तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर। मेदिनीपुर रवींद्र-नजरुल समारोह समिति के प्रयास से ऐतिहासिक विद्यासागर स्मृति मंदिर परिसर में फासीवाद के खिलाफ विजय की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ‘बंगाल की संस्कृति में फासीवाद विरोध’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इस सभा में मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध वक्ता और जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अब्दुल काफी उपस्थित थे।
सभा के आरंभ में आयोजकों की ओर से सभी का स्वागत करते हुए नाटककार जयन्त चक्रवर्ती ने संक्षिप्त भाषण दिया। डॉ. अब्दुल काफी को पश्चिम बंगाल गणतांत्रिक लेखक शिल्पी संघ द्वारा प्रकाशित तीन पुस्तकें सौंपी गई। इस सभा में लेखक विजय पाल, लेखक और प्रशासक मृदुल श्रीमानी, साहित्यकार कामारुज्जामन, शिक्षक जगन्नाथ खां, विज्ञानकर्मी दिलीप चक्रवर्ती, समाजसेवक शैलन माईती, अनवर रजा, जयन्त पात्र आदि उपस्थित थे।
प्रोफेसर अब्दुल काफी ने अपने भाषण में बंगाल की संस्कृति में फासीवाद विरोधी के लंबे इतिहास को उजागर किया। उन्होंने फासीवाद विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर की गौरवशाली भूमिका का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने ‘अफ्रीका’ कविता को फासीवाद विरोध का एक उज्ज्वल उदाहरण बताया। साथ ही, उन्होंने फासीवाद के विरोध में वामपंथी लेखकों और संस्कृति कर्मियों की गौरवमयी भूमिका का उल्लेख किया।
उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस के आदर्शों और फासीवाद के बीच गहरे संबंध हैं। उन्होंने कहा कि भारत में फासीवादी विचारों का विकास हुआ है, लेकिन अभी तक यह पूर्ण रूप से स्थापित नहीं हो पाया है। उन्होंने सभी से फासीवादी प्रवृत्तियों का विरोध करने का आह्वान किया।
अंत में, उन्होंने दृढ़ विश्वास के साथ कहा, “हम ही कर सकते हैं, हमें करना ही होगा।” पूरा सभागार अंत तक मंत्रमुग्ध सन्नाटे में रहा। समाज के विभिन्न वर्गों के लगभग तीन सौ श्रोता इस सभा में उपस्थित थे।
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