अभिषेक पाण्डेय की कविता : देव पुरुष

“देव पुरुष”

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देव-पुरुष 

भेद-भाव नहीं करते

करती है उनकी नाक

उनकी आँखें 

उनके कान 

उन्हें नहीं महकता 

संडास अपना 

न ही आती है बदबू 

अपने पसीने से

उनकी आँखों में जमते हैं

सपने युवतियों के

नहीं जमता है तो कीचड़

उनके कानों में बजती है 

मठाधीशों की पुकार

जिसे सुनकर तन जाती हैं

उनकी भौंहें 

कानों में दर्द-सा रहता है

पर मैला नहीं आता।

-अभिषेक पाण्डेय

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