श्री विश्वकर्मा जयंती विशेष

डॉ. आर.बी. दास, पटना। विश्वकर्मा जी को हिंदू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है। विश्वकर्मा जी को श्रृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी का सातवां पुत्र माना जाता है।भगवान विश्वकर्मा सृजन के देवता हैं।मान्यता है कि सम्पूर्ण सृष्टि पर जीवन के संचालन के लिए जो भी चीजे सृजनात्मक है वह भगवान विश्वकर्मा की देन है। अगर उन्हें दुनियां का पहला शिल्पकार, वास्तुकार या इंजीनियर कहा जाय तो गलत नही होगा।

ऐसा माना जाता है कि सोने की लंका का निर्माण इन्होंने ही किया था। भारतीय संस्कृति और पुराणों में भगवान विश्वकर्मा को यंत्रों का अधिष्ठाता और देवता माना गया है।उन्हे हिंदू संस्कृति में यंत्रों का देव माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं के वास्तुकार थे। इस नाम का इस्तेमाल मूलरूप से किसी शक्तिशाली देवता के लिए किया जाता था, लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल रचनात्मक शक्ति के लिए किया जाने लगा।

विश्वकर्मा एक दिव्य बढ़ई और कुशल शिल्पकार थे, जिन्होंने देवताओं के लिए हथियार, शहर और रथ बनाए। उन्हे सृष्टि का पहला इंजीनियर माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव का त्रिशूल और भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था। हर साल “कन्या संक्रांति” के दिन को यंत्रों के देवता विश्वकर्मा के जन्म दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

श्री विश्वकर्मा पूजा दिवस एक हिंदू भगवान विश्वकर्मा दिव्य वास्तुकार के लिए उत्सव का दिन है। उन्हे स्वयंभू और विश्व का निर्माता माना जाता है। उन्होंने द्वारिका जैसे पवित्र शहर का निर्माण किया। पांडवों की माया सभा और देवताओं के लिए कई शानदार हथियारों के निर्माता थे। आज का दिन भगवान विश्वकर्मा जी को समर्पित है। जिन्हे ब्रम्हांड के दिव्य वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है। इस अवसर पर विभिन्न उद्योगों में कारीगरों, इंजीनियरों तथा श्रमिको के कौशल और शिल्प कौशल का जश्न मनाया जाता है।

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