
(अंतिम किस्त)
अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। सालों बाद…एक अधूरा एहसास, रूबी की शादी के बाद आलोक ने खुद को पूरी तरह से लेखन में झोंक दिया। उसका दर्द उसकी कहानियों में झलकने लगा। उसकी किताबें बेस्ट सेलर बनने लगीं, लेकिन उसके दिल का एक कोना अब भी वीरान था। रूबी का क्या हुआ? यह सवाल अक्सर आलोक के मन में उठता। उसने कभी उससे संपर्क करने की कोशिश नहीं की, क्योंकि वह उसकी खुशियों में कोई खलल नहीं डालना चाहता था। पर मोहब्बत इतनी आसान नहीं होती। कोई यादें चाहकर भी दिल से मिटाई नहीं जा सकतीं। नियति का खेल बना एक अनदेखा खत, एक दिन आलोक को उसके प्रकाशक से एक चिट्ठी मिली। यह एक अनजान पाठक की तरफ से थी, जिसने उसकी किताब “रूबी : अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल कहानी” पढ़ी थी।
“आपकी किताब ने मेरी ज़िंदगी के उन पलों को फिर से जीवंत कर दिया, जिन्हें मैंने कभी भुलाने की कोशिश की थी। आपकी लिखी हर पंक्ति में मैंने खुद को पाया। क्या इत्तेफाक है कि आपकी कहानी मेरी असली ज़िंदगी से मिलती है। अगर कभी संभव हो, तो मिलना चाहूंगी। – एक पाठक”
आलोक ने वह खत कई बार पढ़ा। उसे महसूस हुआ कि यह रूबी की लिखावट से मिलती-जुलती है। लेकिन क्या यह वही रूबी थी? यह जानने के लिए उसने जवाब लिखा, और मिलने की जगह और तारीख तय कर दी।
बरसों बाद फिर एक बार रूबी और आलोक का आमना-सामना हुआ था।
एक शाम, कोलकाता के एक कैफे में आलोक बेचैनी से किसी का इंतज़ार कर रहा था। तभी दरवाज़े से एक जानी-पहचानी शख्सियत अंदर आई- वह रूबी थी।
समय ने उसे बदल दिया था, पर उसकी आँखों की गहराई वैसी ही थी। आलोक के दिल की धड़कनें तेज हो गई। दोनों कुछ देर तक बिना कुछ कहे एक-दूसरे को देखते रहे।
फिर रूबी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “कैसे हो, आलोक?”
आलोक ने खुद को संभालते हुए कहा, “ठीक हूँ। और तुम?”
रूबी ने एक गहरी सांस ली और बोली, “मैं भी ठीक हूँ… जितना हो सकती हूँ।”
बिछड़े थे जो, फिर मिल गए और दिल के चिरगिया उड़ाने लगे।
दोनों घंटों तक बातें करते रहे। रूबी ने बताया कि उसकी शादी के बाद सब कुछ वैसा नहीं हुआ, जैसा उसने सोचा था। उसका पति अच्छा इंसान था, लेकिन वह रूबी के दिल को नहीं पढ़ सका। वह अपनी शादी में खुश दिखती रही, लेकिन अंदर से वह अधूरी थी।
रूबी ने धीरे से कहा, “आलोक, हम भले ही साथ नहीं हो सके, लेकिन मैंने कभी तुम्हें भुलाया नहीं। तुम्हारी किताबें पढ़ती हूँ, और हर बार मुझे लगता है कि तुम मेरी ही कहानी लिख रहे हो।”
आलोक ने रूबी का हाथ थामते हुए कहा, “कभी-कभी अधूरी मोहब्बतें ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत सच्चाई बन जाती हैं। हम साथ नहीं हैं, पर हमारा प्यार आज भी जिंदा है।”
रूबी की आँखें भर आई, लेकिन वह मुस्कुराई। “हाँ, शायद यही हमारी नियति थी।” अलविदा, मगर हमेशा के लिए नहीं!
कैफे से बाहर निकलते समय दोनों ने एक-दूसरे को आखिरी बार देखा। वे जानते थे कि यह मुलाकात शायद उनकी आखिरी थी, लेकिन उनके दिलों में एक-दूसरे के लिए हमेशा जगह रहेगी।
रूबी चली गई, और आलोक वहीं खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। इस बार उसका मन भारी नहीं था। उसे एहसास हो गया था कि प्रेम केवल साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि किसी की यादों में हमेशा जिंदा रहने का नाम भी है।
“कुछ रिश्ते मुकम्मल नहीं होते,
पर वे कभी खत्म भी नहीं होते।”
रूबी से मुलाकात के बाद आलोक का मन कुछ हल्का तो हुआ, लेकिन दिल के किसी कोने में एक टीस हमेशा के लिए रह गई। उसने अपने आप से एक वादा किया था- अब वह कभी रूबी को खोजने या उससे मिलने की कोशिश नहीं करेगा। अगर उनकी मोहब्बत इतनी सच्ची थी, तो यह खुद अपने रास्ते बना लेगी।
लेकिन प्यार सिर्फ़ दिल की धड़कनों तक सीमित नहीं होता। यह एक एहसास है, जो इंसान की हर सांस में बसा होता है। रूबी चली गई, पर उसकी यादें आलोक के साथ रह गईं।
आलोक ने खुद को फिर से लेखन में डुबो दिया। उसने अपनी नई किताब लिखनी शुरू की- “वो जो लौट आई थी”। यह कहानी एक प्रेमिका की थी, जो बरसों बाद लौटकर अपने प्रेमी से मिली, लेकिन फिर भी उसे हमेशा के लिए छोड़ गई।
रूबी की चिट्ठी जो पुनः आलोक के मुरझाए बगिया को हरा भरा कर दिया।
एक दिन आलोक अपने घर में बैठा लिख रहा था, तभी डाकिया एक चिट्ठी देकर गया। यह कोई आम चिट्ठी नहीं थी, यह रूबी की चिट्ठी थी।
“आलोक, पिछली मुलाकात के बाद से एक बेचैनी सी है। मैं सोचती हूँ, अगर सब कुछ अलग होता तो क्या हम साथ होते? शायद हाँ। लेकिन नियति को यही मंज़ूर था।
मैंने तुम्हारी नई किताब के बारे में सुना। मुझे यकीन है कि इसमें भी तुम्हारी वही सच्ची भावनाएँ होंगी। तुम्हारी कहानियों में मुझे हमेशा अपना अक्स दिखता है।
मुझे नहीं पता कि मैं तुम्हें दोबारा मिल पाऊँगी या नहीं, लेकिन इतना जरूर कह सकती हूँ—अगर कहीं से भी एक नई ज़िंदगी शुरू करने का मौका मिले, तो मैं फिर से तुम्हें ही चाहूँगी। तुम्हारी रूबी।”
आलोक ने चिट्ठी पढ़ते ही एक लंबी सांस ली। उसकी आँखें भीग गईं। यह ख़त एक बार फिर से उसके ज़ख़्म हरे कर गया था।
कई महीने बीत गए। आलोक अब पहले से भी ज़्यादा मशहूर लेखक बन चुका था। उसकी किताबें दुनियाभर में पढ़ी जाने लगीं। लेकिन एक दिन, जब वह एक साहित्यिक समारोह में शामिल था, तभी उसे एक अनजानी खबर मिली- रूबी अब इस दुनिया में नहीं रही।
यह सुनते ही जैसे उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे यकीन ही नहीं हुआ। वह सोचता रह गया- आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है?
उसे पता चला कि रूबी एक गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। उसने अपनी तकलीफ किसी को नहीं बताई, न ही आलोक को। वह बस एक बार उसे देखना चाहती थी, इसलिए वह उससे मिलने आई थी।
आख़िरी मुलाकात, जो अधूरी रह गई
आलोक को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह कोलकाता पहुँचा, जहाँ रूबी की अंतिम निशानियाँ थीं। वहाँ उसे एक और चिट्ठी मिली, जो रूबी ने अपने अंतिम दिनों में उसके लिए लिखी थी।
“आलोक, जब तुम यह चिट्ठी पढ़ रहे होगे, तब मैं कहीं दूर जा चुकी होऊँगी। लेकिन मेरी आत्मा तुम्हारे आसपास ही होगी। मुझे तुम्हारे साथ ज़िंदगी बिताने का मौका नहीं मिला, लेकिन तुम्हारी कहानियों में मैं हमेशा जिंदा रहूँगी। अगर अगले जन्म में भगवान हमें फिर से मिलाए, तो मैं हर बंधन तोड़कर तुम्हारी हो जाऊँगी।
तुम्हारी रूबी।”
आलोक ने चिट्ठी को अपने सीने से लगा लिया। उसके दिल में हजारों भावनाएँ उमड़ने लगीं। अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल कहानी अब पूरी होने वाली थी। आलोक ने अपने जीवन की सबसे बेहतरीन किताब लिखी “रूबी- एक अधूरी प्रेम कहानी”। यह सिर्फ़ एक किताब नहीं थी, यह एक प्रेमी का आख़िरी प्रेम पत्र था।
लोगों ने इस किताब को पढ़कर आंसू बहाए, लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि किसी की सच्ची ज़िंदगी थी। आलोक को अब ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं थी। वह जानता था कि रूबी चली गई, लेकिन उसकी यादें, उसकी मोहब्बत और उसका वादा हमेशा जिंदा रहेगा। “कुछ प्रेम कहानियाँ कभी ख़त्म नहीं होतीं। वे समय के साथ और गहरी हो जाती हैं।”

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