Climate कहानी, कोलकाता। 21 अक्टूबर 2025 : भारत में अब छतें सिर्फ़ बारिश नहीं, सूरज भी पकड़ रही हैं। प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना (PMSGY) ने एक साल में 4,946 मेगावॉट रूफटॉप सोलर क्षमता जोड़कर ₹9,280 करोड़ की सब्सिडी जारी की है। लेकिन 1 करोड़ इंस्टॉलेशन के लक्ष्य का केवल 13.1% ही पूरा हो पाया है।
📊 प्रमुख आँकड़े
| मापदंड | आँकड़ा |
|---|---|
| आवेदन | 57.9 लाख (जुलाई 2025) |
| इंस्टॉलेशन | 6.9 लाख |
| सब्सिडी | ₹9,280 करोड़ |
| टारगेट | 30GW (2027 तक) |
| औसत conversion ratio | 22.7% |
| गुजरात/केरल conversion ratio | 65%+ |
IEEFA और JMK Research की नई रिपोर्ट बताती है कि जुलाई 2025 तक 57.9 लाख घरों ने रूफटॉप सोलर के लिए आवेदन किया। यह मार्च 2024 की तुलना में चार गुना वृद्धि है। फिर भी, कुल 1 करोड़ इंस्टॉलेशन के लक्ष्य का सिर्फ 13.1% ही पूरा हो सका है।यानी उत्साह ज़रूर बढ़ा है, पर ज़मीन पर रफ्तार अभी सीमित है।
🧭 राज्य आगे बढ़ रहे हैं — अपने तरीके से
- असम, दिल्ली, गोवा, यूपी, उत्तराखंड ने अतिरिक्त पूंजी सब्सिडी शुरू की
- गुजरात और केरल में सोलर इकोसिस्टम परिपक्व, वेंडर नेटवर्क मज़बूत
- ग्रामीण इलाकों में सोलर को अब भी “महंगी तकनीक” माना जाता है
गुजरात और केरल इस रेस में सबसे आगे हैं। दोनों राज्यों का conversion ratio 65% से अधिक है — मतलब, वहाँ जितने लोग आवेदन करते हैं, उनमें से दो-तिहाई के घरों पर सोलर लग भी जाता है। इसका कारण साफ है: परिपक्व सोलर इकोसिस्टम, मज़बूत वेंडर नेटवर्क और उपभोक्ताओं में जागरूकता।
इसके उलट, देश का औसत installation-to-application conversion ratio सिर्फ़ 22.7% है — यह बताता है कि इच्छुक घरों में से चार में से तीन को अभी भी रास्ता नहीं मिल पा रहा।

🛠️ चुनौतियाँ
- कम जागरूकता और धारणा की बाधा
- कठिन लोन प्रक्रिया और पोर्टल एरर
- बिखरी हुई सप्लाई चेन और शिकायत निवारण की सीमित प्रभावशीलता
केंद्र की सब्सिडी के साथ-साथ कई राज्य सरकारें अब खुद भी मदद बढ़ा रही हैं। असम, दिल्ली, गोवा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने अतिरिक्त पूंजी सब्सिडी शुरू की है, ताकि शुरुआती इंस्टॉलेशन लागत कम हो सके।
पर जहाँ वित्तीय प्रोत्साहन हैं, वहीं कई अड़चनें भी बनी हुई हैं — कम जागरूकता, कठिन लोन प्रक्रिया, शिकायत निवारण पोर्टल की तकनीकी गड़बड़ियाँ, और बिखरी हुई सप्लाई चेन।
🧑🏫 समाधान की दिशा
- Capacity-building: 3 लाख से अधिक लोगों को प्रशिक्षण
- Domestic Content Requirement: भारतीय मॉड्यूल का अनिवार्य उपयोग
- Innovative Projects: 60% तक की ग्रांट
- सोलर सिटी और मॉडल विलेज की पहल
- Plug-and-play kits से इंस्टॉलेशन को सरल बनाने की योजना
IEEFA और JMK की रिपोर्ट बताती है कि सोलर एडॉप्शन की सबसे बड़ी बाधा अब पैसे या तकनीक से ज़्यादा, धारणा है। कई उपभोक्ताओं को अब भी लगता है कि सोलर लगाना महँगा है या रखरखाव मुश्किल है।
