सौमेन रॉय की रचना : दर्पण

।।दर्पण।।
सौमेन रॉय

अक्सर वीराने में इंसान तन्हा होता है,
सभी जब छोड़कर जाते हैं इंसान अधमरा सा हो जाता है।
मौत के बाजुओं में वह कुछ इस कदर फनाह होता है,
जिंदगी जैसी है वो तो बस जीना होता है।
लूटा तो बहुतों ने यहां, कौन पराया जाने कौन सगा होता है,
मौत भी लगे मुझे मंजिल जहां उसका प्यार होता है।
टूटा जो मैं कभी अब एक भरोसा होता है,
आंसू बने सारे मोती जब जब उसका दीदार होता है।
प्यासा से ना पूछो कभी प्यास कैसी होती है,
कभी लगे सांवला तो कमल होता है,
कोई कहे उसे श्याम तो कभी वो श्री राम होता है।
जैसे भी हो वो प्रेम का दर्पण होता है।।

सौमेन रॉय, कवि

©सौमेन रॉय सर्वाधिकार सुरक्षित

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