नया संसद भवन राष्ट्र को समर्पित

भारत दुनियां का सबसे बड़ा तो अमेरिका सबसे पुराना लोकतंत्र है
पूरी दुनियां भारत और अमेरिका की ओर देख रही है
हर देश की विकास यात्रा में कुछ पल ऐसे आते हैं जो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं, जिसे पीढ़ियां याद करेगी –
एडवोकेट किशन भावनानी

किशन सनमुख़दास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनिया में दो महाशक्तियों का नाम लंबे समय से गूंजता आया है। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध तो हो गए, परंतु अभी दोनों महाशक्तियों की वर्तमान समय में रूस-यूक्रेन मुद्दे पर भी तनातनी पिछले कई दिनों से चल रही है और दोनों की टकराहट का अंजाम तीसरा विश्वयुद्ध भी होने की संभावना जानकारों द्वारा समय-समय पर व्यक्ति की जा रही है, परंतु हाल में कुछ वर्षों में इन दोनों महाशक्तियों के बीच तीसरी महाशक्ति जिसका नाम भारत है, के उदय होने का आभास वैश्विक चर्चा और रूस यूक्रेन युद्ध में समझौता कराने के लिए, मध्यस्थ के रूप में, उम्मीदों भरी नजरों से देखा जाना, दोनों महाशक्तियों से बहुत अच्छा तथा सुदृढ़ संबंध होना, आईएमएफ द्वारा भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का बयान, मूडीज एजेंसी द्वारा रैंकिंग में भारत को तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था करार देना, जीडीपी की रिपोर्ट सटीक देना।

वैश्विक मंचों पर भारत को मिलते हुए महत्व और 22 जून 2023 को भारतीय पीएम के अमेरिका अधिकारिक दौरे और व्हाइट हाउस द्वारा उनके सम्मान में रात्रि प्रीतिभोज का आयोजन करना और अमेरिकी राष्ट्रपति का जी-20-2023 के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने 9-10 सितंबर 2023 को भारत दौरा उनके सटीक और बढ़ते याराने का सबूत है जिसपर दुनिया की नजरें लगी हुई है और दोनों देशों में 28 मई 2023 को अनुकूल पलों जैसे भारत में नए संसद भवन का उद्घाटन और अमेरिका में सरकारी ऋण समझौता को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति और अमेरिकी संसद के अध्यक्ष व अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी के बीच सैद्धांतिक सहमति का बन जाने का ऐतिहासिक पल जिससे अमेरिका के दिवालिया होने से बच जाने, भारत अमेरिका की दोस्ती के नए आयाम बनने इतिहास के सबसे बड़े लोकतंत्र और अमेरिका के सबसे पुराने लोकतंत्र की ओर दुनिया हसरत भरी नजरों से देख रही है।

क्योंकि भारत तेजी से बढ़ती महाशक्ति के रूप में तेजी से उभरता हुआ दिखाई दे रहा है, इसीलिए पांच दशक से पहले अधिक पहले समय से आए वर्ष 1981 में 10 ज़नवरी को रिलीज हुई हिंदी फीचर फिल्म याराना का अंजान द्वारा लिखा गीत, तेरे जैसा यार कहां कहां ऐसा याराना, याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफ़साना गीत को हमारे युवाओं को जरूर सुनना चाहिए। क्योंकि भारत अमेरिका की सकारात्मक दोस्ती संबंधों से नए-नए ऐतिहासिक आयाम लिखे जा सकते हैं, एक और एक ग्यारह का फार्मूला प्रैक्टिकल में बन जाता है और सुख दुख दोनों कंधों से कंधा मिलाकर जिंदगी रूपी पटरी पर चल रहे जीवन रूपी रेलगाड़ी के दोनों पहिए बनकर नैया पार करते हैं।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम भारत के दुनियां की तीसरी महाशक्ति के रूप में उभरता भारत के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाने वाला पल, नई संसद भवन का उद्घाटन 28 मई 2023 पर माननीय पीएम के संबोधन की करें तो,एक समय था, जब भारत दुनिया के सबसे समृद्ध और वैभवशाली राष्ट्रों में गिना जाता था। भारत के नगरों से लेकर महलों तक, भारत के मंदिरों से लेकर मूर्तियों तक, भारत का वास्तु, भारत की विशेषज्ञता का उद्घोष करता था। सिंधु सभ्यता के नगर नियोजन से लेकर मौर्यकालीन स्तंभों और स्तूपों तक, चोल शासकों के बनाए भव्य मंदिरों से लेकर जलाशयों और बड़े बांधों तक, भारत का कौशल, विश्व भर से आने वाले यात्रियों को हैरान कर देता था। लेकिन सैकड़ों साल की गुलामी ने हमसे हमारा ये गौरव छीन लिया। एक ऐसा भी समय आ गया जब हम दूसरे देशों में हुए निर्माण को देखकर मुग्ध होने लग गए। 21वीं सदी का नया भारत, बुलंद हौसले से भरा हुआ भारत, अब गुलामी की उस सोच को पीछे छोड़ रहा है।

