निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद । आज से 4 साल पूर्व दिल्ली के बुराड़ी नामक कॉलोनी में 30 जून 2018 को घटी दुखद दुर्घटना में एक ही परिवार के ग्यारह लोगों की रहस्यमय ढंग से फाँसी पर लटक कर, रोंगटे खड़ी कर देने वाली आत्महत्या जैसी घटना सुनकर और सोचकर रोंगटे खड़े हो गये और यह सोचने पर बाध्य होना पड़ा कि आज ज्ञान-विज्ञान के आलोक में, इक्कीसवीं सदी में भी, भारतीय समाज की सोच कितना दकियानूसी भरा और धर्म के नाम पर समाज के अधिकतर भारतीयों की सोच अभी भी अवैज्ञानिक, मूर्खतापूर्ण, अंधविश्वासी और जाहिलता से भरी हुई है। इस घटना में पुलिस विशेषज्ञों के अनुसार मृतकों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इन सभी की मृत्यु आत्महत्या करने की तरफ इंगित कर रही हैं, किसी के शरीर पर शारीरिक संघर्ष का कोई निशान नहीं है। मृतकों के घर मिली एक डायरी में यह लिखा है कि ‘इससे कोई मरेगा नहीं, अपितु अमर हो जायेगा और उसकी महानता बढ़ जायेगी।’ इस दुखद घटना में एक और खुलासा हुआ है कि इस परिवार के सभी सदस्य तंत्र-मंत्र में खूब विश्वास करते थे, मृतकों के घर मिली डायरियों के अनुसार परिवार का दूसरा बेटा दस साल पूर्व मरे अपने बाप से अक्सर अभी भी बात कर लिया करता था।

मौके की जाँच कर रही पुलिस के अनुसार वहाँ मिले रजिस्टर और डायरी के अनुसार यह परिवार एक धार्मिक अनुष्ठान कर रहा था। इस प्रक्रिया के एक चरणबद्ध प्रोग्राम के तहत ही हाथ और मुँह पर पट्टी बाँधकर लटकना इस प्रोग्राम का एक पूर्व नियोजित सोपान था। इस सारी प्रक्रिया में इस मूर्ख, अंधविश्वासी व जाहिल परिवार के अनुसार इसमें मरने वाली बात थी ही नहीं, इसलिए यह परिवार मरने से बेफिक्र था। रजिस्टर में परिवार के सभी सदस्यों को सम्बोधित था कि ‘तुम मरोगे नहीं, बल्कि कुछ बड़ा हासिल करोगे। पिता जी, ज्ञातव्य है यह उन पिताजी को संबोधित है जो दस वर्ष पहले ही मर चुके हैं, ने कहा है कि आखिरी समय पर झटका लगेगा, आसमान हिलेगा, धरती हिलेगी, लेकिन तुम घबराना मत, मंत्र जाप तेज कर देना, मैं तुम्हें बचा लूँगा।

जब पानी का रंग बदलेगा तब नीचे उतर जाना, एक दूसरे को नीचे उतरने में मदद करना। बंधे हाथ खोलने में भी एक -दूसरे की मदद करना ‘उक्त कथन लिखने वाला परिवार का दूसरा बेटा ललित था, पुलिस तहकीकात में यह बात स्पष्ट हुई है कि यह व्यक्ति अपने दस साल पूर्व मरे बाप से सपने में मिलने वाले निर्देश का स्वयं पालन करता था और उसका सम्पूर्ण परिवार भी उसी के आदेशानुसार कार्य करता था। वह बड़ा ही धार्मिक प्रवृत्ति का आदमी था और वह किसी गदा बाबा के निर्देशानुसार चलता था, सम्भवतः इस दुःखद घटना में उक्त गदा बाबा का भी कोई रोल हो!

इस दुखद घटना के रहस्यों से पर्दा उठाने में मनोचिकित्सकों की भी मदद ली जा रही है, डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों के अनुसार यह व्यक्ति शेयर्ड साइकोटिक डिसआर्डर या डिल्यूशन नामक मनोवैज्ञानिक बीमारी से पीड़ित था। यह एक मनोवैज्ञानिक मनोरोग है जो अतिधार्मिक व्यक्ति को ही होता है। यह व्यक्ति किसी से अत्यधिक प्रभावित हो जाता है। चाहे वह जीवित हो या मर चुका हो उसका मस्तिष्क वास्तविकता से दूर एक भ्रम की स्थिति में आ जाता है यह रोग उसी व्यक्ति को होता है जो हद दर्जे का अंधविश्वासी होता है। यह मामला सामूहिक आत्महत्या जिसे अंग्रेजी में कल्ट सुसाइड या मास सुसाइड कहते हैं, का है। अगर कोई व्यक्ति एक सीमा से ज्यादा किसी भगवान या अपने आराध्य में समर्पित हो जाता है और उस पर अंधविश्वासी हो जाता है तो वह इसी प्रकार का सामूहिक आत्महत्या ही करता है।

