तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर। झाड़ग्राम के कुंडलडिहि के पुकुरिया यूनाइटेड क्लब इस वर्ष अपनी 57वीं श्यामा पूजा में एक अनोखा और विचारोत्तेजक थीम अपना रहा है- “बांसतला में ट्रेन की टक्कर से हाथियों की मौत।” इस पूजा का उद्देश्य लोगों के बीच वन्यजीव संरक्षण का संदेश फैलाना है।
18 जुलाई को झाड़ग्राम के बांसतला में एक भयानक हादसा हुआ था, जब टाटा-खड़गपुर रेल लाइन को पार करते समय हाथियों के झुंड को डाउन हावड़ा-बड़बिल जन शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन ने जोरदार टक्कर मारी।
इस हादसे में एक शावक सहित तीन हाथियों की मौके पर ही मौत हो गई। इस दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे क्षेत्र को शोक में डुबो दिया था। उसी घटना को केंद्र में रखकर इस बार की श्यामा पूजा का थीम चुना गया है।

क्लब के पदाधिकारियों ने कहा कि उनका उद्देश्य समाज को यह संदेश देना है कि भविष्य में इस तरह की कोई और दुर्घटना न हो। क्लब के सचिव मनोहर महतो ने बताया कि मनुष्य और हाथी दोनों की सुरक्षा बनी रहे, यही उनका मुख्य संदेश है।
क्लब के एक अन्य सदस्य संदीप महतो ने कहा कि झारखंड से हाथियों का झुंड गिधनी रेंज से होते हुए डुलुंग नदी पार करके जामबनी रेंज से निकलकर झाड़ग्राम रेंज और फिर पुकुरिया क्षेत्र में प्रवेश करता है। इस कारण से इलाके के लोग अक्सर डर के माहौल में रहते हैं।
साल के ज्यादातर समय में पुकुरिया में हाथियों का झुंड या बिखरे हुए 2-1 हाथी भोजन की तलाश में गांवों में घुस आते हैं, जिससे फसलों का नुकसान होता है और कभी-कभी लोगों की जान भी जाती है।
हाल ही में पुकुरिया में एक वनकर्मी की भी हाथियों के हमले में मौत हो चुकी है। इसलिए इस पूजा के मंच से लोगों के बीच कई सामाजिक संदेश फैलाए जाएंगे। हाथियों के रास्ते में कोई बाधा न डालें, जंगल में जाकर वीडियो या “रील” बनाकर हाथियों को परेशान न करें, यह जानलेवा हो सकता है।
गर्मियों में कोई जंगल में आग न लगाए और पेड़ों में कील न ठोके ताकि उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहे। इस पूजा को लेकर आठ से दस गांवों के लोग, उनके परिजन, बच्चे और बुजुर्ग सभी उत्साह से भाग लेते हैं और कुछ दिनों तक पूरे आनंद के साथ त्योहार मनाते हैं।
इस थीम को तैयार कर रहे हैं जामबनी ब्लॉक के मुनीयादा गांव के हरीशंकर महतो। उन्होंने बताया कि मंडप में जन शताब्दी एक्सप्रेस के इंजन का कृत्रिम मॉडल बनाया जा रहा है और साथ ही शावक सहित पांच हाथियों की आकृतियाँ होंगी, जिनमें से दो कटे हुए रूप में दिखाए जाएंगे।
कृत्रिम शाल के पेड़ भी लगाए जाएंगे। हर वर्ष की तरह इस बार भी पर्यावरण अनुकूल सामग्रियों से मंडप तैयार किया जा रहा है। पूरे आयोजन का बजट लगभग डेढ़ लाख रुपये है। आयोजकों को उम्मीद है कि इस अनोखे और भावनात्मक थीम को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग उमड़ेंगे।
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