अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा । शक्ति, युक्ति एवं भक्ति का प्रतीक श्रीराम जी के परम भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमान जी को भगवान शिव का 11वां अवतार माना जाता है। भक्तों का मंगल करने के लिए प्रभु श्रीराम के भक्त हनुमानजी धरती पर चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही अवतरित हुए थे। श्रीहनुमान जी को अंजनीपुत्र, केशरीनंदन, महावीर, संकट मोचन, बजरंगबली, श्रीरामदूत, पवनपुत्र आदि नामों से भी पुकारा जाता है, जो उनके जन्मसम्मत, व्यक्तित्व और कार्य विशेष को उदभाषित करते हैं।
श्रीहनुमान जी सर्वशक्तिमान चिरायु अजर देवता हैं। वायुपुत्र अर्थात वायु तत्त्व से उत्पन्न श्रीहनुमान जी, बाल्यावस्था से ही सूर्य पर अर्थात तेज तत्त्व पर विजय प्राप्त करने में पूर्ण सक्षम रहे हैं। पृथ्वी, ताप, जल, वायु एवं आकाश तत्त्वों में से सबसे तेज और सूक्ष्म वायु तत्त्व को माना जाता है अर्थात वायु अधिक शक्तिमान तत्व है। बाल्यावस्था में ही श्रीहनुमानजी ने सूर्य को आकर्षक फल समझ कर उन्हें खाने के लिए उड़ान भरी थी।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
श्रीहनुमान जी को लगभग सभी देवताओं से विविध अतुलित शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं। सर्व देवताओं में केवल श्रीहनुमान जी को ही अनिष्ट शक्तियाँ भी कष्ट देने का साहस नहीं दिख सकती हैं। लंका में तो लाखों शक्तिशाली राक्षस थे, तब भी वे सम्मिलित रूप में भी श्रीहनुमान जी का कुछ नहीं बिगाड पाएं थे। श्रीहनुमान जी भगवान श्रीराम से पूर्णतया अभिन्न एकरूप हैं। जब कभी भी नवविधा भक्ति में से दास्य भक्ति का सठिक उदाहरण देना होता है, तब श्रीहनुमान जी की भक्ति ही उसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हो सकती है। प्रभु श्रीराम की सेवा की तुलना में उन्हें सब रज समान प्रतीत होता है। वे अपने प्रभु श्रीराम के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
श्रीहनुमान जी में एक श्रेष्ठ सेवक एवं श्रेष्ठ सैनिक के सर्व गुणों का बहुत ही सुंदर सम्मिश्रण हैं। स्वयं सर्वशक्तिमान होते हुए भी वे, अपने-आपको श्रीरामजी का दास कहलवाते हैं। उन्होंने अपनी शक्ति पर कभी भी कोई गर्व नहीं किया, बल्कि उनकी सदैव यही भावना रही है कि उनकी सारी शक्ति प्रभु श्रीरामजी की ही शक्ति है, वह तो मात्र वहनकर्ता मात्र ही हैं।
श्रीहनुमान जी चिरायु हैं, भगवान राम ने इन्हें ऐसा ही वरदान दिया है। कहते हैं धरती पर जहाँ भी रामकथा या फिर श्रीराम चर्चा होती है, वहाँ श्रीहनुमानजी किसी ना किसी रूप अवश्य ही उपस्थित रहते हैं।
“श्रीरामचरितमानस” भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है। ‘सुंदरकांड’ एकमात्र ऐसा अध्याय है, जो श्रीराम के भक्त श्रीहनुमान जी की ‘विजय का कांड’ है, जहाँ श्रीहनुमान जी नायकत्व के रूप में चित्रित हैं। बल-बुद्धि के निधान श्रीहनुमान जी, माता सीताजी की खोज में लंका गए थे जो लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटाचल पर्वत यानी तीन पर्वतों के समवेत स्वरूप, पहला सुबैल पर्वत, जहाँ के मैदान में युद्ध हुआ था, दूसरा नील पर्वत, जहाँ राक्षसों के महल आदि बसे हुए थे और तीसरे पर्वत का नाम है, सुंदर पर्वत, जहाँ अशोक वाटिका निर्मित थी। इसी अशोक वाटिका में श्रीहनुमान जी ने अपनी बुद्धि-बल से माता सीताजी की खोज की और यही उनसे उनकी प्रथम भेंट हुई थी। लंका को जलाया और सीता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए।
संयोग की भी बात तो देखिए श्रीहनुमान जी का एक नाम ‘सुन्दर’ भी है। इस ‘सुन्दरकाण्ड’ की यही सबसे प्रमुख घटना थी, इसलिए इस काण्ड का नाम ‘सुंदरकाण्ड’ रखा गया है। इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है। आज श्रीहनुमान जी के पावन अवतरण दिवस पर हम सभी अपने आरध्या श्रीहनुमान जी की आराधना आया ‘श्रीहनुमान चालीसा’ का परिजन सहित सस्वर पाठ करें। श्रीहनुमान जी आप सभी भक्तों को स्वस्थ, सुख-समृदधियुक्त और प्रसन्नचित रखें।
ॐ नमो भगवते हनुमते नम:।
श्रीराम पुकार शर्मा
हावड़ा, (पश्चिम बंगाल)
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com