इस साल होलाष्टक 07 मार्च शुक्रवार से होंगे प्रारंभ और 14 मार्च शुक्रवार को होंगे

वाराणसी। होलाष्टक केवल देश के कुछ क्षेत्रों में ही प्रचलित है। आइए जानते हैं कि यह किन स्थानों पर मनाया जाता है और कहां नहीं। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस वर्ष होलाष्टक 07 मार्च शुक्रवार से शुरू होकर 14 मार्च शुक्रवार को समाप्त होंगे।

धर्म से जुड़ी धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार, होली से ठीक आठ दिन पहले विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ-हवन, सगाई, मुंडन संस्कार और अन्य शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। इन आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि होलाष्टक केवल देश के कुछ क्षेत्रों में ही प्रचलित है। आइए जानते हैं कि यह किन स्थानों पर मनाया जाता है और कहां नहीं।

होलाष्टक का उल्लेख शास्त्रों में :
1) मुहूर्त चिंतामणि (श्लोक 40)
“विपाशैरावतीतीरे शुतुद्रयाश्च त्रिपुष्करे।
विवाहादिशुभे नेष्टं होलिकाप्राग्दिनाष्टकम्।।”

2) मुहूर्त गणपति (श्लोक 204)
“ऐरावत्यां विपाशायां शतद्रौ पुष्करत्रये।
होलिका प्राग्दिनान्यष्टौ विवाहादौ शुभे त्यजेत्।।”

होलाष्टक का प्रभाव किन क्षेत्रों में माना जाता है? शास्त्रों के अनुसार, विपाशा (व्यास), इरावती (रावी), शुतुद्री (सतलुज) नदियों के निकटवर्ती नगर, ग्राम एवं क्षेत्र तथा त्रिपुष्कर (पुष्कर) क्षेत्र में होलाष्टक दोष प्रभावी रहता है। इन क्षेत्रों में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) से पूर्व के आठ दिनों में विवाह, यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

इस प्रकार संपूर्ण पंजाब प्रांत, हिमाचल प्रदेश के कुछ भाग तथा राजस्थान में अजमेर (पुष्कर) एवं आसपास के क्षेत्रों में विशेष रूप से होलाष्टक का पालन करना शास्त्र सम्मत माना जाता है।

लेकिन देश के कई हिस्सों में जैसे दक्षिण भारत, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि में होलाष्टक की परंपरा नहीं मानी जाती और वहां इन दिनों में शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

होलाष्टक का पौराणिक संदर्भ : राजा हिरण्य कश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवान श्री विष्णु की भक्ति से रोकने के लिए अनेक प्रयास किए। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक उसने प्रह्लाद को अत्यधिक यातनाएँ दी और कई बार उसकी हत्या का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। अंततः हिरण्य कश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया।

होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती, इसलिए वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान श्री विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा की, जिससे होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित रहा। भक्त प्रह्लाद के साथ इन आठ दिनों में जो कुछ घटित हुआ, उसी कारण से होलाष्टक की परंपरा प्रचलित हुई।

होलाष्टक में क्या करें? यदि आपका स्वास्थ्य अनुकूल है, तो इन दिनों में व्रत किया जा सकता है। दान करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। इन दिनों में सामर्थ्य अनुसार फल, मिठाई, अनाज, वस्त्र, धन आदि का दान शुभ फलदायी माना जाता है।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

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