कोलकाता। मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच (पूर्वी भारत) के तत्वावधान में आयोजित काव्य संध्या (ऑनलाइन) आदरणीय डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र की अध्यक्षता में संपन्न हुई कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व आईपीएस गंगेश्वर सिंह और विशिष्ट अतिथि के रूप में सोनी सुगंधा सम्मिलित थी। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रणति ठाकुर की सरस्वती वंदना से हुआ। मगसम के राष्ट्रीय संयोजक सुधीर सिंह सुधाकर ने अपने उद्बोधन में मंच का परिचय दिया तत्पश्चात विभिन्न राज्य से जुड़े कवि कवयित्री ने इस काव्य संध्या को अपने काव्य पाठ से सुशोभित किया। इस काव्य संध्या में जुड़े कवि कवयित्रियों ने एक से बढ़ कर एक रचनाएँ पढ़ीं जो इस प्रकार है।
एक बार और जाल फेंक रे मछेरे,
जाने किस मछली में बंधन की चाह हो!
सपनों की ओस गूँथती कुश की नोक है,
हर दर्पण में उभरा एक दिवालोक है।
रेत के घरौंदों में सीप के बसेरे,
इस अँधेर में कैसे नेह का निबाह हो।
डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र (देहरादून)
जीवन एक तंदूर, यारो जीवन एक तंदूर।
कुंवर वीर सिंह “मार्तण्ड”
गर हवस की नहीं तो शक की नजर से देखा!
रात में जब किसी लड़की को अकेले देखा।
नितिन मेहता
गुमसुम पांचाली को देख,
कृष्ण कहे सखी क्या उलझन है?
सब कुछ हुआ अनुरूप तुम्हारे,
फिर को व्यथित तुम्हारा मन है।
प्रज्ञा माया शर्मा
हर अंधेरी वीथिका को जगमगाना चाहता हूँ।
बसंत जमशेदपुरी
मैं सरि हूँ प्रेम की द्वेष में मैं क्यों जलूँ?
पुण्य भूमि छोड़ कर पाक में मैं क्यों बहूँ?
हिमाद्रि मिश्र ‘हिम’
मैं सरि हूँ प्रेम की द्वेष में मैं क्यों जलूँ ?
पुण्य भूमि छोड़ कर पाक में मैं क्यों बहूँ?
मन मेरे में आज हरसिंगार होना चाहती हूँ ।
प्रणति ठाकुर
कोई भी इस दिल को, दिल की बात बताने आया क्या?
कमल पुरोहित
तुम्हारे रूप की हर चाँदनी, चंदा समझती है,
मयूरी जुल्फ की खुशबु, घने बादल समझते हैं।
बड़े ही नाज़-नखरे हैं, तुम्हारे हर तरफ मशहूर,
इसे न तुम समझती हो, न मैं ही समझता हूँ।
प्रशांत करण
जिस कलम में शौर्य, साहस ओज की हुंकार है,
उस कलम की चेतना का स्वर प्रखर साकार है।
स्वाभिमानी, स्वावलम्बी सत्य का संकल्प ही,
राष्ट्र कवि दिनकर की सम्यक भावना का सार है।
सोनी सुगंधा (विशिष्ट अतिथि)
पथरीले कंटक पर साथी हँसते-हँसते चलना होगा,
जिसकी किस्मत में जितना है उतना दुख तो सहना होगा।
रेणु त्रिवेदी मिश्रा
हर हृदय में भावना परमार्थ की भर जाऊँ मैं,
अपने सिंचित कर्मफल को संग लेकर जाऊँ मैं।
अर्पणा सिंह
संवाद चपल आँखें करती, अधर रहे खामोश सदा।
है नजर लाज शैतानी भी, वार करे मदहोश सदा।
निवेदिता श्रीवास्तव “गार्गी”
ममता क्या माँ में होती है, पिता अछूते होते हैं,
माँ समान बच्चे की रक्षा का भार जनक भी ढोते हैं।
निर्मला कर्ण
आ न सकी इस धरती पर,
हैरान हूं अपनी नियति पर।
चिर निद्रा में सुला दी गई,
बेटी थी कोख में ही गिरा दी गई।
रंजना झा
कोई भी इस दिल को दिल की बात सुनाने आया क्या?
ठीक नहीं हूँ या अच्छा हूँ ये बतलाने आया क्या?
कमल पुरोहित “अपरिचित”
कुछ ज्यादा कुछ कम अपराधी,
आदम दर आदम अपराधी।
गंगेश्वर सिंह (मुख्य अतिथि)
सुना था की पिता की मृत्यु के बाद, परिवार के मुखिया यानी पिता का बड़ा पुत्र अपने भाइयों के लिए पिता समान हो जाता है।
परिवार की सबसे बड़ी बहू माँ का दर्जा प्राप्त कर लेती है, उसे भाभी माँ कहा जाता है।
सुधीर सिंह सुधाकर
इस शानदार कार्यक्रम का संयोजन डॉ. प्रशांत करण और कमल पुरोहित ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन निर्मला कर्ण जी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रीय संयोजक (पूर्वी भारत) डॉ. प्रशांत करण ने किया।
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