JMK Research के सीनियर कंसल्टेंट प्रभाकर शर्मा कहते हैं, “कम जागरूकता और आसान फाइनेंस की अनुपलब्धता अब भी बड़ी रुकावटें हैं। ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में लोग सोलर को अब भी ‘महंगी तकनीक’ समझते हैं।”
- 🗣️ विशेषज्ञों की राय
“हर राज्य को अपने स्तर पर स्पष्ट और समयबद्ध रूफटॉप सोलर लक्ष्य तय करने होंगे।” — विभूति गर्ग, डायरेक्टर, IEEFA
“जिले स्तर पर एस्केलेशन मैट्रिक्स बनाना चाहिए ताकि शिकायतें सिर्फ़ डिस्कॉम या पोर्टल तक सीमित न रहें।” — अमन गुप्ता, JMK Research
इसी गैप को भरने के लिए योजना में capacity-building programmes जोड़े गए हैं — 2024 से अब तक तीन लाख से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है, ताकि स्थानीय वेंडर, फाइनेंसर और यूटिलिटी कर्मी सोलर इकोसिस्टम का हिस्सा बन सकें।
घरेलू सामग्री और डिजिटल सुधार
PMSGY के तहत अब Domestic Content Requirement लागू है, जिससे हर इंस्टॉलेशन में प्रमाणित भारतीय सोलर मॉड्यूल का उपयोग सुनिश्चित होता है। “इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स” घटक के तहत सरकार 60% तक की ग्रांट देकर नए बिज़नेस मॉडल्स और पायलट प्रोजेक्ट्स को प्रोत्साहन दे रही है।
राज्यों को सोलर सिटी और मॉडल सोलर विलेज विकसित करने के लिए भी कहा गया है। लेकिन रिपोर्ट यह भी मानती है कि बिना सुसंगत और समयबद्ध लक्ष्यों के, ये प्रयास छिटपुट रह सकते हैं।
IEEFA की डायरेक्टर विभूति गर्ग कहती हैं, “हर राज्य को अपने स्तर पर स्पष्ट और समयबद्ध रूफटॉप सोलर लक्ष्य तय करने होंगे। तभी नीति का असर ज़मीनी स्तर पर दिखेगा।”
शिकायतें, देरी और समाधान
रिपोर्ट यह भी बताती है कि ग्रिवांस रेड्रेसल सिस्टम तो बनाया गया है, लेकिन उसकी प्रभावशीलता सीमित है। कई उपभोक्ताओं को सब्सिडी डिस्बर्समेंट, पोर्टल एरर या डेटा एंट्री गलती जैसी समस्याएँ झेलनी पड़ रही हैं। इस पर JMK Research के अमन गुप्ता सुझाव देते हैं, “जिले स्तर पर एस्केलेशन मैट्रिक्स बनाना चाहिए ताकि शिकायतें सिर्फ़ डिस्कॉम या पोर्टल तक सीमित न रहें।”
आगे की दिशा: प्लग-एंड-प्ले सोलर
रिपोर्ट कहती है कि सोलर मार्केट में अभी तक एकरूप गुणवत्ता की कमी है। अगर मानकीकृत plug-and-play सोलर किट्स (जिसमें मॉड्यूल, इन्वर्टर, स्ट्रक्चर, और केबल एक पैक में हों) तैयार की जाएँ, तो इंस्टॉलेशन आसान और तेज़ हो सकता है। यही दृष्टिकोण भविष्य के सोलर विस्तार की कुंजी बन सकता है।
निष्कर्ष: रोशनी की यह यात्रा लंबी है, लेकिन दिशा सही है
PMSGY ने साबित किया है कि भारत की छतें अब सिर्फ़ धूप से नहीं, उम्मीद से भी भर रही हैं।सिर्फ़ एक साल में 4.9GW जोड़ना मामूली बात नहीं है।लेकिन अगर 2027 तक 30GW का लक्ष्य हासिल करना है, तो सब्सिडी से ज़्यादा ज़रूरत है —
डिजिटल पारदर्शिता, मानकीकृत समाधान, और उपभोक्ता भरोसे की। जलवायु कार्रवाई की असली परीक्षा अब नीतियों में नहीं, बल्कि उन छतों पर होगी जहाँ कोई परिवार सूरज से अपनी पहली बिजली बना रहा होगा।
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