आज भारत, प्राचीन काल की उस गौरवशाली धारा को एक बार फिर अपनी तरफ मोड़ रहा है। और संसद की ये नई इमारत, इस प्रयास का जीवंत प्रतीक बनी है। आज नए संसद भवन को देखकर हर भारतीय गौरव से भरा हुआ है। इस भवन में विरासत भी है, वास्तु भी है। इसमें कला भी है, कौशल भी है। इसमें संस्कृति भी है और संविधान के स्वर भी हैं।संसद के पुराने भवन में, सभी के लिए अपने कार्यों को पूरा करना कितना मुश्किल हो रहा था, ये हम सभी जानते हैं। टेक्नोलॉजी से जुड़ी समस्याएं थीं, बैठने की जगह से जुड़ी चुनौती थी। इसलिए ही बीते डेढ़ दो दशकों से ये चर्चा लगातार हो रही थी कि देश को एक नए संसद भवन की आवश्यकता है और हमें ये भी देखना होगा कि आने वाले समय में सीटों की संख्या बढ़ेगी, सांसदों की संख्या बढ़ेगी, वो लोग कहां बैठते?

इसलिए ये समय की मांग थी कि संसद की नई इमारत का निर्माण किया जाए और मुझे खुशी है कि ये भव्य इमारत आधुनिक सुविधाओं से पूरी तरह लैस है। आप देख रहे हैं कि इस समय भी इस हॉल में सूरज का प्रकाश सीधे आ रहा है। बिजली कम से कम खर्च हो, हर तरफ लेटेस्ट टेक्नोलॉजी वाले गैजेट्स हों, इन सभी का इसमें पूरा ध्यान रखा गया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को यह नई संसद एक नई ऊर्जा और नई मजबूती प्रदान करेगी। हमारे श्रमिकों ने अपने पसीने से इस संसद भवन को इतना भव्य बना दिया है। अब हम सभी सांसदों का दायित्व है कि इसे अपने समर्पण से और ज्यादा दिव्य बनाएंगे। एक राष्ट्र के रूप में हम सभी 140 करोड़ भारतीयों का संकल्प ही, इस नई संसद की प्राण-प्रतिष्ठा है। यहां होने वाला हर निर्णय, आने वाली सदियों को सजाने-संवारने वाला है। यहां होने वाला हर निर्णय, आने वाली पीढ़ियों को सशक्त करने वाला होगा।

