राष्ट्रीय कवि संगम ने शहीद मंगल पांडे की जयंती पर उन्हें काव्य पुष्प अर्पित किए

मंगल पांडे की जयंती पर उनकी स्मृति को ताजा किया राष्ट्रीय कवि संगम ने

कोलकाता । सन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक शहीद मंगल पांडे की जयंती पर ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ की दक्षिण कोलकाता इकाई द्वारा संस्था के प्रांतीय अध्यक्ष – डॉ. गिरिधर राय की अध्यक्षता में एक काव्य गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। जिसका अत्यंत ही कुशल संयोजन शिव शंकर सिंह “सुमित” और दमदार संचालन विजय शर्मा ‘विद्रोही’ ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ जिलाध्यक्ष सीमा सिंह के स्वागत भाषण से हुआ। विशिष्ट वक्ता श्यामा सिंह ने अपने वक्तव्य में शहीद मंगल पाण्डेय का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए कहा कि अगर सन 1857 में मंगल पांडे का साथ उनके बाकी साथियों ने दिया होता तो हमें और 90 वर्षों तक स्वतन्त्रता का इंतज़ार नहीं करना पड़ता।

हिमाद्रि मिश्र की मधुर सरस्वती वंदना से ऐसी काव्य संध्या का आरम्भ हुआ जिसमें विभिन्न रचनाकारों ने शहीद मंगल पाण्डे की स्मृति में अपने अपने काव्य पुष्प चढ़ाए। इस अवसर पर दीपक सिंह एवं आलोक चौधरी ने मंगल पांडे पर अपनी रचना सुनाते हुए कार्यक्रम का आगाज किया। पहली बार काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए नवांकुर सोना सिंह ने माँ बेटी के बीच के रिश्ते को कविता में ढाला तो आशुतोष राउत ने ‘सिसक रहा हिन्दुस्तान’ सुनाकर अपने मन का आक्रोश निकाला। राम अवतार सिंह की कविता ‘यह भारतवर्ष हमारा है’ और हिमाद्रि मिश्र की कविता ‘अब वाणी में अंगार चाहिए’ ने ओज का संचार किया तो स्वागता बसु की रचना ‘तुम आशा के मुक्त वितान’ ने सभी के ह्रदय को छू लिया।

श्यामा सिंह ने ‘हालात पे काबू रखना’ एवं कार्यक्रम के संयोजक शिव शंकर सिंह ‘सुमित’ ने ‘चुप रहूंगा’ सुनाकर देश के हालातों पर अपनी चिंता जताई तो विजय शर्मा ‘विद्रोही’ ने ‘युवाओं कहाँ जा रहे हो’ सुनाकर नौजवानों को सचेत करने के लिए हुंकार लगाईं। जिलाध्यक्ष सीमा सिंह ने कवयित्री ‘कविता तिवारी’ की रचना ‘देश की समृद्धि सुख शान्ति के लिए’ का वाचन करते हुए सभी को भाव विभोर कर दिया। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रांतीय महामंत्री राम पुकार सिंह की कविता ‘आज़ादी खातिर पैदा थे, सचमुच में जांबाज़ थे, था नाम मंगल पांडे, स्वतन्त्रता के अल्फाज़ थे’ सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो उठे।

किन्तु कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण रहे प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. गिरधर राय जिन्होंने अस्वस्थ रहते हुए भी कार्यक्रम में उपस्थित रहकर सभी का हौसला बढ़ाया और अपना वक्तव्य देते हुए समझाया कि ऐसे कार्यक्रमों द्वारा वीरों को याद करते रहना चाहिए।इससे देशभक्ति जगती है। साथ ही उन्होंने अपनी परिचायक बन चुकी कविता – ‘मेरा क्या मैं तो ऐसे ही गीत सुनाऊंगा, दर्द देश का देख रहा हूँ, वही तुम्हें दिखालाउंगा’ सुनाकर सभी उपस्थित काव्य रसिकों का ह्रदय जीत लिया। अंत में कार्यक्रम संयोजक शिव शंकर सिंह ‘सुमित’ ने धन्यवाद ज्ञापन कर यह अभूतपूर्व कार्यक्रम सुसम्पन्न किया।

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