फोटो सौजन्य : गूगल

।।मां।।
राजीव कुमार झा

रोज जिंदगी की
छाया को लेकर कर
किरणों की मुस्कान
समेटे
मां जगती जब
सुबह सवेरे
सारे घर के लोग
दिनभर
मां से बातें करते
मन के खाली
कोनों को
मां की बातों से
भरते
मां बच्चों को
सुबह सवेरे
नहलाती
उसके पहले
वह उन्हें जगाती
स्कूल भेजकर
घर के कामधाम में
जुट जाती
वह कहां अकेली
खुद को पाती
थककर
पल दो पल
जब सो जाती
सुंदर सपनों में
सो जाती
मां मेले में जाती
झूले पर
चुन्नू को झुलवाती
आज चाट पकौड़े
वह भी खाती
दूध पिलाती
आस पड़ोस में
जाती
झगड़े झंझट
निबटाती
सब बच्चों को
हंसकर
सारी बात बताती
मां एक दिन
जब बूढ़ी हो जाती
लाठी लेकर
गलियों से
तब घर में आती
सबको
घर बाहर की
बात बताती
आज जमाना
बदल गया
माएं ओल्ड होम में भी
रहती हैं
वहां बेटे बहू के
इंतजार में
किसको मन की बातें
कहती हैं!
कितना दुख सहती हैं
जब घर के बाहर
बूढ़ी हो कर
रहती हैं!

rajiv jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक
Shrestha Sharad Samman Awards

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here