रक्षाबंधन पर विशेष : कहानी- बेटी घर की लक्ष्मी

अशोक वर्मा “हमदर्द”, चांपदानी। अनुराधा के आने की खबर से पूरे घर में उत्साह की लहर दौड़ रही थी। रक्षा बंधन का त्योहार नजदीक था और अनुराधा की मां, बाला, अपनी बेटी के स्वागत के लिए तैयारियों में जुटी हुई थी। घर में सबकी आंखों में एक अलग सी चमक थी। हर कोई अपने-अपने तरीकों से अपनी बेटी और बहन के स्वागत के लिए प्रयासरत था।

अनुराधा के पिता, आलोक, चाय की प्याली में चाय घोलते हुए अपनी पत्नी बाला से बोले, “देखो बाला, आज हमारे घर की लक्ष्मी आ रही है। अनुराधा के आने से यह घर फिर से रोशन हो जाएगा। उसकी हंसी और बातें हमारे दिलों को सुकून देती हैं।”

बाला मुस्कुराते हुए बोलीं, “हां, सही कहा आपने। अनुराधा के बिना यह घर सूना-सूना लगता है। वो यहां आती है तो घर की हर दीवार जैसे खुश हो उठती है।”

तभी अभिषेक, जो अपने कमरे में बैठा था, अपने माता-पिता की बातें सुनते हुए कमरे से बाहर आया। “पापा, मैं मिठाई लेने जा रहा हूं। दीदी के लिए खास मिठाई लेकर आऊंगा।”

आलोक ने थोड़ी गंभीरता से कहा, “हां बेटा, ध्यान रखना कि मिठाई अच्छी हो। तुम्हारी दीदी को ऐसे-वैसे दुकान की मिठाई पसंद नहीं है।”

अभिषेक ने हंसते हुए कहा, “पापा, आप भी न! ऐसा लग रहा है जैसे दीदी किसी स्वर्ग लोक से आ रही है।”

आलोक ने एक गहरी सांस ली और कहा, “बेटा, तू नहीं समझेगा। सच में, तेरी दीदी ने हमें स्वर्ग जैसा सम्मान दिलाया है। जहां वो रहती है, वो घर हमारे लिए स्वर्ग से कम नहीं है।” तुझे क्या पता की स्वर्ग और नर्क लोक यही इसी दुनियां में है। वो जिस घर में रहती है वो क्या स्वर्ग लोक के कम है? जहां देवता जैसे विचार के लोग रहते हों, जिनकी सोच अभी के समय से परे हो, अभी के समय में जो लोग अपनें बहु समेत उसके माता पिता को भी सम्मान दें यह क्या सब जगह संभव है।

बेटी के शादी के लिए हम अनेकों जगह गए, किंतु एक पढ़ी लिखी और सुंदर सुशील बेटी के बाद भी सबको दहेज चाहिए थी, किसी ने मेरे साथ मानवता नही दिखाई और पैसों की ललक में मेरे बेटी को नकार दिया। किंतु ये वही परिवार है जहां दुल्हन ही दहेज है कह कर मेरे बेटी और उसके बाप को सम्मान दिया। मैं भी अपनें होने वाले समधी के साथ वैसा ही व्यवहार करूंगा जैसा व्यवहार मेरे साथ हुआ, बोलते बोलते अभिषेक के पापा भावुक हो गए थे।

अभिषेक थोड़ी हैरानी से अपने पिता की ओर देखने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके पापा इतने इमोशनल क्यों हो रहे हैं। उसने चुटकी लेते हुए कहा, “पापा, आप तो सचमुच भावुक हो गए। मैं जा रहा हूं मिठाई लेने, ताकि दीदी खुश हो जाए।”

मिठाई लेने जाते समय अभिषेक के दिमाग में उसके पिता की बातें गूंज रही थीं। वह सोच रहा था, “दीदी कितनी भाग्यशाली है कि उसे ऐसा ससुराल मिला है, जहां उसे और उसके माता-पिता को इतना सम्मान मिलता है। शायद पापा सही कह रहे हैं, स्वर्ग और नर्क हमारे ही कर्मों का फल होते हैं। दीदी हमेशा सबकी मदद करती थी, शायद इसी वजह से उसे इतना अच्छा ससुराल मिला।”

अभिषेक को अपने बचपन के दिन याद आने लगे, जब अनुराधा उसकी छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखती थी। जब भी उसे पैसे की जरूरत होती, दीदी अपने कॉलेज के बचाए हुए पैसों से उसकी मदद करती। उसकी हर छोटी से छोटी इच्छा को पूरा करने की कोशिश करती।

वो दिन याद आ गया जब अभिषेक के पास अपनी नई साइकिल के लिए पैसे नहीं थे। उसने अपनी इच्छा को अपने तक ही सीमित रखा था, लेकिन उसकी दीदी ने उसकी ख्वाहिश को उसकी आंखों में पढ़ लिया था। उसने बिना कुछ कहे, अपने कॉलेज के बचत किए हुए पैसों से नई साइकिल खरीदकर उसे गिफ्ट कर दी थी। उस समय अभिषेक की खुशी का ठिकाना नहीं था और उस दिन उसने पहली बार महसूस किया था कि दीदी उसके लिए क्या मायने रखती है।

मिठाई की दुकान पर पहुंचते ही उसने सबसे बेहतरीन मिठाई का आर्डर दिया। अभिषेक के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान थी। उसे अपने दीदी के लिए कुछ खास करने की खुशी हो रही थी।

घर लौटते समय, उसके मन में एक दृढ़ संकल्प था। उसने सोचा, “मैं अपनी दीदी के लिए हमेशा खड़ा रहूंगा, जैसे वो मेरे लिए हमेशा खड़ी रही है। अब जब दीदी का ससुराल उसके लिए स्वर्ग है, तो मैं उसे इस घर में भी वही सम्मान और प्यार दूंगा, जो वो डिजर्व करती है।”

जब वह घर पहुंचा, तो घर की दहलीज पर खड़ी उसकी मां, बाला, उसे देख मुस्कुरा दीं। “मिठाई ले आए बेटा?” बाला ने पूछा।
“हां मां, सबसे अच्छी वाली,” अभिषेक ने जवाब दिया।
तभी दरवाजे पर एक कार आकर रुकी। अनुराधा आ गई थी। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। वह अपने भाई और माता-पिता को देख दौड़कर आई और सबसे गले लग गई।

अभिषेक ने मिठाई का डिब्बा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, “दीदी, ये आपके लिए।”
अनुराधा ने मुस्कुराते हुए मिठाई का डिब्बा लिया और अभिषेक के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, “तू हमेशा इतना ही प्यार करेगा न मुझे?”
अभिषेक ने आंखों में आंसू लिए हुए कहा, “हमेशा दीदी, हमेशा।”

रक्षा बंधन के इस पावन अवसर पर, वो भाई-बहन के रिश्ते की मिठास और भी गहरी हो गई थी। इस दिन ने उन्हें एक बार फिर से याद दिलाया कि उनके बीच का प्यार और सम्मान किसी भी स्वर्ग से कम नहीं था।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक /कवि

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