
शब्दों के सही मतलब के चयन से व्यक्तित्व में निखार झलकता है, बौद्धिक क्षमता का परिचय होता है
बौद्धिक व्यवहार के मूल्यांकन का एक स्तंभ, शब्दों की गहराई में जाकर संबंधित स्थिति में शब्द का प्रयोग करना गुणी व्यक्तित्व की पहचान है- अधिवक्ता के.एस. सनमुखदास भावनानी
अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनिया के हर देश में अलग-अलग भाषाएं होती है, विशेष रूप से भारत तो भाषाओं, लिपियों, शब्दों का गहरा समुद्र है। जहां अनेकों ऐसे शब्द हैं जिनका मतलब उनकी परिस्थितियों के अनुसार बदल जाता है या अनेक होते है। परंतु इसका मतलब परिस्थितियों की स्थिति के अनुसार निकालना पड़ता है या फिर अनेक शब्द ऐसे होते हैं जिनका अगर एक अक्षर भी बदल जाए तो उसका मतलब ही बदल जाता है। जबकि दो शब्द ऐसे है जैसे आमंत्रण-निमंत्रण व आरंभ-प्रारंभ कई लोग इसका अर्थ एक ही समझते हैं परंतु यह दोनों शब्दों की जोड़ी के प्रत्येक शब्द का उपयोग उस परिस्थितिजन्य स्थिति में किया जाता है। अगर मैं इन सामान शब्दों या एक शब्द को एक वकील या सीए की नजर से देखूं तो एक शब्द के अनेक अर्थ निकालकर अपने अरगुमेंट को बेस्ट परफॉर्मेंस दे सकता हूं, परंतु इन शब्दों की व्याख्या के लिए भी हमारी वकालत में इंटरप्रिटेशन एक्ट बना हुआ है जो, जज साहब द्वारा जजमेंट देते समय उन शब्दों की व्याख्या उसके अनुसार ही की जाती है।
इसलिए वह एक शब्द ही है जो इंसान की जिंदगी बिगाड़ सकता है तो उसकी व्याख्या जिंदगी संवार भी सकता है। दूसरे शब्दों में इसी शब्द की एक लीगल व्याख्या में सजा भी हो सकती है तो दूसरी ओर इसी शब्द की दूसरी व्याख्या में एक्विट्टल यानी छूट भी मिल सकती है। आज हम इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज मैंने फेसबुक में एक मेल फीमेल के बीच आमंत्रण-निमंत्रण व आरंभ-प्रारंभ शब्दों के मतलब को लेकर एक चर्चा, यू कहें की डिबेट चल रही थी जो आपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या कर रहे थे। फिर मैंने इस विषय को आर्टिकल लिखने के लिए चुनकर रिसर्च शुरू किया, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, बौद्धिक व्यवहार के मूल्यांकन का एक स्तंभ शब्दों की गहराई में जाकर संबंधित स्थिति के अनुसार शब्द का प्रयोग करना ही गुणी व्यक्तित्व की पहचान है।
साथियों बात अगर हम आमंत्रण व निमंत्रण के मतलब को समझने की करें तो, दोनों ही किसी को बुलाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन इनमें अंतर होता है। आमंत्रण अनौपचारिक होता है, जबकि निमंत्रण औपचारिक होता है। आमंत्रण में जाने की बाध्यता नहीं होती, जबकि निमंत्रण में जाने की बाध्यता होती है। आमंत्रण और निमंत्रण में अंतर :
(1) आमंत्रण में किसी विषय विशेष पर विशेष व्यक्ति को बुलाया जाता है वहीं, निमंत्रण किसी अवसर विशेष पर विशेष व्यक्तियों को बुलाया जाता है।
(2) आमंत्रण में लक्ष्य निर्धारित होता है और लक्ष्य प्राप्त होने पर आमंत्रण खत्म हो जाता है वहीं, निमंत्रण में लक्ष्य के साथ लोकाचार भी होता है।
(3) आमंत्रण में हर व्यक्ति के पास एक लक्ष्य होता है, वह या तो वक्ता होता है या फिर श्रोता।
(4) आमंत्रण से व्यक्ति की प्रतिष्ठा जुड़ती है।
(5) आमंत्रण का मतलब होता है- आवाज देना या बुलाना।
(6) निमंत्रण एक ऐसा बुलावा है जिसमें जाने की बाध्यता होती है।
(7) निमंत्रण पर आपके न जाने पर सामने वाले स्वजन को बुरा भी लग सकता है।
