
अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। शहर के नामी कॉलेज में पहली बार जब आलोक ने रूबी को देखा, तो उसे यकीन नहीं हुआ कि वह किसी कहानी की नायिका से कम है। बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, होठों पर मासूम मुस्कान और चेहरे पर एक अजीब-सा सुकून। वह सिर्फ़ सुंदर नहीं थी, बल्कि उसके व्यक्तित्व में एक अलग-सी बात थी – कुछ ऐसा जो दिल को गहराई तक छू जाता था। रूबी पढ़ाई में तेज थी और आलोक भी एक होनहार छात्र था। दोनों की पहली मुलाक़ात लाइब्रेरी में हुई, जब आलोक ने गलती से वही किताब उठा ली, जिसे रूबी लेने आई थी। हल्की बहस के बाद दोनों ने एक-दूसरे को मुस्कुराकर देखा और वहीं से एक अनकहा रिश्ता जुड़ गया।
जब दोस्ती बनी प्यार- दोस्ती शुरू हुई तो वक्त पंख लगाकर उड़ने लगा। कैंपस के हर कोने में उनकी हंसी गूंजने लगी। क्लासरूम, लाइब्रेरी, कैंटीन हर जगह उनकी छवि बसने लगी। आलोक को रूबी का हंसकर बात करना, उसकी हर छोटी चीज पर ध्यान देना बहुत पसंद था।
धीरे-धीरे आलोक को एहसास हुआ कि वह रूबी से मोहब्बत करने लगा है। लेकिन अपने जज़्बात का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। उधर, रूबी भी आलोक को पसंद करने लगी थी, पर वह जानती थी कि उनका साथ लंबा नहीं चल सकता।
प्रेम का इजहार और समाज की दीवारें- एक शाम दोनों कॉलेज के बगीचे में बैठे थे। सूरज ढल रहा था, और हल्की ठंडी हवा बह रही थी। आलोक ने हिम्मत जुटाई और कहा, “रूबी, मुझे नहीं पता कि यह सही है या नहीं, लेकिन मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहता हूँ।”
रूबी कुछ पल के लिए चुप रही। फिर धीमे से बोली, “आलोक, अगर यही सच है, तो यह भी सच है कि हमारे रास्ते अलग हैं। मेरे घर में प्रेम विवाह असंभव है। मेरे माता-पिता ने मेरे लिए पहले से ही रिश्ता तय कर दिया है।”
आलोक के चेहरे पर उदासी छा गई। उसने कहा, “क्या प्यार करना गलत है?”
रूबी ने आहिस्ता से उसका हाथ थामते हुए कहा, “नहीं, लेकिन समाज के नियम हमारे प्यार से ज़्यादा मजबूत हैं।”
बिछड़ने की तकलीफ- समय बीतता गया, और रूबी की शादी की तारीख़ करीब आने लगी। आलोक ने लाख कोशिश की कि वह रूबी को रोक सके, लेकिन वह अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती थी।
आख़िरकार वह दिन भी आ गया, जब रूबी विदा हो गई। आलोक स्टेशन पर खड़ा था, आँखों में आँसू और दिल में बेतहाशा दर्द। ट्रेन चली गई और उसके साथ उसकी मोहब्बत भी चली गई।
सालों बाद आलोक एक मशहूर लेखक बन गया। उसने अपनी पहली किताब लिखी—”रूबी : अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल कहानी।” यह किताब एक ऐसा प्रेम पत्र थी, जिसे रूबी कभी पढ़ नहीं सकी।
रूबी की ज़िंदगी किसी और की हो गई थी, लेकिन आलोक का प्यार हमेशा उसके दिल में जिंदा रहा। वह कभी मिले नहीं, लेकिन उनकी मोहब्बत कभी मरी भी नहीं।
“हर इश्क़ मुकम्मल नहीं होता,
पर कुछ अधूरी कहानियाँ भी अमर हो जाती हैं।”
क्रमशः

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