
महिलाओं में वित्तीय जागरूकता पिछले वर्ष की तुलना में 42 प्रतिशत बढ़ी
भारत की आर्थिक वृद्धि व प्रगति में महिला कामकाजी पेशेवरों की प्रतिभा, समर्पण, उत्साह, मेहनत का सराहनीय योगदान है- अधिवक्ता के.एस. भावनानी
अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया ह्रदय से स्वीकार करती है कि भारत में महिलाओं को मान-सम्मान, पूछ-परख व अनेक शासकीय योजनाओं में प्राथमिकता से दर्ज़ा मिलता है जिसका आभास लेडीज फर्स्ट के एक तरह के प्रोटोकॉल से ही होता चला आ रहा है। अभी 8 मार्च 2023 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी आ रहा है। एक ओर हम देखते हैं कि आज के युग में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे निकल रही है, जिसका सटीक उदाहरण हम पढ़ाई में फर्स्ट से लेकर महिला कामकाजी पेशेवरों में भी आज महिलाएं अग्रणी है। इसलिए ही आज हर नौकरियों में कंपनियों द्वारा महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है, तो दूसरी ओर निजी क्षेत्र में भी महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है।
मेरा मानना है कि उनमें जवाबदारी, जिम्मेदारी की सजगता होना व हर काम को गंभीरता से लेने का एक अभूतपूर्व गुण होता है। आज हम इस विषय पर बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि दिनांक 3 मार्च 2025 को देर शाम नीति आयोग ने उधारकर्ताओं से निर्माणकर्ताओं तक भारत के वित्तीय विकास की कहानी में महिलाओं की भूमिका पर एक रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें महिलाओं में वित्तीय जागरूकता पिछले वर्ष की तुलना में 42 पर्सेंट बढ़ी है इत्यादि अनेक सकारात्मक बातें महिलाओं के पक्ष में बताई गई है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत की आर्थिक वृद्धि व प्रगति में महिला कामकाजी पेशेवरों की प्रतिभा समर्पण उत्साह व मेहनत का सराहनीय योगदान की।
साथियों बात अगर हम 3 मार्च 2025 को देर शाम नीति आयोग द्वारा महिलाओं के वित्तीय क्षेत्र में उपलब्धियों सहयोग की रिपोर्टिंग जारी करने की करें तो, नीति आयोग ने आज उधारकर्ताओं से निर्माणकर्ताओं तक- भारत की वित्तीय विकास की कहानी में महिलाओं की भूमिका शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की। नीति आयोग के सीईओ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में अधिक महिलाएं ऋण लेना चाहती हैं और सक्रिय रूप से वे अपने क्रेडिट स्कोर की निगरानी कर रही हैं। दिसंबर 2024 तक, 27 मिलियन महिलाएं अपने क्रेडिट की निगरानी कर रही थीं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 42 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है और ये बढ़ती वित्तीय जागरूकता का संकेत देता है।
इस रिपोर्ट को ट्रांसयूनियन सीआईबीआईएल, नीति आयोग के महिला उद्यमिता मंच (डब्ल्यूईपी) और माइक्रोसेव कंसल्टिंग द्वारा प्रकाशित किया गया है। लॉन्च के दौरान, नीति आयोग के सीईओ ने महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने में वित्त तक पहुंच की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, सरकार मानती है कि वित्त तक पहुंच महिला उद्यमिता के लिए एक बुनियादी प्रवर्तक है। महिला उद्यमिता मंच (डब्ल्यूईपी) का एक समावेशी इको-सिस्टम बनाने की दिशा में काम करना जारी है, जो वित्तीय साक्षरता, ऋण तक पहुंच, परामर्श और बाजार लिंकेज को बढ़ावा देता है।
हालांकि, न्यायसंगत वित्तीय पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। महिलाओं की जरूरतों के अनुरूप समावेशी उत्पादों को डिज़ाइन करने में वित्तीय संस्थानों की भूमिका साथ ही संरचनात्मक बाधाओं को संबोधित करने वाली नीतिगत पहलें, इस गति को बढ़ाने में सहायक होंगी। डब्ल्यूईपी के तत्वावधान में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, फाइनेंसिंग वूमेन कोलैबोरेटिव (एफडब्ल्यूसी) का गठन किया गया है। हम चाहते हैं कि वित्तीय क्षेत्र के और अधिक हितधारक एफडब्ल्यूसी से जुड़ें और इस मिशन में अपना योगदान दें।
