उत्तीर्णा धर की कविता : मध्यमवर्ग

मध्यमवर्ग

उच्च वर्ग समान बनने की चाहत,
निम्न वर्गों के कष्टों से होते आहत।
जी हां! हम मध्य वर्ग के है लोग ,
जो ना दुख झेलते न करते सुख भोग।
बस चिंताओं में डूबे रहते हैं ,
अपने आप से ही कहते हैं ।
सरकारी नौकरी की तलाश में हम रहते हैं,
रोजगार के फिराक में भटकते हैं ।
जी हां !हम मध्यवर्ग के हैं लोग,
जो ना दुख झेलते न करते सुख भोग।
सपने तो बहुत ऊंचे होते हैं ,
लेकिन पैसे संभाल कर खर्च हम करते हैं ।
यह पैसा ही तो है जिसको जुटाने में,
दिन-रात हमारा निकल ही जाते ।
जी हां! हम मध्य वर्ग के हैं लोग ,
जो ना दुख झेलते न करते सुख भोग ।
कर्ज लेते कहीं तो चुकाने की चिंता रहती,
कर्ज देते किसी को तो लेने की चिंता सताती ।
परिवार की सुख में ही सुख है हमारी,
और कोई सुख न हमको भाती ।
जी हां !हम मध्य वर्ग के हैं लोग ,
जो ना दुख झेलते न करते सुख भोग।

उत्तीर्णा धर

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