श्रीगंगा दशहरा पर्व आज 05 जून गुरुवार को

वाराणसी। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को श्रीगंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इसी दिन हस्त नक्षत्र में मां गंगा स्वर्ग से शिवलोक होते हुए भगवान शिव की जटाओं से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इस पावन तिथि को मां गंगा के अवतरण दिवस के रूप में श्रीगंगा दशहरा कहा जाता है।

वर्ष 2025 में यह तिथि बुधवार, 04 जून की रात्रि 11:55 बजे से प्रारंभ होकर गुरुवार, 05 जून की रात्रि 02:17 बजे तक रहेगी। चूंकि दशमी तिथि 05 जून गुरुवार को सूर्योदय व्यापिनी है, अतः श्रीगंगा दशहरा पर्व इसी दिन श्रद्धा एवं उल्लास पूर्वक मनाया जाएगा।

इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी है, जिससे इस पर्व का महत्व और अधिक बढ़ गया है। गंगा स्नान इस दिन अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि जो भक्तगण गंगा तट तक नहीं पहुंच सकते, वे निकटवर्ती किसी तालाब, नदी या जलाशय में स्नान करके तथा घर में गंगा ध्यानपूर्वक पूजन कर सकते हैं। इस दिन स्नान, तर्पण करने से शारीरिक, मानसिक एवं भौतिक पापों का नाश होता है। साथ ही, दान-पुण्य करने का भी विशेष महत्व है।

गंगा पूजन एवं स्नान से पापों का नाश होता है तथा यश, कीर्ति व सम्मान में वृद्धि होती है। सत्तू, मटका, हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल प्राप्त होता है। घर के आसपास जरूरतमंदों को दान अवश्य करें।

पूजन विधि में पंचोपचार एवं षोडशोपचार पूजन करें। 10 प्रकार के पुष्प, 10 नैवेद्य, 10 ऋतुफल, 10 तांबूल अर्पित करें तथा 10 दीपक प्रज्वलित करें। 10 वस्त्र, 10 जल कलश, 10 थाली भोजन, 10 फल, 10 पंखे, 10 छाते, 10 प्रकार की मिठाई- ये सभी 10 लोगों को दान करें, जिससे उत्तम पुण्य की प्राप्ति होती है। गंगा स्नान के समय कम से कम 10 डुबकियां अवश्य लगाएं।

पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि भागीरथ के पूर्वजों की अस्थियों के विसर्जन हेतु उन्हें बहते हुए निर्मल जल की आवश्यकता थी। इसके लिए उन्होंने मां गंगा को पृथ्वी पर लाने हेतु कठोर तपस्या की। मां गंगा प्रसन्न हुईं, परंतु उनके तीव्र प्रवाह से प्रलय की आशंका थी। तब भागीरथ ने पुनः तप कर भगवान शिव से सहायता मांगी।

भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में बांधकर पृथ्वी पर अवतरित किया। यह दिव्य घटना ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को घटित हुई, तभी से यह दिन श्रीगंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

माना जाता है कि मां गंगा पृथ्वी पर पवित्रता, समृद्धि व शुद्धता लेकर आई थीं और आज भी उनका प्रवाह शिव जी की जटाओं से होता हुआ चलायमान है।

श्रीगंगा दशहरा के दिन जो भी व्यक्ति जल में गंगाजल मिलाकर गंगा मंत्र का 10 बार जाप करते हुए स्नान करता है, वह दरिद्र या असमर्थ होते हुए भी पूर्ण फल की प्राप्ति करता है।

गंगा मंत्र:
ॐ नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा॥

पूजन के उपरांत गंगा एवं अन्य नदियों में चढ़ावा (फूल, नारियल, पन्निया आदि) प्रवाहित करने की परंपरा है, लेकिन इससे नदियों की स्वच्छता प्रभावित होती है। अतः सभी श्रद्धालु नदियों को स्वच्छ रखने के प्रति भी जागरूक रहें।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

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