पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : आमतौर पर यह माना जाता है कि शिलान्यास ही वास्तु पूजन है, जबकि ये दोनों अलग-अलग हैं। शिलान्यास महूर्त में नींव की खुदाई आरंभ करके शास्त्रानुसार एक निश्चित दिशा में नई ईंट, नवरत्न, धार्मिक ग्रंथ आदि बहुत सी वस्तुएं रखकर पूजन किया जाता है। जबकि वास्तु पूजन नींव का कार्य पूर्ण होने के बाद चारदीवारी के अंदर किया जाता है। वास्तु पूजा में वेदी बनाकर गणेश जी, अम्बिका, नवग्रह, 16 माताएं, 64 योगिनियों वास्तुमंडल और सर्वतोभद्र चक्र का पूजन विधिपूर्वक किया जाता है। इनकी स्थापना की दिशा व वेदी बनाना विद्वान ब्राह्मण जानते ही हैं। वैसे इन वेदियों का पूजन योग्य रूप से बाज़ार में ताम्बे के पत्रक पर उपलब्ध है। यदि ताम्रपत्र पर निर्मित छोटी वेदियाँ प्राप्त न हों और जगह की तंगी हो तो शालिग्राम जी को चौकी आदि पर स्थापित करके उनके निकट ही सब देवताओं का नाम लेकर पूजन कर सकते हैं।
पद्मपुराण में कहा गया है :- .पूजन शुरू करने के दिन ही नांदीश्राद्ध अवश्य कराएं। इससे वास्तु पूजन व गृहप्रवेश के बीच कोई सूतक या स्त्रियों को मासिक अशुद्धि की स्थिति बनने का दोष नहीं लगता है। सब देवताओं को फल व मिठाई का भोग जरुर लगाएं।
* पूजा के दौरान और कार्य की समाप्ति तक वास्तुमंडल के सभी देवों को रोजाना या कम से कम एक दो बार खीर का भोग लगाएं।
* यह पूजन वृहद रूप से कई दिन और समय के अभाव में सूक्ष्म रूप से कुछ घंटे में भी किया जा सकता है। इसके लिए योग्य वास्तु शास्त्री और विद्वान कर्मकांडी ब्राह्मण से परामर्श किया जा सकता है। इसमें एक बात विचारणीय है कई बार नींव भराई के बाद पूजन करवाकर लंबे समय के लिए निर्माण कार्य रोक दिया जाता है या किसी भी कारण से शुरू नही हो पाता है, ऐसी स्थिति में यदि सूर्य का अयन बदल जाए यानी सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन या दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाए तो वास्तु पूजन दोबारा करवाना अनिवार्य है।
इसलिए निर्माण कार्य तभी करायें जब आपके पास पर्याप्त धन समय और साधन हो, अधूरा निर्माण नहीं छोड़ना चाहिए, नीचे का काम पूरा हो जाये तो ऊपर का काम बाद में भी करा सकते हैं लेकिन नीचे कार्य पूर्ण होने पर ही समाप्त करें।
काम पूरा होने से मतलब है चारदीवारी, कमरे का प्लास्टर, न कि बिजली, रंग रोगन, सभी सुख सुविधाओं का सामान से घर का ढांचा तैयार हो जाए तो फिर जरूरी काम बिजली रंग रोगन आदि धीरे-धीरे होता रहेगा।
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पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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