अर्जुन तितौरिया खटीक की कहानी : बहुरानी

अर्जुन तितौरिया खटीक, गाजियाबाद। राकेश ने नैना को आवाज लगाई कितना समय लगाओगी? उधर से नैना की आवाज आई स्त्री हूं सजने संवरने में समय तो लूंगी आखिर 3 साल के बाद ससुराल जा रही हूं। राकेश और नैना के विवाह को चार वर्ष हो चुके हैं तीन वर्ष से दोनों शहर में ही रह रहे हैं, नैना और राकेश दोनों पढ़े लिखे हैं, दोनों का कॉलेज में प्यार परवान चढ़ा और विवाह दोनों के परिवार वालों की सहमति से हुआ था।

गांव से दोनों रोजगार के लिए नगर की तरफ बढ़े थे नैना पढ़ी लिखी थी, मात्र कुछ दिन ही ससुराल में रही थी इस पूरे समय में ना तो ससुराल वाले नैना को ठीक से समझ पाए ना ही नैना ससुराल वालों को समझ पाई थी। नैना तैयार हो कर आ चुकी थी फिर भी उसके अंदर ससुराल जाने की जिज्ञासा तो थी किंतु कुछ सवाल भी थे।

नैना राकेश से बोली “सुनो जी सासू मां का गुस्सा पहले सा ही है या थोड़ा बदल गई हैं?”
राकेश ने उत्तर दिया “मैं क्या जानूं अब वो तुम्हे देख कर गुस्सा करेंगी या प्यार?” देखो नैना बड़े बूढ़े होते हैं बड़े अलग मिजाज के वो ऊपर से सख्त किंतु अंदर से प्यार का भंडार होते हैं।
बाकी बहुत कुछ हम पर निर्भर करता है और थोड़ी बहुत तकरार कहां नहीं होती?

नैना ने एक लंबी सांस ली बोली हां…बात तो सही है।
अब नैना का दूसरा प्रश्न तैयार था देखो जी पिछले बार जब हम गांव में थे तो मैने आपका गांव देखा ही नहीं, पूरा रास्ता तो घूंघट में ही निकल गया था अबकी बार देखेना हैं गांव मुझे, राजेश बोला ठीक है अब कौन सा तुम्हारे साथ बड़े बूढ़े होंगे मैं रहूंगा पूरे रास्ते देखते जाना बस अब खुश! उधर से नैना का जवाब ये हुई ना बात।

दोनों घर से निकल बस में बैठे और चल पड़े गांव की ओर सारे रास्ते बातें करते पेड़, नदी नाले देखते देखते कब शहर खत्म हुआ दोनों गांव के बाहर पहुंच चुके थे। आगे का रास्ता तांगे से जाना था। राकेश ने तांगे वाले को आवाज दी अरे भैया तांगे वाले रामनगर चलोगे?
उधर से आवाज आई हां बाबू जी चलेंगे जैसे ही तांगे वाला घुमा राकेश को देख बोला अरे राकेश भैया आप ” राम राम भैया…..राम राम भाभी जी नैना और राजेश ने अभिवादन स्वीकार किया प्रतिउत्तर में राम राम भाई अजय कैसे हो?

उधर से अजय तांगे वाला ठीक हैं भैया अपनी सुनाओ?
ठीक हूं भाई। राकेश बोला घर पर सब कैसे हैं? काका जी काकी ओर छुटकी?
उधर से अजय बोला भाई सब ठीक हैं थोड़ा सांस तो लेलो तांगे में बैठो सवाल पर सवाल दागे जा रहे हो।
दोनों हंस दिए साथ ही नैना भी हंस पड़ी। अब तांगा गांव की ओर चल पड़ा। जैसे-जैसे तांगा आगे बढ़ रहा था नैना को गांव के सुंदर दर्शन हो रहे थे, गांव में घुसते ही शिव मंदिर जो गांव की शोभा है उससे थोड़ी आगे ही कल कल बहती नहर खेत और खलियान बड़े-बड़े बड़ के वृक्ष पीपल नीम के पेड़ आम अमरूद के बाग गांव की सुंदरता को चार चांद लगा रहे थे।

अब गांव की बस्ती शुरू हो चुकी थी…..गांव की चौपाल पर कुछ बड़े बूढ़े बैठे हुए हुक्का गुड़ गुड़ा रहे थे, उन्हें देख नैना ने तुरंत घुंघट ओढ लिया ये देख राजेश ओर अजय हतप्रभ हो गए। अजय राजेश से बोला भैया बड़े अच्छे संस्कार हैं भाभी जी के नहीं तो पढ़ी लिखी लड़कियां कहां घुंघट करती हैं, राकेश बोला हां ये तो है।
उधर राकेश भी नैना के इस प्रकार घुंघट करने से थोड़ा चकित था।
धीरे से राकेश नैना से बोला “पिछली बार मां से तुम्हारी नाराजगी घूंघट को लेकर थी फिर आज क्या हुआ की तुमने खुद ही घूंघट किया”।

नैना ने उत्तर दिया बड़े जो गुस्सा करते हैं ना उसमें भी प्यार होता है, वो ऊपर से सख्त होते हैं किंतु अंदर से प्यार से भरे होते हैं आपने ही तो सिखाया था और फिर सासू मां भी तो मेरी मां हैं पिछली भूल के लिए मां जी से क्षमा मांग लूंगी आखिर में इस गांव की बहु हूं इस नाते मेरा कर्तव्य है में बड़ो का आदर सम्मान करूं ओर फिर घूंघट पिछड़ेपन का पैमाना नहीं है ना ही कोई कुप्रथा है यह तो अपने बड़ो के आदर सम्मान का प्रतीक है”।

अर्जुन तितौरिया खटीक

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