(8) आमंत्रण और निमंत्रण दोनों को अंग्रेज़ी में इनविटेशन कहते हैं।
निमंत्रण में समय निर्धारित होता है और अतिथि से उसी समय में अनिवार्य तौर पर आने की अपेक्षा की जाती है जबकि आमंत्रण में अनिवार्यता नहीं होती है। निमंत्रण, आमंत्रण से अलग कैसे है…
(1) निमंत्रण में सिर्फ शारीरिक उपस्थिति उपयोगी है।
(2) निमंत्रण में एक आयोजन होता है परंतु प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य निर्धारित नहीं होता।
(3) निमंत्रण में आयोजन पूर्ण होने पर भोजन आदि के साथ उत्सव मनाया जाता है।
(4) निमंत्रण सामाजिक मेल मिलाप के लिए होता है।
(5) निमंत्रण भारत में लोकाचार का एक उपकरण है।
(6) विवाह समारोह में निमंत्रण दिया जाता है।
(7) धार्मिक आयोजनों में निमंत्रण दिया जाता है।
(8) पारिवारिक कार्यक्रमों में निमंत्रण दिया जाता है।
(9) आमंत्रण और निमंत्रण दोनों किसी को बुलाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
(10) आमंत्रण किसी विषय विशेष पर विशेष व्यक्ति का बुलावा होता है।
(11) निमंत्रण किसी अवसर विशेष पर विशेष व्यक्तियों का बुलावा होता है।
(12) आमंत्रण में लक्ष्य निर्धारित होता है और लक्ष्य प्राप्त होते ही आमंत्रण समाप्त हो जाता है।
(13) निमंत्रण में लक्ष्य के साथ लोकाचार भी होता है। लक्ष्य प्राप्ति के बाद उत्सव होता है।
(14) मंच पर वक्ता को आमंत्रित किया जाता है।
(15) कार्यक्रम में श्रोता को आमंत्रित किया जाता है।
(16) मीटिंग सेमिनार, समाज सेवा के कार्य, कला एवं संस्कृति के आयोजनों में लोगों को आमंत्रित किया जाता है।
(17) आमंत्रण में हर व्यक्ति के पास एक लक्ष्य होता है। वह या तो वक्ता होता है या फिर श्रोता।
(18) आमंत्रण से व्यक्ति की प्रतिष्ठा जुड़ती है। दोनों ही शब्दों में ‘मंत्र’ धातु की एक सी उपस्थिति है।
सामान्य रूप से ‘आमंत्रण’ और निमंत्रण बुलावे के लिए प्रयुक्त होते है, परंतु ‘आ’ और ‘नि’ के चलते इनके अर्थो में विशिष्टता आ गई है। इसी विशेषता के कारण ऋषि-मुनियों ने आमंत्रण के बाद निमंत्रण शब्द का अनुसंधान किया। यह बताने की जरूरत नहीं कि हिंदी में एक एक शब्द को प्रचलन में शामिल करने से पहले उस पर काफी अनुसंधान यानी रिसर्च और शास्त्रार्थ यानी डिस्कशन हुए हैं। आमंत्रण और निमंत्रण में व्याकरण का अंतर-आमंत्रण’ और ‘निमंत्रण’ दोनों का अर्थ समान समझ लिया जाता है, पर ऐसा नहीं है।
दोनों ही शब्दों में ‘मंत्र’ धातु की एक सी उपस्थिति है। सामान्य रूप से आमंत्रण और निमंत्रण बुलावे के लिए प्रयुक्त होते है, परंतु ‘आ’ और ‘नि’ के चलते इनके अर्थो में विशिष्टता आ गई है। इसी विशेषता के कारण ऋषि-मुनियों ने आमंत्रण के बाद निमंत्रण शब्द का अनुसंधान किया। यह बताने की जरूरत नहीं कि हिंदी में एक एक शब्द को प्रचलन में शामिल करने से पहले उस पर काफी अनुसंधान यानी रिसर्च और शास्त्रार्थ यानी डिस्कशन हुए हैं।
साथियों बात अगर हम आरंभ- प्रारंभ के मतलब को समझने की करें तो, हिंदी की अनुभवी शिक्षिका विशेषज्ञ के अनुसार, आरंभ शब्द का अर्थ कोई नया काम शुरू करने से होता है। उदाहरण के लिए, चलिए भोजन आरंभ कीजिए’। वहीं, जब कोई काम किसी विराम के बाद दोबारा शुरू होता है तब प्रारंभ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जैसे- ‘तबीयत ठीक होने के बाद उसने विद्यालय जाना प्रारंभ कर दिया है’। क्या समानता है प्रारंभिक और आरंभिक में?
