कोमल साव की कविता : एक सुबह तू आया था

।।एक सुबह तू आया था।।

एक सुबह तू आया था
हर शाम तुझमे समाया था

नहीं थी खबर, तू यूँ रूह तक बस जाएगा
हर लम्हा इन होंठों पे, मुस्कान तू लाया था
बैठी रहती घंटो तेरी पनाहों में छुपके
तेरी बाहों के साये मे खुद को महफूज़ पाया था

एक सुबह तू आया था
हर शाम तुझमे समाया था

वो तेरी बातें, वो अदा, वो दीवानगी तेरी
वो रूठना-मनाना, वो हर पल की आवारगी तेरी
वो दिन जो बीतें तेरी हाथों में हाथ दिए
वो रातें जो बीती तेरी यादों को साथ लिए
वो भी क्या वक़्त, क्या जमाना तू लाया था

एक सुबह तू आया था
हर शाम तुझमे समाया था

आज कुछ खास हुआ
हर एक बीते पल का एहसास हुआ
दर्द मुझे इतना आज हुआ
कुछ तो आज खास हुआ
भर आई आँखें मेरी यह सोच के ही
क्यों मजबूर दिल इतना आज हुआ
कहने की हिम्मत मुझमे है नहीं
कहती हूँ तुझसे मैं आज यही
कर देना मुझको माफ़ तू
जो मैंने तेरा दिल दुखाया था

एक सुबह तू आया था
हर शाम तुझमे समाया था

जब भी देखा रौशन उस चाँद को
तेरी खिलखिलाती मुस्कान याद आई
जब भी देखा उस खुले आसमान को
तेरी बाहों की गर्माहट याद आई
जब बैठी लहरों को नापने
तो तेरी चाहत की गहराई याद आई
जब भी पाया खुद को किसी मुसीबत में
तेरी हर कही-अनकही बातें याद आई
फिर अचानक पूछा दिल ने एक सवाल खुद से ही
क्या बिछड़ने के लिए ही हमें मिलाया था

एक सुबह तू आया था
हर शाम तुझमे समाया था

रात सारी बैठकर अपनी बर्बादी का अफसाना लिखा मैंने
अपनों के बीच खुदको ही बेगाना लिखा मैंने
खुद के तड़प में भी दुवाओं में तुझे हँसाना लिखा मैंने
आज उन मीठे लम्हों को एक बीता ज़माना लिखा मैंने
अच्छा छोड़ो अब उस दीवाने को वफ़ादार
और खुद को बेवफा लिखा मैंने
चलो मान लिया तेरी खुदगर्ज़ी तेरी मोहब्बत
और खुद को ही ज़नाज़े के नाम लिखा मैंने
मगर तूने ही तो जीना सिखाया था

एक सुबह तू आया था
हर शाम तुझमे समाया था

कोमल साव, कवयित्री ( वकील)

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