राजीव कुमार झा की कविता : यह धूपभरा तन

यह धूपभरा तन!
राजीव कुमार झा

धरती पर यह नयी ऋतु
जीवन की गति है,
आगे बहती एक नदी है!
यौवन की वह पावन धारा,
अरी सुंदरी!
किसने तुम्हें पुकारा!
बीत गया वह चंचल बचपन!
मृदु रागों से आज भरा मन!
अरी वसंती!
यह धूप भरा तन,
दुपहरी में तुम्हें पुकारे
नीलगगन!
इस सुंदर मौसम की छाया! किसने मन के आँगन में उसे बुलाया!
गोरे गालों पर प्रेम की सुरभित लाली!
तुम हँसती हो
ज्यों सोने सी
गेहूं की बाली!
होली के हँसी मजाक में
कितनी सुंदर लगती
गंदी गाली!
गलियों में रंगों की बौछारें
खूब बजाओ ताली!
यमुनातट पर घूम रहा
वृंदावन का वनमाली!
जीवन में परिवर्तन आता, आकाश वसंत में
धूप से जब भर जाता,
अरी प्रिया!
कोई अकेला
जीवन का गीत सुनाता!
सागर का नदिया से
गहरा नाता,
बरसात में बादल
उड़ता आता!
धरती का सूना आँचल
खुशियों से भर जाता!
जंगल में आकर
झील किनारे
कोई मौज मनाता!
रिमझिम बारिश में
संग तुम्हें भी पाता!
अब कितनी रूपवती हो!
मीठे जल से पगी हुई हो!
बहती अब जलधार
सुनाई देते
नवजीवन के राग
मिट्टी के कण कण में
अरी सुंदरी!
उल्लास भरा है
कितना हर्षित करता
यह यौवन
रंगबिरंगी छटा बिखेरती
इस रश्मिलोक की रानी हो!
तुम परिवर्तन की
नयी कहानी हो!
लाल-लाल होंठ मधुर भाव तुम्हारा!
नारियल सा सुंदर उरोज
किसके मन को भाया!
जीवन का जल
आंखों में भर आया!
चांद तुम्हें देखने आया!
यह पहाड़ का पिछवाड़ा,
किसने तुमको यहां बुलाया!
कितनी सुंदर कमर तुम्हारी!
यह सुंदर पीली साड़ी
तुम अब बेहद सुंदर नारी!
अरी प्रिया!
मन के मोदक से
अब किसके नितंब भरे हैं!
गजगामिनी!
आज वसंत आया!
सूरज ने सबके जीवन में
धनधान्य लुटाया!
अब पिया का घर तुम्हें भाया!
किसने कंगन पहनाया!
उसने आज फिर
तुम्हें बाग में बुलाया!
अरी चमेली!
तुम रास्ते में अब बैठी कहां अकेली!
झुरमुट में आकर!
हँसती सखियाँ और सहेली!

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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