रिया सिंह की कविता : “काशी”

।।काशी।।

जहाँ की हवाएं, पवित्रता की बनी पहचान है,
और आस्था ने स्वयं किया, ज्ञान से श्रृंगार है।
जहाँ जन्म लेना, स्वयं जीवन का सौभाग्य है,
वही काशी, वही बनारस, वही विश्वनाथ धाम है।

जहाँ भागीरथी नंदनी का अपार विस्तार है,
और हर दिन लगे दीपों का त्योहार है।
पुण्य कर्मो से पाता हर जीव स्वर्ग में स्थान है,
पर काशी मे मुक्ति का अर्थ साक्षात् बैकुंठ धाम है।

जो उत्तर प्रदेश की बढ़ा रही शान है,
वहीं हिंदू विश्वविद्यालय भी एक वरदान है।
जहाँ का सौंदर्य इन पंक्तियों में डाल रही जान है,
वही काशी, वही बनारस, वही विश्वनाथ धाम है।

जहाँ दशाश्वमेध घाट की आरती,
चित् को शांत करने हेतु पर्याप्त है।
जहाँ की संस्कृति समस्त आर्यावर्त मे विख्यात है,
वही काशी, वही बनारस, वही विश्वनाथ धाम है।

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