श्री गोपाल मिश्र की रचना : स्वप्न- संजीवनी

।।स्वप्न- संजीवनी।।

इस तरह न मुझे झकझोर हे प्रहरी!
सुषुम्ना व जागृति के बीच थिरकती
एक मधुरिम स्वप्न हूं मैं
यदि जाग जाऊं सचमुच-
तो नैन से गिर न पड़ोगे तुम!?

इतना भी मुझे न जांच जौहरी!
यक़ीन-ओ-शुबह के बीच चमकती
एक-एक अणु अशुद्धि हूं मैं
यदि उतर आऊं शुद्धता पर –
तो देखते ही चौंधिया न जाओगे तुम!?

इतना भी मुझे न परख परीक्षिका!
अनभिज्ञता व सर्वज्ञता के बीच भटकता
अपरिपक्व तुम्हारा अध्ययन हूं मैं!
यदि सचमुच अनुत्तीर्ण हो गया तो?
पाठ्यक्रम से छंट न जाओगी तुम?

आयाम – यथार्थ प्रेम
रचनाकार – श्री गोपाल मिश्र
(काॅपीराइट सुरक्षित)

(साहित्यकार, फिल्म पटकथा लेखक, गीतकार व शिक्षक)

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