भाषा का उद्देश्य आतंकित करना नहीं, संवाद स्थापित करना है

राजकुमार गुप्त, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता

21 फरवरी भाषा दिवस पर आज से लगभग 12 या 13 वर्ष पहले की एक घटना याद आ गई। मेरी बेटी के इंग्लिश मीडियम स्कूल में बंगला भाषी प्रिंसिपल साहिबा थी, जो कि फर्राटेदार इंग्लिश में बातचीत करती थी। चुकी इंग्लिश मीडियम स्कूल था सो वह अपनी जगह सही थी परंतु ज्यादातर 99% हम जैसे हिंदी भाषी अभिभावकों को प्रिंसिपल साहिबा से मिलने में दिक्कत होती थी क्योंकि वह सिर्फ इंग्लिश भाषा में ही बातें करके अभिभावकों को आतंकित कर देती थी और दहशत के मारे अभिभावक गण उनसे मिलने से कतराते थे और अपनी समस्या या शिकायतों को ले कर परेशान रहते थे। अतः एक बार हम आठ दस अभिभावकों ने ठीक किया की मैडम से इस विषय में बात की जाए परंतु बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?

इस बीच स्कूल पक्ष और अभिभावकों के बीच कुछ मतभेदों को लेकर अभिभावकों की कमेटी का गठन किया गया और मैं सह सचिव चुना गया था सो विभिन्न मुद्दों को सुलझाने के लिए स्कूल के मैनेजिंग कमेटी के साथ एक मीटिंग की गई और उस मीटिंग में इस मुद्दे को भी मैंने उठाया कि प्रिंसिपल मैडम आप अभिभावकों से सिर्फ इंग्लिश में ही बात करती हैं जो कि ठीक नहीं है, तो उन्होंने कहा कि यह इंग्लिश मीडियम स्कूल है अतः मैं सिर्फ इंग्लिश में ही बातें करुँगी। हमलोगों ने उन्हें समझाया कि विद्यार्थियों के साथ तो यह बिलकुल ठीक है परंतु आप उनके अभिभावकों के बारे में सोचें जो इंग्लिश नहीं जानते हैं या कम जानते हैं। इस तरह से आप अभिभावकों को अंग्रेजी भाषा द्वारा आतंकित नहीं कर सकती हैं, तो उन्होंने कहा कि वो हिंदी समझ तो लेती हैं परंतु अच्छी तरह से बातचीत नही कर सकती हैं।

मैंने कहा कि जिस तरह आप अच्छी हिंदी नहीं बोल पाती हैं, ठीक वैसे ही ज्यादातर अभिभावक भी इंग्लिश समझ या बोल नहीं पाते हैं। आप चाहे तो अपनी मातृभाषा बंगला या फिर कमजोर हिंदी में ही बातें करें जिससे कि आपके सामने वाला सहज होकर आपसे संवाद स्थापित कर सके, धन्यवाद मैडम का कि उन्होंने हमारी बातों को अच्छी तरह से समझा और जब तक स्कूल में रही सभी अभिभावकों से बांग्ला या हिंदी में सहज संवाद करती थी। आज उनके स्कूल से अवकाश ले लेने के बर्षो बाद भी मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से जुड़ा हुआ हूं और हमारी बातें बांग्ला में ही होती है और व्हाट्सएप पर भी बांग्ला में ही लिख कर मैं सहज संवाद करता हूं।

मेरी बेटी उसी स्कूल से 10+2 तक की पढ़ाई की तथा हमेशा कक्षा में अब्बल रही और मैडम का आशीर्वाद भी आज तक बना हुआ है और मेरी बेटी इंग्लिश में ही कविता और छोटी-छोटी कहानियां लिखती है और संपादन भी करती है। उसके बहुत सारे किताब प्रकाशित हो चुके है तथा अभी पत्रकारिता में ही मास्टर्स कर रही है दिल्ली से, फिर भी वह ज्यादातर अपने लोगों और परिवार के बीच अपनी मातृभाषा हिंदी का ही प्रयोग करती है। कहने का तात्पर्य यही है कि आप जिस किसी भी भाषा भाषी के हो सामने वाले को समझ और सहज कर उनसे संवाद स्थापित करें जिससे कि सामने वाला आतंकित ना हो साथ ही अपनी मातृभाषा पर भी गर्व महसूस करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *