आदिवासी राष्ट्रपति चुन लिए, लेकिन कब रुकेंगे आदिवासियों, पिछड़ों वंचितो पर अत्याचार?

डॉ. विक्रम चौरसिया, नई दिल्ली । राष्ट्र को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू जी मिल गई है। लेकिन देखे तो धरातल पर आदिवासियों, जनजातियों पिछड़ों व वंचितों के हालात क्या है किसी से छुपा नहीं है। कुछ माह पूर्व ही एनसीआरबी के आंकड़े चौंकाने वाले देखे गए। हम सभी विश्व आदिवासी दिवस आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों के सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक सुरक्षा के लिए ही प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मानते है, जो की पहली बार आदिवासी या मूलनिवासी दिवस 9 अगस्त 1994 को जेनेवा में मनाया गया था।

आज हमारा जब राष्ट्र आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, आजादी के नायकों को याद कर रहा है। ऐसे में यह भी जरूरी है कि आदिवासियों के राष्ट्रप्रेम और इस प्रेम में दिए उनके अनोखे बलिदान को भी याद क्यों नहीं किया जाए। देखे तो 1790 का ‘दामिन विद्रोह’, 1828 का ‘लरका आन्दोलन’, 1855 का संथाल का विद्रोह, यह सभी ऐसे आंदोलन रहे जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासियों ने अपना बलिदान दिया था। आदिवासियों या वनवासियों की अपनी मिट्टी के प्रति प्रतिबद्धता ही राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता और सम्मान है।आदिवासी राष्ट्र को सिर्फ स्वतंत्र ही नहीं बल्कि जागृत करने में भी इनका योगदान है। आज एक सवाल जरूर जेहन में उठ रहा है कि आदिवासी राष्ट्रपति चुन सकता है भारत, लेकिन कब रुकेंगे आदिवासियों पर अत्याचार?

हम सभी ने देखा ही की रोहित वेमुला का भी मामला जनवरी 2016 में तब भड़क उठा, जब इस युवा पीएचडी शोधार्थी ने अपनी जान इसलिए दे दी, क्योंकि हैदराबाद विश्वविद्यालय ने उसकी स्कॉलरशिप बंद कर दी थी, इसके बाद, कैंपस में प्रदर्शन कर रहे दलित और वामपंथी कार्यकर्ताओं पर कड़ी कार्रवाई भी की गई। ऐसे ही देश के अन्य कोने में अलग-अलग मामले देखने में आते ही रहते हैं। ऐसे में आखिर सवाल तो उठता ही है की आखिर इस बढ़ती भेदभाव को समाप्त कैसे किया जाए? हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में बराबरी की बाते की गई है वही पिछले वर्ष जेएनयू में लिखती परीक्षा में अव्वल आने वाली आदिवासी बहन को इंटरव्यू में 1 अंक देकर नामांकन लेने से वंचित कर दिया गया था, आखिर ये भेदभाव क्यों?

vikram
डॉ. विक्रम चौरसिया

चिंतक/आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय
लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे है व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहे हैं।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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