फादर्स डे पर अशोक वर्मा “हमदर्द” की कविता : मैं पिता हूं, फादर नहीं

।।मैं पिता हूं, फादर नहीं।।
अशोक वर्मा “हमदर्द”

मैं पिता हूं,
हर दिन सुबह से पहले उठता हूं,
बच्चों की नींद में चुपचाप उनके माथे को चूमता हूं,
फिर निकल पड़ता हूं उस दुनिया में
जहाँ मेरी पहचान बस एक जिम्मेदारी है।

मैं पिता हूं,
जिसके लिए कोई खास दिन नहीं होता,
कोई कार्ड, कोई गुलदस्ता,
सिर्फ महीने के अंत में बही-खाता होता है
जिसमें बच्चों की फीस, दूध, दवा और उम्मीदें दर्ज होती हैं।

मैं पिता हूं,
जो अपनी थकान को तह कर
रात के खाने की थाली के नीचे रख देता है,
जो बच्चों के सवालों में अपनी अधूरी पढ़ाई खोजता है
और उनकी हँसी में अपने अधूरे सपनों को पूरा होता देखता है।

मैं पिता हूं,
जो कभी “आई लव यू डैड” नहीं सुनता,
पर उनके हर सुरक्षित कदम में
अपनी आवाज छुपा कर चलता हूं।

मैं पिता हूं,
जिसे दिन नहीं चाहिए
याद किए जाने के लिए,
जिसकी उपस्थिति घर के हर कोने में है,
पर नाम दीवारों पर कहीं नहीं।

और शायद…
इसलिए मैं “फादर” नहीं हूं –
जिसे दुनिया एक दिन याद करती है,
बल्कि मैं वो “पिता” हूं
जो हर दिन, हर पल
अपने बच्चों में साँस लेता है।

आज फादर्स डे है,
पर मेरे लिए तो
हर दिन “बच्चों का दिन” है।
क्योंकि मैं पिता हूं –
फादर नहीं।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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