव ईकाइयों के साथ कार्यशाला में साझा किये गये। इस कार्यशाला में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया था। कार्यशाला में चर्चा मुख्य रूप से कोरोना वायरस से जुड़े मुद्दों और बंद के दौरान बच्चों में तनाव को कम करने के रास्ते तलाशने पर केंद्रित थी। वालिया ने बैठक में बताया कि चाइल्डलाइन को बंद के दौरान शारीरिक स्वास्थ्य के संबंध में 11 फीसदी कॉल आईं, बाल श्रम के संबंध में आठ फीसदी, लापता और घर से भागे बच्चों के संबंध में आठ फीसदी और बेघर बच्चों के बारे में पांच फीसदी कॉल आईं। इसके अलावा हेल्पलाइन को 1,677 कॉल ऐसी मिलीं जिनमें कोरोना वायरस के संबंध में सवाल किये गये और 237 कॉल में बीमार लोगों के लिए सहायता मांगी गई। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने हाल ही में कहा था कि देशव्यापी बंद के बाद से घरेलू हिंसा की शिकायतें बढ़ रही है और सिर्फ ईमेल के जरिए ही 69 शिकायतें मिलीं। बाल अधिकार इकाईयों ने हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर 1098 को टॉलफ्री नंबर बनाने और कोविड-19 के संकट के मद्देनजर इस नंबर को बच्चों, अभिभावकों या देखभाल करने वालों के लिए आपात नंबर बनाने को कहा था।

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