डीपी सिंह की रचनाएं
ज़ुबां कड़वी है, मीठी, तो कभी अनमोल मोती है ये जब मुँह में नहीं होती,
सुधीर सिंह की कविता : मेरा भारत महान
।।मेरा भारत महान।। सुधीर सिंह तु ही मेरा सपना तु ही मेरी जान हैं प्यार
पारो शैवालिनी की कविता : क्या यह अच्छा नहीं होता
।।क्या यह अच्छा नहीं होता।। पारो शैवलिनी क्या यह अच्छा नहीं होता आजादी के इस
गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा की कविता : ‘भूल गया’
।।भूल गया।। गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा मोबाइल पर मैसेज लिखते-लिखते खत लिखना ही भूल गया,
डीपी सिंह की रचनाएं
आज तलक जो घिरे रहे हैं सदा कागजी शेरों से, सिंहों की मुद्रा पर अब
डीपी सिंह की कुण्डलिया
निसि दिन माया-योग से, लगते नाना रोग वहीं रोग के भोग से, मुक्त कराता योग
डीपी सिंह की रचनाएं
हम तो जनसंख्या अपनी घटाते रहे और वो लश्कर पॅ लश्कर बनाते रहे धूर्त सत्ता
डी.पी. सिंह की रचनाएं
घर का दायित्व, कमज़ोर होने न दे कष्ट हो, पर पिता को वो रोने न
डी.पी. सिंह की रचनाएं
विपक्ष चरितम् आओ! भारत बन्द कराएँ शान्ति, विकास, प्रगति से खेलें, जाति धर्म का ज़हर
डी.पी. सिंह की रचनाएं
धर्म-निरपेक्षता के सिरे पर खड़े कैसे ज़िद पर अड़े हैं ये चिकने घड़े मालिकी की