हमें आपातकाल के भयावह दौर को कभी नहीं भूलना चाहिए : मोदी

नयी दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि आज जब देश आजादी के 75 साल मना रहा है तो हमें आपातकाल के उस भयावह दौर को भी कभी नहीं भूलना चाहिए। अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात की 90वीं कड़ी में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”जब देश अपनी आजादी के 75 वर्ष का पर्व मना रहा है, अमृत महोत्सव मना रहा है, तो आपातकाल के उस भयावह दौर को भी हमें कभी भी भूलना नहीं चाहिए। आने वाली पीढ़ियों को भी इसे भूलना नहीं चाहिए। अमृत महोत्सव सैकड़ों वर्षों की गुलामी से मुक्ति की विजय गाथा ही नहीं बल्कि आजादी के बाद के 75 वर्षों की यात्रा भी समेटे हुए है। इतिहास के हर अहम पड़ाव से सीखते हुए ही हम आगे बढ़ते हैं।”

नरेंद्र मोदी ने कहा, ”मैं आज आपसे, देश के एक ऐसे जन-आंदोलन की चर्चा करना चाहता हूँ, जिसका देश के हर नागरिक के जीवन में बहुत महत्व है। उससे पहले मैं 24-25 साल के युवाओं से एक सवाल पूछना चाहता हूँ। क्या आपको पता है कि आपके माता-पिता जब आपकी उम्र के थे तो एक बार उनसे जीवन का भी अधिकार छीन लिया गया था। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? ये तो असंभव है। लेकिन हमारे देश में एक बार ऐसा हुआ था। ये बरसों पहले 1975 की बात है। जून का ही समय था जब देश में आपातकाल लागू किया गया था। उस वक्त देश के नागरिकों से सारे अधिकार छीन लिए गए थे। उसमें से एक अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी भारतीयों को प्रदत्त जीने का अधिकार भी था। ”

नरेंद्र मोदी ने कहा ,”उस समय भारत के लोकतंत्र को कुचल देने का प्रयास किया गया था। देश की अदालतें, हर संवैधानिक संस्था, प्रेस, सब पर नियंत्रण लगा दिया गया था। सेंसरशिप की ये हालत थी कि बिना स्वीकृति कुछ भी छापा नहीं जा सकता था।” उन्होंने कहा, ”मुझे याद है तब मशहूर गायक किशोर कुमार ने सरकार की वाह-वाही करने से इनकार किया तो उन पर बैन लगा दिया गया। रेडियो पर उनका प्रवेश रोक दिया गया। बहुत कोशिशों, हजारों गिरफ्तारियों और लाखों लोगों पर अत्याचार के बाद भी लेकिन भारतीयों का लोकतंत्र से विश्वास रत्तीभर नहीं डिगा। ”

प्रधानमंत्री ने कहा, ”हम भारतीयों में सदियों से जो लोकतंत्र के संस्कार चले आ रहे हैं और जो लोकतांत्रिक भावना हमारी रग-रग में है आखिरकार जीत उसी की हुई। भारत के लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से ही आपातकाल को हटाकर वापस लोकतंत्र की स्थापना की। तानाशाही की मानसिकता को, तानाशाही वृति-प्रवृत्ति को लोकतांत्रिक तरीके से पराजित करने का ऐसा उदाहरण पूरी दुनिया में मिलना मुश्किल है। आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के एक सैनिक के रूप में देशवासियों के संघर्ष का गवाह बनने का और साझेदार बनने का सौभाग्य मुझे भी मिला था। ”

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