कम घातक नहीं मानसिक रोग भी…!!

दीपक कुमार दासगुप्ता, खड़गपुर। हमारे देश में स्वास्थ्य अभी भी पूरी तरह से चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया है। इस विडंबना की भयावहता हमने कोरोना काल में देखी। जब महामारी से निपटने के लिए मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे से ही काम चलाया जाता रहा। कोई अतिरिक्त व्यवस्था कम ही नजर आई। आज हर इंसान स्वास्थ्य संबंधी समस्या को लेकर परेशान है। अपवाद ही कोई होगा, जो अपने को पूर्ण रूप से स्वस्थ कह सके। यदि कोई ऐसा सौभाग्यशाली हो भी तो कोई गारंटी नहीं कि उसके परिवार का हर सदस्य भी सेहतमंद हो। स्वस्थ रहने की चिंता और इस पर होने वाला भारी खर्च आदमी को मानसिक रूप से बीमार बना रहा है। जबकि यह मानसिक रोग शारीरिक व्याधियों से भी ज्यादा खतरनाक है।

आज हम अपने आस-पास कई लोगों को हैरान-परेशान, तनावग्रस्त, अपने आप में खोए यहां तक बेवजह बड़बड़ाते देखते हैं। यह मानसिक समस्या का संकेत है। जिसकी कभी भी भयंकर परिणति हो सकती है। ओमिक्रोन के डर से कानपुर में एक डॉक्टर द्वारा अपनी पत्नी और बच्चों की निर्मम हत्या भी इसी गंभीर मानसिक समस्या का उदाहरण है। इसलिए सरकार को मानसिक रोग की गंभीरता को समझते हुए अविलंब बड़ी संख्या में मानसिक चिकित्सालयों की व्यवस्था हर जगह करनी चाहिए, अन्यथा समस्या का दायरा लगातार बढ़ते रह कर समाज के बड़े हिस्से को बीमार बना सकता है। इसलिए सरकार को अविलंब देश के सभी जिला व अनुमंडल अस्पतालों में मनोचिकित्सकों की व्यवस्था भी करनी चाहिए।

दीपक कुमार दासगुप्ता, समाजसेवी

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