नालायक नेता व अधिकारी कब रद्द होंगे?

डॉ.विक्रम चौरसिया, नई दिल्ली । सोचकर देखो बहुत दूर सेंटर हो बसो व ट्रेनों में एक दुसरे पर लद कर धक्के खाते पेपर देने जाओ सड़क, स्टेशन पर रह के काटो चलो कोई नहीं परीक्षा है मेहनत लगेगा ही पेपर दे कर फिर वही दोहराव, अंत में घर पहुंचने के बाद पेपर रद्द, अब आप ही सोचिए छात्र के मन में कितने अच्छे-बुरे विचार आएंगे सिस्टम के बारे मे ऐसे ही छात्र उग्र होकर बौरा जाते है। कहते हैं की राष्ट्र के निर्माण में युवाओं की प्रमुख भूमिका होती है लेकिन हमारे युवाओं के साथ आखिर क्यों इतने आत्याचार किया जा रहा है? मेहनती छात्रों के जिंदगी व इनकी मेहनत का कोई कद्र नहीं है इस देश में।

vikram
डॉ. विक्रम चौरसिया

इस देश में सिर्फ चुनाव ही सही समय पर हो सकता है और कुछ नही। युवाओं के रोजगार के लिए सारा सिस्टम फेल है। सोचो इस भीषण गर्मी में, भीषण जाम झेलने के बाद रात भर रेलवे स्टेशन पर, एग्ज़ाम सेंटर पर मच्छरों के साथ रात भर जागना,उसके बाद एग्ज़ाम केंद्र पर जाने पर पंखे तक नहीं होना, फिर पेपर देने के बाद मालूम होता है की पेपर लीक हो गया है। इसके बाद दिल में जो दर्द होता है न यह तो सिर्फ़ बेबस छात्र ही बता बता सकते है। जो जनवरी में होने वाली थी परीक्षा वह आज 8 मई को हुई, जो की धांधली की भेंट चढ़ गई। बस और ट्रेन में लटककर भावी एसडीएम व डीएसपी अपने परीक्षा केंद्र पर पहुंच गए। फिर इसके बाद सुबह से ही अपने परीक्षा केंद्र के पास, किसी के घर के पास, प्लास्टिक बिछा कर पूरा करेंट अफेयर्स को देख रहे थे, उम्मीद था की इस बार अपने मां बाप का सपना पूरा कर देना है।

लेकिन उन्हें क्या पता की उनके सपने में भी कुछ धंधेबाज अपना धंधा देख रहे है। कौन है ये लोग जो प्रदेश स्तर की सबसे बड़ी परीक्षा को भी चैलेंज करते हैं। कही ना कही इसमें बड़े स्तर के नालायक नेताओं व अधिकारियों का जरूर मिलीभगत है। ऐसे ही किसी वो भी इतने बड़े परीक्षा का पेपर लीक नही हो सकता है। सच्चाई यही है की आज पेपर नहीं, जिंदगी लीक हो गई, सपने और मेहनत लीक हो गए। महत्वकांक्षाएं लीक हो गई, समय लीक हो गई। पढ़ाई में लगी मां-बाप के खून-पसीने और मेहनत की कमाई लीक हो गई। सड़ी हुई सरकार और गली हुई सिस्टम के प्रति लोगों का विश्वास लीक हो गया। परीक्षा रद्द हुई, कई भविष्य रद्द हुए, मेहनत रद्द हुई, ये नक़ली नालायक नेता व अधिकारी कब रद्द होंगे?

चिंतक/आईएएस मेंटर/ दिल्ली विश्वविद्यालय
लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहे हैं।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।

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