इस तरह की घटना काफी समय पहले गुयाना नामक देश के जोन्सटाउन में हुआ था, जिसमें लगभग 700 अंधविश्वासी मूर्खों ने अपने एक कथित धर्मगुरु के उकसाने पर जहर पीकर अपनी जान सामूहिक रूप से दे दिए थे। मनुष्य के मस्तिष्क में एक हिपोकैंपस नामक भाग होता है, यह मनुष्य की याद रखने और निर्णय लेने के लिए बना होता है, यह उन अंधविश्वासी और अंधभक्तों में, जो अतिधार्मिक बनकर ईश्वर को ज्यादा खुश रखने के लिए स्वंय को कठोर कष्ट देने लगते हैं, उनका यह हिपोकैंपस वाला भाग सिकुड़ जाता है। इस तरह का व्यक्ति अपनी निर्णय क्षमता लेने में ही अक्षम हो जाता है और वास्तविकता से दूर कल्पना और भ्रमित स्थिति में आ जाता है।

हमारे देश में धर्म के बारे में कुछ पोंगापंथियों और स्वार्थी तत्वों ने अंधविश्वास का, पाखण्ड का ऐसा मकड़जाल बना रखा है और उसे बच्चे के होश सम्भालने के बाद से ही उसके माँ-बाप, परिवार, समाज, आस-पास के पार्कों या किसी मंदिर के प्रागंण में कुछ समयान्तराल के बाद कुछ कथितबाबा और गुरु लोग मूर्खतापूर्ण, अंधविश्वासी और कपोलकल्पित बातों जैसे, अवतार, पुनर्जन्म, चौरासी लाख योनियों, वरदान, शाप, कृपा, मोक्ष आदि-आदि अपने प्रवचन के माध्यम से उन कथित भक्त लोगों में इतना भर देते हैं कि छोटे बच्चे तो छोड़िए बड़े-बड़े विद्वान लोग भी उसी मकड़जाल में लिपटकर रह जाते हैं। जिनका कोई वैज्ञानिक तर्कसंगत आधार ही नहीं होता है।

शास्त्रों-पुराणों के अनुसार मोक्ष की परिभाषा दृष्टव्य है, ‘शास्त्रों-पुराणों के अनुसार जीव का जन्म और मरण के बन्धन से छूट जाना ही मोक्ष है। भारतीय दर्शनों में कहा गया है कि जीव अज्ञान के कारण ही बार-बार जन्म लेता है और मरता है, इस जन्म-मरण के बन्धन से छूट जाने का मतलब मोक्ष है। जब कोई मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है, तब फिर उसे इस संसार में आकर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती। ‘उक्त मोक्ष की परिभाषा को बगैर आस्था और अंधभक्ति के जरा खुले मस्तिष्क से सोचने पर इसकी निरर्थकता और इसे लिखने वाले की जाहिलता साफ झलकती है और यह स्पष्ट ही नहीं हो पाता कि आखिर वह कहना क्या चाह रहा है? उसका कहने का आशय क्या है?

इसी तरह की उलजलूल और उटपटांग बातें यहाँ धर्म के नाम, भगवान के नाम पर,भक्ति के नाम पर, आस्था के नाम पर किया जाता रहा है। इसमें मोक्ष की जो परिभाषा परिकल्पित की गई है, वह सीधे-सीधे जीवन के कर्तव्यपथ से, जीवन, जीवन में आने वाली कठिनाइयों व परेशानियों से कहीं भी बहादुरी से संघर्ष करने, उस पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा नहीं है, अपितु पलायनवादी रास्ता सुझाया गया है, आखिर इसका लेखक किस अज्ञान की बात कर रहा है?जिससे जीवन-मरण की बार-बार के झंझटों से मुक्ति की राह सुझाता है? आजतक भारत के कितने ऋषि-मुनि लोग जीते-जी इस कथित मोक्ष की प्राप्ति कर लिए हैं और वर्तमान में कितने लोग इसके लिए प्रयासरत हैं?

भगवान कृष्ण ने गीता में निम्न श्लोक के माध्यम से यह बहुत ही दृढ़तापूर्वक और स्पष्टता से यह कहा है अपना सारा ध्यान कर्म पर निर्धारित करें, एकाग्रचित्त होकर फल की आशा को नेपथ्य में रखकर करें। मतलब कृष्ण ने इस दुनिया को, इस भौतिक संसार को, मानव शरीर को दृढ़ता से उसके अस्तित्व को स्वीकृति प्रदान किये, कर्मठता से अपने कर्तव्य पथ पर चलने की उन्होंने प्रत्येक तत्कालीन भारतीय को चलने की और जीवन जीने की प्रेरणा दी। दूसरे शब्दों में उस महान दार्शनिक, महानायक, कर्म के सच्चे उपासक, महान भौतिकवादी, महान यथार्थवादी, इस लोक यानी वर्तमान भौतिक वादी दुनिया के प्रबल समर्थक, भगवान कृष्ण ने इस दुनिया और समाज को अकर्मण्यता, आस्था, अंधविश्वास, पाखंण्ड, लोक-परलोक, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, पुनर्जन्म, मोक्ष, आदि तमाम भाग्यवादी सोच और अकर्मण्य होते समाज को पुनर्जीवन देने के लिए आज से लगभग पाँच हजार साल पहले इस वास्तविक दुनिया और समाज के लोगों को एक बहुत ही निर्भीक, स्पष्ट और वैज्ञानिक तथ्यपरक संदेश दिया था, जो अभी भी समाज और देश हित में उतना ही प्रासंगिक है, जितना भगवान कृष्ण के समय में था। गीता में वह श्लोक निम्नवत् है।