नीति आयोग की प्रमुख आर्थिक सलाहकार और डब्ल्यूईपी की मिशन निदेशक ने कहा : महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करना भारत के कार्यबल में प्रवेश करने वाली महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर सुनिश्चित करने का एक तरीका है। यह समान आर्थिक विकास को गति देने के लिए एक व्यवहार्य रणनीति के रूप में भी काम करता है। महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने से 150 से 170 मिलियन लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं और साथ ही इससे श्रम बल में महिलाओं की अधिक भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है।
रिपोर्ट बताती है कि कुल स्व-निगरानी आधार में महिलाओं की हिस्सेदारी दिसंबर 2024 में बढ़कर 19.43 प्रतिशत हो गई, जो 2023 में 17.89 प्रतिशत थी। गैर-मेट्रो क्षेत्रों की महिलाएं, मेट्रो क्षेत्रों की तुलना में, अपने ऋण की सक्रिय रूप से स्वयं निगरानी कर रही हैं। गैर-मेट्रो क्षेत्रों में 48 प्रतिशत और मेट्रो क्षेत्रों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2024 में महाराष्ट्र, तमिलनाडु कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में सभी स्व-निगरानी महिलाओं का 49 प्रतिशत हिस्सा होगा, जिसमें दक्षिणी क्षेत्र 10.2 मिलियन के साथ सबसे आगे है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित उत्तरी और मध्य राज्यों में पिछले पांच वर्षों में सक्रिय महिला उधारकर्ताओं में सबसे अधिक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) देखी गई।
2019 से, व्यवसाय ऋण उत्पत्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और गोल्ड लोन में उनकी हिस्सेदारी 6 प्रतिशत बढ़ी है। दिसंबर 2024 तक व्यवसाय उधारकर्ताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत थी। हालांकि ऋण से बचने, खराब बैंकिंग अनुभव, ऋण तत्परता में बाधाएं और कलैटरल् और गारंटर के साथ समस्याएं जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं। बढ़ती ऋण जागरूकता और बेहतर स्कोर के साथ, वित्तीय संस्थानों के पास महिलाओं की अनूठी आवश्यकताओं के अनुरूप जैंडर-स्मार्ट वित्तीय उत्पाद पेश करने का अवसर है।
साथियों बात अगर हम किसी राष्ट्र की प्रगति के अच्छे मापदंडों में से एक महिलाओं की प्रतिभा समर्पण उत्साह की करें तो, एक महान बुद्धि और शक्ति वाले बुद्धिमान व्यक्ति ने एक बार कहा था, “किसी राष्ट्र की प्रगति का सबसे अच्छा मापदंड यह है कि वह अपनी महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है। सदियों से, महिलाओं ने चुनौतियों और बाधाओं का सामना किया है और इसने उन्हें असीम धैर्य, दृढ़ता प्रदान की है और उन्हें और अधिक मजबूत बनने में मदद की है। पिछले कुछ दशकों में, महिला कामकाजी पेशेवरों ने अपनी प्रतिभा, समर्पण और उत्साह के साथ कड़ी मेहनत की है। वे भारत की आर्थिक वृद्धि और समृद्धि में बहुत बड़ा योगदान देती हैं। ग्रामीण भारत में भी, महिलाएँ हर रोज नई उपलब्धियाँ हासिल कर रही हैं।
सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार के बावजूद, महिलाओं ने वित्तीय स्वतंत्रता के अपने अधिकार का दावा किया है, शून्य से व्यवसाय खड़ा किया है और अपने आस-पास के लोगों को प्रेरित किया है। पंचायत प्रणाली में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है, जबकि ‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ जैसे कई राष्ट्रीय कार्यक्रम उन्हें जमीनी स्तर पर नेतृत्व के अवसर प्रदान कर रहे हैं। ‘स्वच्छ भारत मिशन’ और ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जैसी सरकारी पहलों ने महिला कार्यबल को पर्यवेक्षी नौकरी के अवसर प्रदान किए हैं। आज, भारत दुनिया में स्टार्टअप के मामले में तीसरा सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है और साथ ही यूनिकॉर्न समुदाय में भी तीसरा सबसे बड़ा है।