प्रारंभिक और आरंभिक दो शब्द हैं जो किसी क्रिया, प्रक्रिया या घटना के संदर्भ में प्रयोग हो सकते हैं और इन दोनों में कुछ समानता हो सकती है, लेकिन ये दोनों अलग-अलग अर्थ प्रकट कर सकते हैं, आवश्यक नहीं है कि ये हमेशा समान हों। प्रारंभिक शब्द सामान्यत: किसी क्रिया, प्रक्रिया या घटना के शुरूआती चरण या स्थिति को सूचित करने के लिए प्रयोग होता है। यह शब्द विशेषत:
(1) यह दर्शाता है कि एक क्रिया, प्रक्रिया या घटना का आदि चरण या स्थिति है।
(2) इसका प्रयोग किसी प्रक्रिया के पहले चरण के संदर्भ में किया जा सकता है, जैसे कि प्रारंभिक ज्ञान (अर्थात् बेसिक ज्ञान) या प्रारंभिक स्टेज (अर्थात् इवेंट की शुरुआती चरण)।आरंभिक शब्द भी सामान्यत: किसी क्रिया, प्रक्रिया या घटना के शुरूआती चरण को सूचित करने के लिए प्रयोग होता है, लेकिन इसके अलावा यह शब्द विशेषत:
(1) यह दर्शाता है कि एक क्रिया, प्रक्रिया या घटना का प्रारंभिक चरण है, लेकिन इसके बाद और अधिक चरण हो सकते हैं।
(2) आरंभिक शब्द का प्रयोग किसी प्रक्रिया के पहले चरण के संदर्भ में किया जा सकता है, लेकिन यह भी इसके बाद के चरण को सूचित करने के लिए प्रयोग हो सकता है। इसके बावजूद, इन दोनों शब्दों का प्रयोग आपके संदर्भ और वाक्य के साथ बदल सकता है, और इसलिए आपको उनका सटीक अर्थ विशिष्ट संदर्भ के आधार पर समझना होगा। आरंभ और प्रारंभ दोनों अलग कैसे हैं? कार्य की प्रथम शुरुआत आरंभ और कुछ समय के विराम के पश्चात पुनः शुरू करने को प्रारंभ कहा जाता है। मानव जीवन में विद्या का आरंभ बाल्यकाल में ही हो जाता है। सीखने की प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक आजीवन चलती रहती है। पढ़ाई प्रतिदिन एक निश्चित समय पर प्रारंभ करनी चाहिए।
कुछ अन्य उदाहरण :
(1) सृष्टि का आरंभ और अंत निश्चित है।
(2) कलयुग का आरम्भ लगभग 4 लाख 32 हजार वर्ष पूर्व हुआ था।
(3) योजना जा शुभारम्भ प्रधानमंत्री द्वारा किया जायेगा।
(4) आइये, अब हम अपना कार्य प्रारम्भ करें।
(5) कार्यालय का समय दस बजे प्रातः प्रारम्भ होता है शब्द आरंभ का प्रयोग सबसे उपयुक्त रूप से तब किया जाता है जब किसी गतिविधि या प्रक्रिया की शुरुआत को अधिक अमूर्त, आरंभिक या औपचारिक संदर्भ में संदर्भित किया जाता है। इसे अक्सर गैर-भौतिक प्रक्रियाओं जैसे कि घटनाओं, युगों या अनुभवों के शुरुआती चरणों से जोड़ा जाता है। शब्द आरंभ’ का इस्तेमाल आम तौर पर किसी अधिक विशिष्ट या मूर्त गतिविधि की शुरुआत का वर्णन करने के लिए किया जाता है। यह उन स्थितियों के लिए उपयुक्त है जिनमें शारीरिक क्रियाएँ शामिल हैं, जिसमें मशीनरी या किसी कार्य को शुरू करना शामिल है और अनौपचारिक सेटिंग्स में भी इसे प्राथमिकता दी जाती है..?
संक्षेप में, आरंभ और शुरुआत आम तौर पर एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं, फिर भी शुरुआत को आम तौर पर अधिक औपचारिक या अमूर्त संदर्भों में प्राथमिकता दी जाती है जबकि अनौपचारिक स्थितियों और शारीरिक गतिविधियों के साथ शुरुआत अधिक आम है। आरंभ का तात्पर्य प्रक्रिया के आरंभिक चरण से है, विशेष रूप से गैर-भौतिक या वैचारिक मामलों में। इसके विपरीत, आरंभ अक्सर किसी ठोस या कार्यात्मक चीज जैसे कि कोई उपकरण या घटना को आरंभ करने की क्रिया को संदर्भित करता है। प्रत्येक शब्द का उपयोग कब करना है, यह जानना आपके संचार में सटीकता की एक सूक्ष्म परत जोड़ सकता है।

अतः अगर हम उपयोग पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि साहब! शब्द एक है, मतलब अलग-अलग है- आमंत्रण-निमंत्रण बनाम आरंभ-प्रारंभ। शब्दों के सही मतलब के चयन से व्यक्तित्व में निखार झलकता है, बौद्धिक क्षमता का परिचय होता है। बौद्धिक व्यवहार के मूल्यांकन का एक स्तंभ, शब्दों की गहराई में जाकर संबंधित स्थिति में शब्द का प्रयोग करना गुणी व्यक्तित्व की पहचान है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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