यहां होने वाला हर निर्णय, भारत के उज्ज्वल भविष्य का आधार बनेगा। गरीब, दलित, पिछड़ा, आदिवासी, दिव्यांग, समाज के हर वंचित परिवार के सशक्तिकरण का, वंचितों को वरीयता का रास्ता यहीं से गुजरता है। इस नए संसद भवन की हर ईंट, हर दीवार, इसका कण-कण गरीब के कल्याण के लिए समर्पित है। अगले 25 वर्षों में संसद के इस नए भवन में बनने वाले नए कानून, भारत को विकसित भारत बनाएंगे। इस संसद में बनने वाले कानून भारत को गरीबी से बाहर निकालने में मदद करेंगे। इस संसद में बनने वाले कानून, देश के युवाओं के लिए, महिलाओं के लिए नए अवसरों का निर्माण करेंगे। मुझे विश्वास है, संसद का यह नया भवन, नये भारत के सृजन का आधार बनेगा। एक समृद्ध सशक्त और विकसित भारत, नीति, न्याय, सत्य, मर्यादा और कर्तव्यपथ पर और सशक्त होकर चलने वाला भारत।

भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र ही नहीं बल्कि लोकतन्त्र की जननी भी है, मदर ऑफ डेमोक्रेसी भी है। भारत आज वैश्विक लोकतन्त्र का भी बहुत बड़ा आधार है। लोकतन्त्र हमारे लिए सिर्फ एक व्यवस्था नहीं, एक संस्कार है, एक विचार है, एक परंपरा है। हमारे वेद हमें सभाओं और समितियों के लोकतान्त्रिक आदर्श सिखाते हैं। महाभारत जैसे ग्रन्थों में गणों और गणतंत्रों की व्यवस्था का उल्लेख मिलता है। हमने वैशाली जैसे गणतंत्रों को जीकर दिखाया है। हमने भगवान बसवेश्वर के अनुभव मंटपा को अपना गौरव माना है। तमिलनाडु में मिला 900 ईस्वी का शिलालेख आज भी हर किसी को हैरान कर देता है। हमारा लोकतंत्र ही हमारी प्रेरणा है, हमारा संविधान ही हमारा संकल्प है। इस प्रेरणा, इस संकल्प की सबसे श्रेष्ठ प्रतिनिधि अगर कोई है तो ये हमारी संसद है और ये संसद देश की जिस समृद्ध संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है, उसका उद्घोष करती है- शेते निपद्य-मानस्य चराति चरतो भगः चरैवेति, चरैवेति- चरैवेति॥

कहने का तात्पर्य जो रुक जाता है, उसका भाग्य भी रुक जाता है। लेकिन जो चलता रहता है, उसी का भाग्य आगे बढ़ता है, बुलंदियों को छूता है। और इसलिए, चलते रहो, चलते रहो। ग़ुलामी के बाद हमारे भारत ने बहुत कुछ खोकर अपनी नई यात्रा शुरू की थी। वो यात्रा कितने ही उतार-चढ़ावों से होते हुए, कितनी ही चुनौतियों को पार करते हुए, आज़ादी के अमृतकाल में प्रवेश कर चुकी है। आज़ादी का ये अमृतकाल- विरासत को सहेजते हुए विकास के नए आयाम गढ़ने का अमृतकाल है। आज़ादी का ये अमृतकाल- देश को नई दिशा देने का अमृतकाल है। आज़ादी का ये अमृतकाल- अनंत सपनों को, असंख्य आकांक्षाओं को पूरा करने का अमृतकाल है।

साथियों बात अगर हम ट्विटर हैंडल से भारतीय विदेश मंत्री के विचारों की करें तो, उन्होंने लिखा आज मैं भारत को एक देश के तौर पर देखता हूं जिसके पास विज़न है, जिसे पता है वो किस दिशा में जा रहा है, उसकी क्षमता क्या है। पिछले 20-30 साल में ग्लोबलाइजेशन के चलते विश्व में पुनर्संतुलन आया है। जो देश पहले विश्व हावी थे, वे अब उस स्तर पर हावी नहीं रहे। अतः अगर हम उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा तो अमेरिका सबसे पुराना लोकतंत्र है। पूरी दुनिया भारत और अमेरिका की ओर देख रही है।हर देश की विकास यात्रा में कुछ पल ऐसे आते हैं जो हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं।

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