हालाँकि उनमें से केवल 10 प्रतिशत का नेतृत्व महिला संस्थापकों द्वारा किया गया है। समय की मांग है कि महिला उद्यमियों के लिए मानसिक और वित्तीय रूप से अधिक समर्थन जुटाया जाए और उन्हें अपनी यात्रा शुरू करने में मदद की जाए। सौभाग्य से पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के व्यवसायिक नेता बनने और कंपनियों की स्थापना करने की पूरी प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव देखा गया है।
साथियों बात अगर हम रिपोर्टिंग के कुछ महत्वपूर्ण अंशो की करें तो, रिपोर्ट बताती है कि भारतीय महिलाएं तेजी से कर्ज ले रही है और वित्तीय स्वतंत्रता की ओर बढ़ रही हैं। हालांकि व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए कर्ज लेने की प्रवृत्ति अभी भी कम है। सरकार और वित्तीय संस्थानों द्वारा महिलाओं के लिए बेहतर वित्तीय उत्पाद और नीति समर्थन देने से यह रुझान और तेज हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 27 मिलियन महिला उधारकर्ता दिसंबर 2024 में अपने ऋण की सक्रिय रूप से निगरानी कर रही थीं, जो कि दिसंबर 2023 में ऐसा करने वाली लगभग 19 मिलियन महिलाओं की तुलना में 42 पेर्सेंट अधिक है। यह दर्शाता है कि महिला उधारकर्ता वित्तीय सशक्तिकरण की आधारशिला के रूप में क्रेडिट हेल्थ के महत्व को तेजी से पहचान रही हैं।
युवा महिलाएं लोन निगरानी में आगे हैं। जैसे-जैसे अधिक महिलाएं कार्यबल से जुड़ रही है या उद्यमी बन रही हैं, औपचारिक ऋण तक पहुँच उन्हें अपने करियर को आगे बढ़ाने या अपने बिजनेस आगे बढ़ाने का मार्ग प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, अपने ऋण की निगरानी करने से महिला उधारकर्ताओं को अपने फिनांशियल हेल्थ बनाए रखने, बेहतर ऋण शर्तों को सुरक्षित करने और पहचान की चोरी से बचाने में मदद मिलती है। उधारकर्ता अपनी क्रेडिट स्थिति के बारे में सतर्क रहकर बेहतर वित्तीय निर्णय ले सकते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुल स्व-निगरानी आधार में महिलाओं की हिस्सेदारी दिसंबर 2024 में बढ़कर 19.43 प्रतिशत हो गई, जो दिसंबर 2023 में 17.89 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट के निष्कर्षों पर बोलते हुए, एमएससी के प्रबंध निदेशक मनोज कुमार शर्मा ने कहा : निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं। 2019 से ऋण चाहने वाली महिलाओं की संख्या 22 प्रतिशत की सीएजीआर से बढ़ी है, जिसमें 60 प्रतिशत उधारकर्ता अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। यह मेट्रो शहरों से परे एक गहरी वित्तीय छाप को रेखांकित करता है। इसके अलावा, युवा जेन जेड महिलाएं ऋण निगरानी में अग्रणी हैं, इस समूह में संख्या साल-दर-साल 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे 2024 में स्व-निगरानी करने वाली महिला आबादी में उनकी हिस्सेदारी 22 प्रतिशत हो गई है।
मिलेनियल 3 महिलाओं की संख्या में 38 प्रतिशत साल दर साल वृद्धि देखी गई, जिससे उसी अवधि के लिए स्व-निगरानी करने वाली महिला आबादी में उनकी हिस्सेदारी 52 प्रतिशत हो गई। यहां तक कि कुल स्व-निगरानी आबादी के भीतर भी, दिसंबर 2024 में जेन जेड महिला उधारकर्ताओं की हिस्सेदारी दिसंबर 2023 में 24.9 प्रतिशत से बढ़कर 27.1 प्रतिशत हो गई। इन मेट्रिक्स में वृद्धि वित्तीय जागरूकता के उच्च स्तर और वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने की दिशा में क्रेडिट प्रबंधन उपकरणों की व्यापक स्वीकृति को इंगित करती है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि नीति आयोग की रिपोर्ट 2025 जारी- उधारकर्ताओं से निर्माणकर्ताओं तक- भारत के वित्तीय विकास की कहानी में महिलाओं की विशेष भूमिका। महिलाओं में वित्तीय जागरूकता पिछले वर्ष की तुलना में 42 प्रतिशत बढ़ी। भारत की आर्थिक वृद्धि व प्रगति में महिला कामकाजी पेशेवरों की प्रतिभा समर्पण उत्साह मेहनत का सराहनीय योगदान है।
(स्पष्टीकरण : उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। यह जरूरी नहीं है कि कोलकाता हिंदी न्यूज डॉट कॉम इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।)
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