सनातन धर्म में भाई-बहन के स्नेह के प्रतीक के रूप में दो त्योहार

विनय सिंह बैस, नई दिल्ली । सनातन धर्म में भाई-बहन के स्नेह के प्रतीक के रूप में दो त्योहार मनाए जाते हैं :-1. पहला ‘रक्षाबंधन’ जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन सामान्यतः बहने अपने भाई के घर या मायके जाती है। इसमें भाई बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता है।

2. दूसरा त्यौहार ‘भाई दूज’ का होता है। भाई दूज का त्यौहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। भैया दूज के दिन भाई अपने बहन के घर जाता है। इसमें बहने भाई की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य की दो पत्नियां थीं- संज्ञा और छाया। संज्ञा से पुत्र यमराज और पुत्री यमुना का जन्म हुआ था। कालांतर में यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई और यमुना गोलोक में निवास करने लगी। लेकिन यमराज और यमुना के बीच बहुत प्रेम और स्नेह था। एक बार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यमुना ने अपने भाई यमराज को निमंत्रण भेजा। यमुना के निमंत्रण पर यमराज यमुना के घर गए। यमुना ने स्नान और पूजन के बाद स्वादिष्ट व्यंजन यमराज को दिए और आदर सत्कार किया। यमुना के सत्कार से यमराज बेहद प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा।

तब यमुना ने निवेदन किया कि आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आए और मेरी तरह जो बहन इस दिन भाई का आदर सत्कार कर टीका करे, उसको तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने यमुना को तथास्तु कहकर आशीर्वाद दिया तथा वस्त्र और आभूषण देकर यमलोक की ओर प्रस्थान किया।

भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जो भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाता है, उसे अनिश्चित मृत्यु का भय नहीं रहता।

द्वापर युग की एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण राक्षस नरकासुर को हराने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे। सुभद्रा ने फूलों की माला से उनका स्वागत किया उनके माथे पर टीका लगाया और आरती की। तब से ही भाई दूज का त्यौहार शुरू हुआ।

भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों का तिलक करती हैं और उनके सुख समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। वहीं भाई अपनी बहनों के पैरों को छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उपहार देते हैं।

Vinay Singh
विनय सिंह बैस

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