रीमा पांडेय की कविता : “मन की निर्मलता”

*मन की निर्मलता*

मन में है काबा और काशी
निर्मलता के हम अभिलाषी
पहले मन को स्वच्छ बनायें
फिर गंगा में डूब लगायें।

मन में रख लें भाईचारा
सारा जग बन जाये हमारा
प्रेम का एक दीया जलायें
मानवता आलोकित हो जाये।

मन हो जायेगा जब चंगा
वहीं बहेगी पावन गंगा
बरसेगी करूणा की धारा
हर्षित होगा तन मन सारा।

मन का कर लें हम विस्तार
विश्व बनेगा एक परिवार
मन में हो ईश्वर का वास
छू लेंगे तब सारा आकाश।

रीमा पांंडेय, कोलकाता

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