डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया जग में है इक क़ौम जो, करती “गन” की बात स्वांग करे डर का
डीपी सिंह की रचनाएं
नेतृत्व जिनसे उम्मीद थी, खाइयाँ पाटते रह गए वो वतन छाँटते-काटते बाँटते जातियों में किसी
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया फिर से घर में हों वही, एक-नेक परिवार सुगठित स्वस्थ समाज से, जुड़ें सभी
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया मय कुटुम्ब हो आप को, मङ्गलमय नव-वर्ष सकल विश्व में शान्ति हो, पायें सब
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया दिल्ली ऐसा राज्य है, जैसे कोई नार उस बेचारी नार के, हैं दो दो
डीपी सिंह की रचनाएं
राम आएँगे, शबरी को विश्वास था राममय उसका हर श्वास-उच्छवास था आ गये, क्यों कि
किशन सनमुख़दास भावनानी की व्यंग कविता- मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं
व्यंग्य कविता ।।मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं।। किशन सनमुख़दास भावनानी मैं लोगों को
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया हिन्दी में जो हेय था, इंग्लिश देती मान अब रखैल को मिल रहा, लिव-इन
डीपी सिंह की रचनाएं
प्रकृति बिना कैसी प्रगति? डीपी सिंह धुन्ध-धुएँ से हो रहा, आच्छादित आकाश। इस पिशाच के
अभिनन्दन है राम आपका, राम! आपका अभिनन्दन!!
एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद लंका विजय के उपरान्त प्रभु श्री राम अपने घर लौट