।।क्यूं रुके हैं तेरे शिथिल चरण।।
रुक गए जो तेरे शिथिल चरण
मृत्यु का होगा आमंत्रण,
दुःख से विरक्त है कोई जग में
गर्वित है कौन हुआ नभ में,
कर्तव्य राह में होगा रण
मन की करुणा का निमंत्रण!!
रुक गए जो तेरे शिथिल चरण!!
है व्यथा विकार इस जीवन में
सुख मिलता हरि के सुमिरन में,
अस्तित्व मिटा प्रतिपल प्रतिक्षण
गिरते हैं अश्रु से अब मधुकण!!
रुक गए जो तेरे शिथिल चरण!!
जैसे प्राण पवन में रहता
जैसे सौंदर्य सुमन में रहता,
नभ में चलते हैं तारागण !!
क्यूं रुके है तेरे शिथिल चरण!!
जीवन की इस लाचारी से
उर में उठती चिंगारी से,
लिखा कविता का प्रथम चरण
अब रुके न मेरे शिथिल चरण!!
अभिषेक मिश्रा – बहराइच (उत्तर प्रदेश)