श्री गोपाल मिश्र की रचना : ‘तपस्या इक प्रेयसी’
।।तपस्या इक प्रेयसी।। प्रश्न पर्व (तपस्वी) रूपसी तेरा लावण्य पाश! क्यूं चुरा रहा मेरे मन-चितवन
डॉ. आर.बी. दास की कविता : जिंदगी
।।जिंदगी।। थोड़ा थक गया हूं, दूर निकालना छोड़ दिया है, पर ऐसा नहीं है की,
बच्चों की कलम से : हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना
।।हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।। हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना। अपने
डॉ. आर.बी. दास की रचना
जिंदगी में आधा दुःख गलत लोगों से “उम्मीद” रखने से आता है, और बाकी का
श्री गोपाल मिश्र की रचना : विद्रोह की पूर्व संध्या
।।विद्रोह की पूर्व संध्या।। जरा देख लो मेरे जां-नशीं, ऐ हिंद के सुल्तान बामुलाहिजा होशियार!
श्री गोपाल मिश्र की रचना : यत्र नार्यस्तु पूज्यंते
।।यत्र नार्यस्तु पूज्यंते।। उष्ण तप्त दोपहर है, लड़कियों की जिंदगी। कंकड़ीली इक डगर है, लड़कियों
डॉ. आर.बी. दास की रचना
मंजिलों का इंतजार नहीं, सफर का मजा लीजिए, हर गुजरते पल के साथ, खुद को
श्री गोपाल मिश्र की नुक्ता : गुरबत इक रोज
।।गुरबत इक रोज।। लिखने बैठा जो गरीबी का ग्लैमर तो देखा, कलम की रवानी में
डॉ. आर.बी. दास की रचना
जिंदगी में कामयाबी, हाथों की लकीरों से नहीं, मेहनत के पसीना से मिलती है। कामयाब
श्री गोपाल मिश्र की रचना : अध्यात्म में प्रदूषण
।।अध्यात्म में प्रदूषण।। इच्छा नहीं इंसान की, ईश्वर तक पहुंचने की बस औपचारिकता वश, वह