वाराणसी। निर्जला एकादशी व्रत (वैष्णव संप्रदाय) – 07 जून, शनिवार को है। निर्जला एकादशी का व्रत मन को संयम सिखाता है। वर्ष में सामान्यत : 24 एकादशी आती हैं, किंतु जब अधिकमास (मलमास) होता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है।
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि इस व्रत में जल तक ग्रहण करना वर्जित होता है, इसीलिए इसे ‘निर्जला’ एकादशी कहते हैं। इसे पांडव एकादशी या भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु, पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दिन व्रत करने से सभी तीर्थों में स्नान के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है तथा यह एक व्रत पूरे वर्ष की सभी एकादशियों का पुण्य प्रदान करता है। यह व्रत स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं।
इस वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि 06 जून शुक्रवार प्रातः 02:17 बजे प्रारंभ होकर 07 जून शनिवार प्रातः 04:49 बजे समाप्त होगी। चूंकि सूर्योदय व्यापिनी तिथि 06 जून को है, अतः स्मार्त संप्रदाय (सामान्य गृहस्थी) के अनुसार व्रत 06 जून शुक्रवार को रखा जाएगा। वहीं वैष्णव संप्रदाय के लोग 07 जून शनिवार को व्रत करें।
नोट : जिन लोगों ने स्मार्त संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली है, वे 06 जून को व्रत रखें।
जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली है, वे 07 जून को व्रत रखें।
वैष्णव संप्रदाय की परिभाषा : वे भक्तजन जो वैष्णव गुरुओं से दीक्षित हों, जिनके गले में कंठी (तुलसी माला) हो, तथा जिन्होंने माथे या गले पर चंदन, गोपी चंदन, श्रीखंड, त्रिपुण्ड्र, उर्ध्वपुंड्र या विष्णु चरण आदि के चिन्ह धारण किए हों – वही वैष्णव कहलाते हैं।
इस दिन किया गया दान समस्त पापों का नाश करता है और परमपद की प्राप्ति कराता है। इस दिन ब्राह्मणों एवं जरूरतमंदों को छाता, खड़ाऊँ, आँवला, आम, खरबूजा, वस्त्र, जल से भरा कलश, पंखा, जौ, गाय आदि का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है। मिष्ठान्न व दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करें।
लोग इस दिन मीठे जल की छबीलें लगाते हैं। गंगा स्नान, दान-पुण्य और सेवा का विशेष महत्व होता है।
एकादशी के दिन “ॐ नमो वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। यह व्रत केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, अपितु मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह मन को संयमित करता है और शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा : जब सर्वज्ञ वेदव्यास जी ने पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया, तो भीमसेन ने निवेदन किया,”पितामह! आपने प्रति पक्ष एक दिन उपवास की बात कही है। मैं तो एक समय भी भोजन के बिना नहीं रह सकता। मेरे उदर में ‘वृक’ नामक अग्नि है, जो निरंतर जलती रहती है। मुझे कई व्यक्तियों के बराबर भोजन करना पड़ता है। तो क्या मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊँगा?”
पितामह वेदव्यास ने कहा : “कुंतीनंदन! धर्म की यही विशेषता है कि वह सबको धारण करता है और सबके योग्य साधनों की व्यवस्था करता है। तुम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी – जो ‘निर्जला’ के नाम से जानी जाती है – का व्रत करो। इससे तुम्हें वर्ष की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा।”
इस आश्वासन पर भीमसेन इस व्रत को करने के लिए सहमत हो गए।
एकादशी व्रत पूजन विधि :
व्रत का आरंभ दशमी तिथि से होता है। उस दिन सात्विक भोजन करें।
एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें और व्रत का संकल्प लें।
पति-पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण की उपासना करें।
पूजा स्थान पर चौकी बिछाकर उस पर श्रीगणेश एवं लक्ष्मीनारायण की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
गंगाजल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
चांदी, तांबा या मिट्टी के कलश में जल भरकर नारियल रखें, कलश स्थापना करें।
नवग्रह, तीर्थ, योगिनियाँ एवं नगरदेवता की पूजा करें।
वैदिक मंत्रों, विष्णुसहस्रनाम आदि से षोडशोपचार पूजन करें :
आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, चंदन, फूल, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, तिल, दक्षिणा, आरती आदि।
व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
अंत में प्रसाद वितरण करें।
शाम के समय विष्णु पूजन के बाद फलाहार किया जा सकता है।
द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें – ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को भोजन कराकर दक्षिणा दें।
व्रत के दौरान ध्यान देने योग्य बातें :
तामसिक भोजन, नशा, क्रोध, अपशब्द, झूठ आदि से दूर रहें।
ब्रह्मचर्य का पालन करें।
बाल, दाढ़ी, नाखून न काटें।
पूजा में चमड़े की वस्तुएं या जूते-चप्पल न पहनें।
काले वस्त्र न पहनें।
किसी का दिल न दुखाएँ यह सबसे बड़ा पाप माना गया है।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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