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि”॥ 47॥
बाद के वर्षों में इस देश के पाखंडियों, धर्म के ठेकेदारों, धर्मध्वजधारकों ने भगवान कृष्ण के उस ‘अजर-अमर संदेश’ की धज्जियाँ उड़ाते हुए इस देश और समाज को अकर्मण्यता, सामाजिक समरसता को तार-तार करने वाले एक मिथ्या, आत्मघाती और अकर्मण्यता को प्रतिष्ठापित करने वाले एक श्लोक, ‘ब्रह्म सत्यम् जगद् मिथ्या ‘को प्रतिपादित कर इस देश और समाज को अकर्यमण्यता,आस्था और अंधविश्वास के गर्त में ढकेल दिया ! इसी वजह से यह देश तमाम पाखंण्डों, आस्था, अंधविश्वासों, मूढ़ताओं, अश्पृश्यता, जातिगत् संकीर्णता, छूआछूत आदि हजारों तरह की बुराइयों में हजारों वर्षों के लिए फँसा दिया।

इसका सबसे बड़ा नुकसान इस देश और इस समाज को यह हुआ कि कभी आर्थिक समृद्धि में विश्व का सिरमौर देश सामाजिक विघटन और फूट से हजारों सालों के लिए गुलामी के नर्क भोगने को अभिशापित हो गया। वेदांत का संदेश भी ‘ब्रह्म सत्यम, जगत मिथ्या’ और ‘जिवो ब्रह्मेव नापराह’ में सिमटा है। अर्थात् केवल ब्रह्म सत्य है, बाकी चीजें असत्य हैं और हर जीव में ईश्वर यानी ब्रह्म का वास है। ‘इसका मतलब यह है कि हम-आप, यह दुनिया,समस्त भौतिक संसार आभासी और बिल्कुल मिथ्या है। वास्तविक सत्य काल्पनिक परलोक, आस्था, स्वर्ग, जन्नत आदि-आदि तमाम काल्पनिक चीजें हैं, जो वास्तव में कहीं हैं ही नहीं। आज की ज्ञान-विज्ञान से सम्पन्न दुनिया में भी इस तथाकथित परलोक, आस्था, स्वर्ग, नरक आदि भ्रामक जगहों की खोज नहीं हो पा रही है।

आखिर आज के वर्तमान समय में ऊपर वाले तथाकथित स्वर्ग और नीचे वाले तथाकथित नरक या पाताललोक का स्थान निर्धारित तो हो ही जानी चाहिए। लेकिन अफसोस़ अभी तक किसी भी आधुनिकतम अंतरिक्षयान न ऊपर वाले कथित स्वर्ग और कोई भी आधुनिकतम् पनडुब्बी भी किसी नीचे वाले यानी पाताल लोक या नरक को अभी तक नहीं ढूंढ पाई है। अत्यन्त दुख है कि अभी भी इस देश की जनता इतनी विशाल संख्या में अशिक्षित रखी गई है कि इन पाखंण्डों और मूर्खतापूर्ण बातों से बाहर नहीं निकल पा रही है।

हजारों किसान प्रतिवर्ष इन कुटिल राजनीतिज्ञों और धर्म की काली करतूतों से आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं, करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगारी, गरीबी, आर्थिक बदहली से त्रस्त होकर भूखे पेट सोने को अभिशप्त हैं, परन्तु अभी भी इस देश के नेता, अभिनेता और धार्मिक ठेकेदार जातिगत संकीर्णता, धार्मिक कूपमंडूकता को ही बढ़ा रहे हैं और कालेधन के सबसे बड़े अड्डे बने मंदिऱों में अभी जनता की गाढ़ी मेहनत की कमाई की राशि को निर्लज्जतापूर्वक करोंड़ों के सोने के मुकुट और नगद के रूप में चढ़ाकर पहले से जारी पाखंण्ड और अंधविश्वासों को पुनर्प्रतिष्ठित कर रहे हैं। यह इस देश के लिए अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इस देश के प्रबुद्धजन इस देश की इस दुर्दशा के इन कारणों के निवारण हेतु अपना अमूल्य योगदान, निर्भीकता और साहस के साथ बगैर जातिगत् और धार्मिक संकिर्णता के साथ मिल-जुलकर करें तभी इस देश और यहाँ के नागरिकों को धर्म और अंधविश्वास के नाम पर इस नारकीय जीवन से मुक्ति मिल सकती है और तभी ये दिल्ली के बुराड़ी के कथित मोक्ष के लालच में बच्चे से लेकर सत्तर साल की वृद्धा तक सामूहिकतौर पर फाँसी पर नहीं लटकेंगे।

निर्मल कुमार शर्मा

निर्मल कुमार शर्मा
गाजियाबाद, उप्र. ईमेल[email protected]

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