जम्बू द्वीप से हिन्दुस्थान बनने की कहानी

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी । सनातन काल में जंबूद्वीप में स्थित था आर्यावर्त। “आर्य” का अर्थ है “ज्ञानी” और “वर्त” क अर्थ है “निवास स्थान” यानी परम ज्ञानी जहाँ निवास करते थे उस प्रदेश को आर्यावर्त कहते थे। आर्यावर्त उप महाद्वीप को ‘भरतखंड’ या ‘भरत भूमि’ भी कहा जाता है। इस उप महाद्वीप के पहले चक्रवर्ती थे भरत महाराज। भरत चक्रवर्ती के नाम से इस उपखंड का नाम पड़ा भारत। सनातन भारत आज जितना छोटा नहीं अपितु बहुत बड़ा भूभाग था।

पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी द्वीपों के बीचो बीच स्थित है। जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) वृक्ष के इस द्वीप पर अधिक मात्रा में पाए जाने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।

जम्बू द्वीप से छोटा है भारतवर्ष। भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था। आज न जम्बू द्वीप है न भारतवर्ष और न आर्यावर्त। आज सिर्फ हिन्दुस्थान है और सच कहें तो यह भी नहीं। क्या कारण हैं कि वेदों को मानने वाले लोग अब अपने ही देश में दर-बदर हैं? वह लोग जिनके कारण ही दुनियाभर के धर्मों और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई, वह लोग जिनके कारण दुनिया को ज्ञान, विज्ञान, योग, ध्यान और तत्व ज्ञान मिला।

”सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः।
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।।

-वेदव्यास, भीष्म पर्व, महाभारत

हिन्दी अर्थ : हे कुरुनन्दन! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भांति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखाई देता है। इसके दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (खरगोश) दिखाई देता है। अर्थात : दो अंशों में पिप्पल का अर्थ पीपल के दो पत्तों और दो अंशों में शश अर्थात खरगोश की आकृति के समान दिखाई देता है।

आप कागज पर पीपल के दो पत्तों और दो खरगोश की आकृति बनाइए और फिर उसे उल्टा करके देखिए, आपको धरती का मानचित्र दिखाई देगा।
यह श्लोक 5 हजार वर्ष पूर्व लिखा गया था। इसका मतलब लोगों ने चंद्रमा पर जाकर इस धरती को देखा होगा तभी वह बताने में सक्षम हुआ होगा कि ऊपर से समुद्र को छोड़कर धरती कहां-कहां नजर आती है और किस तरह की।

महाभारत में विश्वामित्र और मेनका की एक कहानी आती है। मेनका स्वर्ग से भूलोक आती है और विश्वामित्र की तपस्या को भंग कर उनसे विवाह करती है। उन दोनों की एक पुत्री होती है जिसका नाम है शकुन्तला देवी। देवी शकुन्तला को कन्व ऋषी ने पाल पोस कर बड़ा किया था। शकुन्तला देवी जब वयस्क हो जाती है तो वह राजा दुष्यंत के प्रेम में पड़ जाती है और दोनों गंधर्व विवाह करते है।

पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत की गणना ‘महाभारत’ में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। मान्यता है कि राजा भरत के नाम से ही आर्यावर्त का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा। भरत का एक नाम ‘सर्वदमन’ भी था क्योंकि इसने बचपन में ही बड़े-बड़े राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन किया था। और अन्य समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज ही परास्त कर अपने अधीन कर सर्वदमन नाम से प्रचल्लित थे। अपने जीवन काल में उन्होंने यमुना, सरस्वती तथा गंगा के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रवृत्ति से दानशील तथा वीर थे। राज्यपद मिलने पर भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। प्रतिष्ठान के स्थान पर हस्तिनापुर को राजधानी बनाया। जो भी राज्य भरत के साम्राज्य में आये उसे भरत भूमि कहा गया।

आर्यावर्त के भरत पहले चक्रवर्ती के रूप में उभर कर आते हैं जिस कारण इस उप महाद्वीप का नाम भरत भूमि या भरत वर्ष हो जाता है। यधपि यही भूभाग आगे चलकर भारत नाम से जाना गया। जानकार कहते हैं की मौर्य साम्राज्य के काल तक इस भूभाग को आर्यावर्त नाम से ही बुलाया जाता था। स्वयं चाणक्य ने जब भी भारत का उल्लेख किया तब उसे आर्यावर्त ही कहकर संबोधित किया ऐसा जानकार कहते हैं। भरत वर्ष में व्यापार के लिए आए ग्रीकों ने सिन्धु प्रांत में रहनेवालों को हिन्दू कहना शुरु किया क्यों की वे सिन्धू शब्द का उच्चारण नहीं कर सकते थे। इसी कारण आर्यावर्त को हिन्दुस्तान कहा गया। तात्पर्य सिन्धू नदी तट के उस पार रहने वाली जनांग। देश में अंग्रेज़ों के शासन के बाद फिर से नाम बदल दिया गया। जाते जाते अंग्रेज़ों ने हमारे भारत को एक नया अंग्रेज़ी नाम ‘इंडिया’ दे दिया जिसका कॊई अर्थ ही नहीं है।

वेद पारंगत ज्ञानी कहते हैं की हिन्दू शब्द का प्रयोग ग्रीक और मुगलों ने प्रारंभ किया था उनका कहना है की तकनीकी रूप से हिन्दु शब्द का अर्थ नहीं है। काल के कपाल से गुजरते हुए जंबूद्वीप में स्थित आर्यावर्त का भारत छोटे छोटे टुकड़ों में बँटता गया। भरत खंड जो की कभी एक हुआ करता था वह जाति और भाषा के आधार पर अनेक देश के रूप में बंटता गया। भरत चक्रवर्ती से लेकर चंद्रगुप्त के काल तक संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म, हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था।

लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है। अगर इसी तरह चलता रहा तो मुट्ठी भर ज़मीन के टुकडे को ही भारत कहना पड़ेगा। यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्तान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है।

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848

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