माता जानकी की महिमा गान कर अभिभूत हुए श्रोता एवं कविगण

कोलकाता। हिन्दी साहित्य भारती पश्चिम बंगाल प्रांत द्वारा जानकी जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में रचनाकारों ने श्रोताओ का मन मोह लिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार डॉ. आनंद पांडे ने की। मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार कवि गजेन्द्र नाहटा उपस्थित थे और विशिष्ट अतिथि के रूप में कोलकाता के मशहूर हास्य व्यंग्य के कवि जयकुमार रुसवा जी उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ संस्था के ध्येय गीत हम हिन्दी साहित भारती के साधक से हुआ जिसे प्रांतीय अध्यक्षा हिमाद्रि मिश्र ने प्रस्तुत किया। मातृवंदना रंजना झा ने प्रस्तुत किया और स्वागत भाषण विजय ईस्सर ने दिया। कार्यक्रम सीता नवमी पर था अतएव सम्पूर्ण कार्यक्रम सीतामय रहा।

विशिष्ट अतिथि ने राम पर कई एक छंद सुनाए वहीं आलोक चौधरी ने हाल ही की पहलगांव वाली घटना का जिक्र करते हुए “ये सीता नवमी कैसे मनाऊँ माँ” जैसी रचना की प्रस्तुति दी। रंजना झा ने मां सीता को आदर्श मानते हुए आज की मातृशक्ति से आह्वान किया कि “क्यों तुम अपना स्त्रीत्व खो रही हो।” विजय ईस्सर ने मिथिला धाम का जयगान किया।

श्रीनारायण झा की कविता – “इस सहन में शाम को भी अब दिया जलता नहीं।” गजेन्द्र नाहटा जी की “सफर जिंदगी का है लम्बा, हम यूं ही गुजरते जायेगें” कमल पुरोहित की – “नित याद करती हूं फरियाद करती हूं” खेता गुप्ता श्वेताम्बरी – “भू धरा के गर्भ का, प्रमाण जानकी, एक राम सत्य तो, विधान जानकी!”

उषा जैन सीता आई उपवन, रघुवर को देखा, छवि भर लाई नैनन” प्रणति ठाकुर – “झिर-झिर बहे पुरवइया, हे मईया तोहरे किनारे” सुषमा राय पटेल और पुष्पा मिश्रा की कविताओ ने मन मोह लिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन नीलम झा ने किया और संयोजन हिमाद्रि मिश्र ने।

अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. आनंद पांडे ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम संस्कृति संवर्द्धन में सहायक होते हैं। मुख्य अतिथि गजेन्द्र नाहाटा ने भी कार्यक्रम की सराहना करते हुए सब की रचनाओं की प्रशंसा की। कार्यक्रम का समापन कल्याण मंत्र के साथ हुआ।

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