प्रवासियों के लिए आगे कुआं पीछे खाई

राजकुमार गुप्त, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता

आज पूरे देश के विभिन्न राज्यों में जितने भी प्रवासी मजदूर लॉक डाउन के दौरान अपने अपने गांव घरों को लौटे हैं उनमें से ज्यादातर लोग अब वापस अपने कर्म स्थलों की ओर लौटने को बेताब है और बेताब भी क्यों ना हो पेट की आग सभी को जला देती है। संबंधित राज्य सरकारों से प्रवासियों को रोजगार की जो उम्मीद थी वह चकनाचूर हुई है, कोरोना की हालत में सुधार होते ही चाहे अनचाहे सभी प्रवासियों का अपने कार्य स्थलों पर लौटना मजबूरी होगी।

सभी प्रवासी अभी भी अपने अपने राज्य सरकारों से टकटकी लगाए हुए हैं उन्हें अपने राज्य में ही रोजगार सुलभ हो जाए परंतु निकट भविष्य में ऐसा होता दिख नहीं रहा है अतः बहुत सारे प्रवासी अपने-अपने कार्य स्थलों की ओर लौटने के लिए बेचैन हो रहें है, कारण कब तक घर में बैठे-बैठे खायेंगे। आज स्थिति यह है कि अपनों से कर्ज मिलना भी मुश्किल हो रहा है अतः मरता क्या न करता, मजबूरी है फिर से पलायन करना।

हाँ इस बार ज्यादातर राज्यों के प्रवासी अपने परिवारों को गांव में ही छोड़कर अकेले ही लौटने की सोच रहे हैं।
इधर बिहार सरकार अपने प्रवासी नागरिकों की उपस्थिति में ही राज्य विधानसभा का चुनाव करवा लेना चाहती है जिससे कि इन्हें फिर से राज्य में ही रोजगार का प्रलोभन देकर इनके वोटों को लिया जा सके, साथ ही बिहार का विपक्ष भी इस वक्त बिखरा हुआ है अतः अपनी जीत को ये तय मानकर चल रहे हैं।

प्रवासी बिहारियों समेत बिहार के सभी नागरिक इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में सभी दलों के उम्मीदवारों से यह प्रश्न जरूर करें की उनके दलों के पास बिहार से इतनी भारी मात्रा में रोजगार के लिए पलायन को रोकने की क्या योजनायें है? (हालांकि इस तरह के सवाल सभी नागरिकों को अपनी-अपनी राज्य सरकारों से विधानसभा चुनाव के वक्त पूछनी चाहिए और लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार से भी)

पिछली सभी सरकारों के कार्यों से असंतुष्ट होकर ही बिहार की जनता ने नीतीश कुमार जी की अगुवाई वाली सरकार को लगातार दो बार तथा पिछले अधूरी गठबंधन को लेकर तीन बार चुना है अर्थात नितीश बाबू का कुल शासन 12 वर्षों का है, अतः वर्तमान सरकार से ही पूछा जाना चाहिए इन वर्षों में कितने नए कल कारखाने आपने खोलें और कितने बंद हुए साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा की बदतर हालातों के लिए आपकी सरकार ने क्या कदम उठाये?

आज सभी राज्य सरकारों की प्रवासियों के लिए की गई बड़ी-बड़ी घोषणाएं सिर्फ वादे ही साबित हुई है।
कुल मिलाकर सभी राज्यों के प्रवासियों और खासकर बिहारवासियों के लिए जो कि सदियों से पलायन का दंश झेल रहे हैं आज भी आगे कुआं तो पीछे खाई वाली स्थिति में ही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *