संकष्टी चतुर्थी या संकट चौथ आज, जाने सब कुछ पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री से

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : बच्चे और परिवार की सुरक्षा के लिए संकट चौथ का व्रत किया जाता है। पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को संकट चौथ कहा जाता है। सकट चौथ का दूसरा नाम लंबोदर संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा करने और व्रत रखने से सभी संकटों का नाश होता है। परिवार और संतान की रक्षा के लिए सकट चौथ का व्रत हर साल रखा जाता है। संकट चौथ के दिन गणेश जी को दूर्वा और मोदक अर्पित किया जाता है। गणेश स्तुति, गणेश चालीसा का पाठ और संकट चौथ की व्रत कथा का पाठ किया जाता है। उसके बाद गणेश जी की आरती की जाती है। संकट चौथ के दिन चंद्रमा का दर्शन कर जल अर्पित करते हैं।

संकट चौथ मुहूर्त : माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 21 जनवरी को सुबह 08 बजकर 51 मिनट पर हो रहा है। यह तिथि अगले दिन 22 जनवरी को सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक है। इस दिन चंद्रमा का दर्शन चतुर्थी तिथि में 21 जनवरी को ही संभव है, इसलिए सकट चौथ का व्रत 21 जनवरी दिन शुक्रवार को रखा जाएगा।

सौभाग्य योग में संकट चौथ : इस साल की सकट चौथ सौभाग्य योग में है। 21 जनवरी को दोपहर 03 बजकर 06 मिनट तक सौभाग्य योग है। उसके बाद से शोभन योग प्रारंभ हो जाएगा. ये दोनों ही योग मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है। यह समय भी मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम होता है।

संकट चौथ 2022 चंद्रोदय : संकट चौथ की रात 09 बजे चंद्रमा का उदय होगा। जो लोग संकट चौथ का व्रत रखेंगे, उनको रात 09 बजे चंद्रमा को जल अर्पित करके पूजा करना है और उसके बाद ही पारण करना है। चंद्रमा की पूजा करने के बाद ही सकट चौथ का व्रत पूर्ण माना जाता है। संकट चौथ का व्रत माताएं करती हैं। वे अपने बच्चे और परिवार की सुरक्षा के लिए यह व्रत रखती हैं और गणेश जी की पूजा करती हैं।

पूजा से संबंधित विशेष जानकारी : इस दिन सुबह के समय सूर्योदय से पहले जगकर स्नान किया जाता है।
उसके बाद साफ सुथरे वस्त्र पहन कर पूजा में बैठा जाता है। इस दिन लाल रंग के वस्त्रों पहनना बहुत शुभ माना गया है, इस रंग के वस्त्रों को धारण करने से बहुत शीघ्र फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान श्री गणेश के पूजन से प्रत्येक पूजा का आरंभ करना चाहिए। गणेश संकष्टी के दिन चढ़ाए गए तिल, गुड़, लड्डू आदि को प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। इस दिन दुर्गा की प्रतिमा की अराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। दुर्गा माता की प्रतिमा की स्थापना करना इस दिन के समय बहुत शुभ माना जाता है। भगवान श्री गणेश को धूप-दीप जलाकर उनके संबंधित मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

संकष्टी चतुर्थी से संबंधित कथा : इस उत्सव से संबंधित कई मान्यताएं और कथाएं भारत में प्रचलित हैं जिसमें से एक कथा के अनुसार एक दिन माता पार्वती को चैपड़ खेलने का मन हुआ और उस दिन इस खेल से संबंधित निर्णय लेने वाला कोई अन्य उपलब्ध नहीं था। निर्णय की समस्या के समाधान हेतु माता पार्वती ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें आत्मा डाल कर उसे जीवित कर दिया। उस जीवित मूर्ति को माता ने खेल में कई बार गलत घोषित किया जिस पर माता ने क्रोधित होकर उसे अपंगता का श्राप दे दिया जिससे वह लंगड़ा हो गया।

बालक ने अपनी गलती की क्षमा हेतु माता से क्षमा मांगी और कहा कि वह जानता है कि दिए हुए श्राप को वापिस लेना तो असंभव है लेकिन इसके उपाय के लिए जो मैं कर सकता हूं उसके बारे में मुझे बताएं। तब माता पार्वती ने उस बालक को इस संकष्टी चतुर्थी के दिन आने वाले पवित्र दिन के बारे में बताते हुए कहा कि इस यदि तुम कन्याओं का पूजन कर इस दिन व्रत के विधि विधान को पूरी आस्था से करते हो तो तुम इस श्राप से मुक्त हो जाओगे।

पवित्र दिन – संकष्टी चतुर्थी : इस दिन उस बालक ने सभी अनुष्ठानों का पालन कर इस व्रत को किया और पूजा अराधना कर भगवान श्री गणेश जी को प्रसन्न किया। जिससे वह श्राप से मुक्त हो गया। इसके बाद उस बालक ने भगवान शिव के पास जाने की कामना की और गणेश जी ने अपना आर्शीवाद देते हुए उसे शिवलोक पहुंचा दिया। जिससे उसकी इच्छा पूर्ण हो गई। लेकिन जब वह बालक शिवलोक में पहुंचा तो उसने माता पार्वती का वहां अनुपस्थित पाया। माता पार्वती उस समय कैलाश छोड़ कर जा चुकी थी। तब भगवान ने शिव ने बताया कि उनके पुत्र गणेश जी की पूजा से प्रसन्न होकर वह वापिस आ सकती हैं। तब बालक ने उस दिन का पूरी आस्था और पूजा से उस दिन के अनुष्ठानों का पालन कर इस दिन को मनाया। जिसके फलस्वरूप माता पार्वती ने पुन शिवलोक में प्रस्थान किया।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व : स्नातक धर्म में भगवान गणेश जी का विशेष महत्व है और पूजा को आरंभ करने से पहले इनका ध्यान किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन भारत में इस दिन बड़े स्तर पर पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। इस दिन संतान की दीर्घ आयु और खुश हाल जीवन की कामना कर इस दिन व्रत रखा जाता है। भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है क्योकि यह भक्तों के सारे कष्टों का नाश कर देते हैं। इस दिन इनके आर्शीवाद की प्राप्ति के लिए व्रत को पूरे विधि विधान से किया जाता है। इस दिन की गई पूजा से जीवन में आने वाली प्रत्येक बाधा दूर हो जाती है।

मान्यताओं के अनुसार इस दिन रखे गए व्रत से संतान को निरोग जीवन प्राप्त होता है। शास्त्रों मे इस दिन रखे गए व्रत को सभी में श्रेष्ठ माना गया है क्योकि इनको प्रथम देव के रूप में जाना जाता है। सूर्योदय के साथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत आरंभ होकर चंद्रमा के उदय होने तक यह व्रत किया जाता है। पूरे वर्ष में संकष्टी चतुर्थी के कुल 13 व्रत रखे जाते हैं और प्रत्येक व्रत का अपना महत्व है। इस दिन भारत में अलग-अलग राज्यों में संकट चौथ, वक्रतुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ और माही चतुर्थी के नाम से बुलाया जाता है। हिंदू धर्म में किसी भी कार्य को आरंभ करने से पहले गणेश जी के पूजन को उत्तम माना जाता है। इस दिन किए गए पूजन से सभी नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं, इसलिए मन से बुरे विचारों से दूरी बनाकर इस दिन को पूरी आस्था और श्रद्धा से मनाना चाहिए।

पं. मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848

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