वाराणसी । आज यहाँ हम उन कष्टों कि बात कर रहे है जो पितृ- दोष के कारण भोगने पड़ते हैं।
1. घर में विवाह योग्य बच्चों का विवाह ना हो पाना और वैवाहिक जीवन में क्लेश होना।
2. परिश्रम के बाद भी सफ़लता ना मिलना सफ़लता में संदेह होना।
3. व्यवसाय में हानि या उतार- चढ़ाव रहना।
4. नौकरी लगने में देर होना या नौकरी लग के छुट जाना।
5. शादी के बाद गर्भ-धारण में समस्या गर्भपात होना या संतान होने में कष्ट होना।
6. संतान का विकलांग हो जाना ।
7. बच्चों की अकाल मृत्यु होना या घर के सदस्यों का एक- एक कर के मृत्यु को प्राप्त होना।
8. पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों के विरुद्ध कार्य करना।
माना जाता है, पितृ- दोष प्रारब्ध का दोष है। इस कारण से जिन हिन्दू घरों में अपने बड़ों का सम्मान नहीं, उन घरों में जन्म लेने वाले शिशुओं को पितृ- दोष लग सकता है।
ज्योतिष के अनुसार, पितृ- दोष जन्म कुंडली में दोष का निर्धारण प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम, दशम तथा नवम भाव सूर्य राहू और शनि के आधार पर होता है। जन्म कुंडली में नवा भाव पिता और पितरों का भाव स्थान कहा गया है। यह स्थान जातक कि कुंडली में भाग्य का स्थान कहा गया है।
महर्षि पराशर मुनि के ग्रन्थ ब्रह्त्परशर होरा शास्त्र में सूर्य पिता कारक है और राहू छाया ग्रह है। जिस समय राहू कि युति यानि दृष्टि- संबंध सूर्य के साथ होता है तब सूर्य ग्रहण लगता है। इसी प्रकार जब जातक कि कुंडली में सूर्य –राहू की युति एक ही भाव एक ही राशि में होती है तो पितृ- दोष जन्म कुंडली में पाया जाता है।
1. कुंडली में केतू कमज़ोर हो या द्वितीय, नवम, दशम भाव पर भावेश पापी ग्रहों का प्रभाव हो। इसके साथ ही ग्रह अस्त या कमज़ोर हो तो पितृ- दोष कुंडली मे पाया जाता है।
2. लग्न और लग्नेश दोनों में से एक अत्यंत कमज़ोर स्थिति में हो।
3. लगनेश नीच का हो, उसी भाव में राहू और शनि युति संबंध बना रहे हो।ऐसे में पितृ-दोष जन्म कुंडली में पाया जाता है।
4. राहू यदि नवम में बैठ हो,और नवमेश में संबंध बनाता हो।
5. नवम भाव में ब्रहस्पति और शुक्र की युति बनाता हो और दशम भाव में राहू और केतू का प्रभाव हो।
6. शुक्र अगर मंगल और शनि द्वारा पीड़ित होता है।
7. जिस जातक कि कुंडली में दसमेश त्रि के भाव में हो साथ ब्रहस्पति पापी ग्रहों के साथ स्थित हो। लग्न और के पंचम भाव पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो, तब जातक की कुंडली में पितृ- दोष पाया जाता है।
ऐसे और कई ज्योतिष और खगोलीय कारण है जिससे जातक की कुंडली पर पितृ-दोष का प्रभाव होता है।
पितृ दोष निवारण उपाय : कुछ सरल उपाय जो ज्योतिष द्वारा बताए गए है।
1. सोमवार को व्रत रखे, नंगे पाँव जा कर इक्कीस आक, विल्वपत्र, पुष्प, कच्ची लस्सी के साथ पूजन कर इक्कीस सोमवार तक व्रत रखे।
2. पवित्र पीपल और बरगद के पेड़ लगाए। विष्णु भगवान के मन्त्र जाप और भगवत गीता का पाठ करने से पितृ- दोष में कमी आती है।
3. प्रतिदिन इष्ट देवता की पूजा करने से पितृ-दोष का शमन होता है।
4. कुंडली में पितृ-दोष हो तो किसी गरीब की बीमारी में सहायता करें या उसके विवाह में सहयोग करना चाहिए।
5. अपने स्वजन बंधुओ कि निर्वाण तिथि पर तर्पण कर ज़रुरत मंदों को भोजन कराए।
आपका कार्य सिद्ध हो इसके लिए जातक अपनी कुंडली जानकार ज्योतिषाचार्य को दिखा कर परामर्श ले।
जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848