।।इंद्रधनुष।।
राजीव कुमार झा
रोज सुबह में
रजत रूप लिए तुमने
हर दिशा में दिखाया
मोतियों का हार
चाँद ने
खुले वितान में छितराया
सुनहरा दिवस
दोपहर की धूप
सूनी गली से
कब निकलती
इंद्रधनुष लेकर
किस मैदान में
तुम विहँसती
अरी सुंदरी !
यह साँझ की बेला को
तुमने
सितारों से सजाया।
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