Solar project stopped in Assam, tribal struggle was victorious

असम में सोलर प्रोजेक्ट रुका, आदिवासी संघर्ष की जीत हुई

निशान्त, Climate कहानी, कोलकाता। आख़िरकार ज़मीन की लड़ाई ने रंग दिखाया। कार्बी आंगलोंग की पहाड़ियों में बसे हजारों आदिवासी परिवारों की जंग ने एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) को झुका दिया है। बैंक ने 500 मेगावाट के जिस सोलर पार्क प्रोजेक्ट के लिए 434 मिलियन डॉलर की फंडिंग मंज़ूर की थी, उसे अब रद्द कर दिया गया है।

यह सिर्फ़ किसी प्रोजेक्ट का कैंसलेशन नहीं है — यह एक पूरी कौम की जीत है, जिन्होंने “विकास” के नाम पर अपनी ज़मीन, जंगल, और अस्मिता की कुर्बानी देने से इनकार कर दिया।

  • क्या था मामला?

असम सरकार और APDCL (Assam Power Distribution Company Limited) की मदद से कार्बी आंगलोंग जिले में एक विशाल सोलर पार्क बनाया जाना था। 2,400 हेक्टेयर ज़मीन — जिसमें ज़्यादातर खेती, जंगल, और पुश्तैनी ज़मीनें थीं — इस प्रोजेक्ट के लिए ली जानी थी।

लेकिन ये ज़मीनें सिर्फ़ खेत या जंगल नहीं थीं। ये वह धरती थी, जिससे कार्बी, नागा और आदिवासी परिवारों की संस्कृति, आजीविका, और पहचान जुड़ी हुई थी। भारत के संविधान के छठे शेड्यूल के तहत ये ज़मीनें संरक्षित हैं — लेकिन फिर भी प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल गई थी।’

Solar project stopped in Assam, tribal struggle was victorious

  • “हमसे पूछा ही नहीं गया”

ADB ने दावा किया कि समुदाय की “सहमति” थी, लेकिन सच्चाई कुछ और निकली। सिर्फ़ 23 में से 9 गांवों में ही कंसल्टेशन हुआ। हज़ारों लोगों को इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। जरूरी दस्तावेज़ न तो स्थानीय भाषाओं में अनुवाद हुए, न ही सबके लिए उपलब्ध कराए गए।

और सबसे बड़ी बात — ज़मीन का मालिकाना हक़ तक नकार दिया गया। ADB की रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ़ 8.2% ज़मीन समुदाय की है। लेकिन ज़मीन सिर्फ़ पट्टे का कागज़ नहीं होती — वह रिश्ता होता है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है।

  • औरतें, जंगल, और हाथी — सब पर खतरा

इस प्रोजेक्ट से सबसे ज़्यादा नुकसान महिलाओं को होता, जो खेती और आजीविका में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं। जंगलों में बांस के वो इलाके, जिनसे हाथियों का आवागमन होता है, वो भी खत्म हो जाते। और पास की देवपानी और नामबोर जैसी वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरीज़ को भी नुकसान होता।

  • यह जीत कैसे मुमकिन हुई?

यह कोई एक दिन का काम नहीं था। Karbi Anglong Solar Power Project Affected People’s Rights Committee ने सालों तक संघर्ष किया — शांतिपूर्ण धरने, मेमोरेंडम, प्रेस कॉन्फ्रेंस, और यहां तक कि ADB की बोर्ड मीटिंग में सीधे जाकर बात रखी।

Solar project stopped in Assam, tribal struggle was victorious

असम से राज्यसभा सांसद अजीत कुमार भुइयां ने भी संसद में यह मुद्दा उठाया। और फिर जो हुआ, वह इतिहास बन गया।

  • अब आगे क्या?

संघर्ष समिति की मांग है कि अब राज्य सरकार और APDCL इस ज़मीन पर कब्ज़े की हर कोशिश हमेशा के लिए रोकें — और इन समुदायों के पारंपरिक ज़मीन अधिकारों को औपचारिक रूप से मान्यता दें।

NGO Forum on ADB के डायरेक्टर रैयान हसन कहते हैं, “सस्टेनेबल डेवेलपमेंट का मतलब यह नहीं कि आप आदिवासी ज़मीनें छीन लें। यह कैंसलेशन इस बात का सबूत है कि लोगों की आवाज़ सबसे ऊपर होनी चाहिए।”

लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। Growthwatch की विद्या डिंकर कहती हैं कि ADB ने इस कैंसलेशन के बाद भी स्थानीय लोगों की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता योजना नहीं बनाई। “बैंक सिर्फ़ प्रोजेक्ट से पीछे नहीं हट सकता — उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो लोग खतरे में थे, वो अब सुरक्षित हों।”

  • निचोड़ यही है:

सोलर एनर्जी ज़रूरी है, लेकिन उसके लिए ज़मीन नहीं लूट सकते। भारत को सोलर चाहिए — लेकिन ऐसा मॉडल जो लोगों को पीछे न छोड़े, बल्कि साथ लेकर चले। छतों पर सोलर, लोकल ग्रिड्स, और गांवों की साझेदारी वाला विकास — यही सच्चा ट्रांजिशन है।

आज कार्बी आंगलोंग के लोग यह बता रहे हैं कि विकास ज़मीन पर नहीं, लोगों के हक़ों पर टिकता है।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।     

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × 5 =