डीपी सिंह की रचनाएं

राम आएँगे, शबरी को विश्वास था राममय उसका हर श्वास-उच्छवास था आ गये, क्यों कि

किशन सनमुख़दास भावनानी की व्यंग कविता- मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं

व्यंग्य कविता ।।मैं खुद पर अमल नहीं करता हूं।। किशन सनमुख़दास भावनानी मैं लोगों को

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया हिन्दी में जो हेय था, इंग्लिश देती मान अब रखैल को मिल रहा, लिव-इन

डीपी सिंह की रचनाएं

प्रकृति बिना कैसी प्रगति? डीपी सिंह धुन्ध-धुएँ से हो रहा, आच्छादित आकाश। इस पिशाच के

अभिनन्दन है राम आपका, राम! आपका अभिनन्दन!!

एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद लंका विजय के उपरान्त प्रभु श्री राम अपने घर लौट

दीपावली पर विशेष : बाल गीत

।।झट पट दिए निकालो बच्चों, आया दीपों का त्योहार।। चिड़ियाँ चहक रहीं उपवन में घर

डीपी सिंह की रचनाएं

खा के पैसे – ज़मीन, भूल गये कर के वा’दे हसीन, भूल गये देखा हमने

सौमित्र मोहन की कविता : मैं बड़ा हो गया हूँ

।।मैं बड़ा हो गया हूँ।। सौमित्र मोहन मुझे लगता है मैं बड़ा हो गया हूँ

डीपी सिंह की रचनाएं

मैडम का खड़ाऊँ ले, खड़गे जी माथे पर घोड़ों में देखेंगे गधे कितना दौड़ाते हैं

डीपी सिंह की रचनाएं

साँप नेवले चूहों में ठगबन्धन की तैयारी है पर आपस में भीतर भीतर टाँग खिंचाई