“ट्रम्प के टैरिफ्स: ग्लोबल ट्रेड में भूचाल, क्या भारत के लिए छिपा है एक मौका?”

निशान्त, Climateकहानी, कोलकाता। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की एक सिग्नेचर ने फिर दुनिया भर के व्यापार समीकरणों को हिला कर रख दिया है।

2 अप्रैल को व्हाइट हाउस के रोज़ गार्डन से ट्रम्प ने ‘लिबरेशन डे’ की घोषणा करते हुए करीब 60 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ्स लगाने का एलान किया।

इस कदम ने ग्लोबल मार्केट्स में हलचल मचा दी — चीन पर 54%, वियतनाम पर 46%, बांग्लादेश पर 37% और थाईलैंड पर 36% का इम्पोर्ट टैक्स लगाया गया। भारत को भी छूट नहीं मिली, लेकिन ट्रम्प ने यहां एक ‘डिस्काउंटेड ऑफर’ पेश किया: शुरुआती 27% टैरिफ की जगह 26% पर बात खत्म की गई।

ये टैरिफ्स सिर्फ संख्या नहीं हैं — ये वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर सीधा प्रहार हैं, जो GATT और WTO जैसे समझौतों के ज़रिए दशकों से आकार लेती रही है। अब ट्रम्प के फैसले से न सिर्फ आपूर्ति शृंखलाएँ चरमराई हैं, बल्कि मुद्रास्फीति और एक संभावित मंदी का डर भी गहराया है।

22.5% के औसत टैरिफ रेट के साथ अमेरिका 1930 की स्मूट-हॉले एक्ट जैसी ऐतिहासिक गलती दोहराने की कगार पर है, जिसने तब वैश्विक मंदी को और भड़का दिया था।

"Trump's tariffs: Global trade shakeup, is there an opportunity hidden for India?"

  • ट्रेड वॉर का नया अध्याय

चीन ने करारा जवाब दिया है — अमेरिका से आने वाले सभी सामानों पर 34% का blanket टैरिफ। यूरोपीय संघ भी पलटवार की तैयारी में है। फ्रांस ने संकेत दिए हैं कि वे अमेरिकी टेक कंपनियों पर डेटा उपयोग को लेकर नियंत्रण बढ़ा सकते हैं।

दिलचस्प बात ये है कि ट्रम्प के अपने खेमे में भी एकमत नहीं दिखता — एलन मस्क ने EU-अमेरिका के बीच ‘जीरो टैरिफ़ फ्री ट्रेड ज़ोन’ का सुझाव दे दिया है।

अप्रैल 5 से शुरू होने वाले इन टैरिफ्स का पहला चरण 10% की यूनिवर्सल दर से लागू होगा, जो 9 अप्रैल से देश-विशेष दरों में बदलेगा। कुछ वस्तुओं को छूट दी गई है — जैसे दवाइयां, सेमीकंडक्टर्स, ऊर्जा उत्पाद, और वो गुड्स जिनमें 20% या उससे अधिक अमेरिकी कंटेंट है।

  • भारत के लिए मौका?

ट्रम्प के इन फैसलों से भारत को भी झटका तो लगेगा, लेकिन विशेषज्ञों की राय में ये झटका उतना तीव्र नहीं होगा। पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने ट्रम्प की रणनीति को “सेल्फ-गोल” कहा है।

Global Trade Research Initiative की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर लगे 26% के टैरिफ बाकी एशियाई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कम हैं — जो कि भारतीय टेक्सटाइल्स, मशीनरी, ऑटो और टॉय इंडस्ट्री के लिए संभावनाओं के दरवाज़े खोलते हैं।

लेकिन ये तभी मुमकिन है जब भारत अपने मैन्युफैक्चरिंग बेस, वैल्यू एडिशन और लॉजिस्टिक्स में तेज़ सुधार करे।

भारत के पास अब मौका है—सेमीकंडक्टर के फेब्रिकेशन नहीं तो पैकेजिंग और टेस्टिंग जैसे सेगमेंट में घुसपैठ की जाए। टेक्सटाइल सेक्टर में अमेरिका में खोले गए स्पेस को भरा जाए। और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अगर थोड़ा भी शिफ्ट आया, तो भारत को इसका लाभ मिल सकता है।

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  • पर्यावरण की दिशा में झटका?

हालांकि एक बड़ी चिंता ये भी है कि इन टैरिफ्स से ग्लोबल रिन्युएबल एनर्जी इन्वेस्टमेंट्स पर असर पड़ सकता है। अगर स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी तकनीकों पर भी टैक्स लगाया गया तो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग की गति धीमी पड़ सकती है।

ऐसे में भारत और चीन जैसे देशों को अपने अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों पर टिके रहना पहले से कहीं ज़्यादा अहम होगा।

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